Haridwar Kumbh Mela 2021: ऐसे तय होती है कुंभ मेला लगाने की तिथि

Edited By Updated: 05 Apr, 2021 08:45 AM

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कुंभ मेले का आयोजन इस बार तीर्थ नगरी हरिद्वार में हो रहा है। वैसे तो कुंभ मेला हर 12 वर्ष में लगता है लेकिन हरिद्वार में इस बार 11वें वर्ष में ही आयोजित किया जा रहा है। दरअसल ज्योतिष गणनाओं के कारण ऐसा हो रहा है।

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Haridwar Kumbh 2021 Shahi Snan: कुंभ मेले का आयोजन इस बार तीर्थ नगरी हरिद्वार में हो रहा है। वैसे तो कुंभ मेला हर 12 वर्ष में लगता है लेकिन हरिद्वार में इस बार 11वें वर्ष में ही आयोजित किया जा रहा है। दरअसल ज्योतिष गणनाओं के कारण ऐसा हो रहा है। बृहस्पति ग्रह कुंभ राशि में नहीं होंगे इसलिए 11वें साल में ही कुंभ मेले का आयोजन हरिद्वार में किया जा रहा है। वैसे यह भी मान्यता है कि पौराणिक काल में कुंभ मेले का प्रारंभ तीर्थ नगरी हरिद्वार से ही हुआ था। कई ऐतिहासिक पुरातात्विक और पौराणिक ग्रंथों से यह प्रमाणित होता है हमारी सनातन संस्कृति और सभ्यता का विकास गंगा, यमुना और सरस्वती नदी के किनारे ही हुआ था। बाद में इस सनातन सभ्यता का विकास सिंधु घाटी तक हो गया था।

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ऐसे तय होती है कुंभ मेला लगाने की तिथि
धर्म नगरी हरिद्वार में कुंभ का आयोजन पौराणिक ज्योतिष विश्वास और ज्योतिष गणना के अनुसार बृहस्पति के कुंभ और सूर्य के मेष राशि में प्रवेश करने के कारण होता है। ये भी सनातन संस्कृति के वाहक हैं जो विश्व के सबसे बड़े धार्मिक आयोजन और सनातन धर्म के सबसे बड़े पर्व कुंभ में आस्था का प्रतीक बनते हैं। सनातन हिंदू धर्म में कुंभ मेले का महत्व है।  वेदज्ञों के अनुसार यही एकमात्र कुंभ मेला, त्यौहार व उत्सव है, जिसे सभी हिन्दुओं को मिल कर मनाना चाहिए।

धार्मिक सम्मेलनों की यह परम्परा भारत में वैदिक युग से चली आ रही है। जब ऋषि और मुनि किसी नदी के किनारे जमा होकर धार्मिक, दार्शनिक तथा आध्यात्मिक रहस्यों पर विचार-विमर्श करते थे। यह परम्परा आज भी जारी है। 

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कुंभ मेले के आयोजन के पीछे बहुत बड़ा विज्ञान है। जब-जब इस मेले के आयोजन का प्रारंभ होता है, सूर्य पर हो रहे विस्फोट बढ़ जाते हैं और इसका असर धरती पर बहुत भयानक रूप में होता है। देखा गया है कि प्रत्येक 11 से 12 वर्ष के बीच सूर्य पर परिवर्तन होते हैं। कुंभ को विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन या मेला माना जाता है। इतनी बड़ी संख्या में आयोजन सिर्फ सनातन धर्म में ही होता है। कुंभ, जो प्रत्येक 12 वर्ष में आयोजित होता है, एकत्रित लोगों को जोड़ने का एक माध्यम है। कुंभ का आयोजन प्रत्येक तीन वर्ष में चार अलग-अलग स्थानों पर भी होता है। अद्र्ध कुंभ मेला प्रत्येक 6 वर्ष में हरिद्वार और प्रयाग में लगता है जबकि पूर्ण कुंभ हर बारह साल बाद प्रयाग में ही लगता है। 

12 कुंभ मेलों के बाद महाकुंभ मेला भी हर 144 साल बाद केवल प्रयागराज (इलाहाबाद) में ही लगता है। माना जाता है कि समुद्र मंथन से जो अमृत कलश निकला था, उसमें से देवताओं और राक्षसों के बीच युद्ध के दौरान धरती पर अमृत छलक गया। जहां-जहां उसकी अमृत की बूंदें गिरीं वहां प्रत्येक 12 वर्ष में एक बार कुंभ का आयोजन किया जाता है। इस कुंभ को पूर्ण कुंभ कहा जाता है।

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