लद्दाख में स्थित बौद्ध शांति स्तूप की भव्यता देख आनंद से भर उठते हैं सभी धर्मों के लोग

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 26 Feb, 2024 08:04 AM

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अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य की छटा बिखेरता लद्दाख बर्फ से ढंके ऊंचे-ऊंचे पर्वतों से घिरा हुआ है पर यह क्षेत्र ज्यादातर बंजर ही है। श्रीनगर-लेह राष्ट्रीय राजमार्ग पर यात्रा करते समय रास्ते में निराले प्राकृतिक सौंदर्य के दृश्य देखने को मिलते हैं। मीलों...

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Ladakh trip: अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य की छटा बिखेरता लद्दाख बर्फ से ढंके ऊंचे-ऊंचे पर्वतों से घिरा हुआ है पर यह क्षेत्र ज्यादातर बंजर ही है। श्रीनगर-लेह राष्ट्रीय राजमार्ग पर यात्रा करते समय रास्ते में निराले प्राकृतिक सौंदर्य के दृश्य देखने को मिलते हैं। मीलों तक फैले ऊंचे, नंगे, बर्फीले पर्वतों को देख कर लगता है न जाने कितने रहस्य अपने में समेटे ये र्निवकार और शांत खड़े हैं। आबादी का कहीं दूर-दूर तक नामोनिशान नहीं है, पर तभी अचानक बीच में छोटी सी एक हरी-भरी घाटी दिखाई पड़ जाती है, जहां जिंदगी बड़ी ही सुस्त रफ्तार से रेंगती-सी दिखती है।

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कच्चे मकान, इक्का-दुक्का चरते हुए जानवर, खुबानी से लदे पेड़, गांवों के बीचोंबीच बहती छोटी-सी नदी पर कपड़े धोती पारंपरिक वेशभूषा में लद्दाखी बालिकाएं, वीराने में जीवन का ऐसा स्पंदन शायद ही कहीं और देखने को मिलेगा। हवाएं इतनी तेज एवं रूखी तथा धूप एकदम सीधी और त्वचा को बेधती है लेकिन हर परिस्थिति का डट कर सामना करना लद्दाखियों का स्वभाव है। विशाल पर्वतों के साये में रह कर शायद लद्दाखियों ने धैर्य, सहिष्णुता, विश्वास और हर प्रकार की चुनौतियों का डट कर सामना करना सीख लिया है इसलिए लद्दाख की अपनी अलग संस्कृति है, अलग ही जीवनशैली है।

यह प्रदेश अपने विविध प्राकृतिक सौंदर्य से पर्यटकों को लुभाता है। पर्वतारोहियों को नून (7135 मी.), कुन (7077 मी.), वाइट नीडल (6500 मी.), पिनेकल (6930 मी.) और जैड- वन (6400 मी.) जैसी ऊंची-ऊंची चोटियों पर विजय प्राप्त करने की चुनौती भी देता है। 

नूबरा घाटी की काराकोरम की पहाड़ी चोटियां पेड़- पौधों, ग्लेशियर आदि के प्राकृतिक सौंदर्य से सभी को अभिभूत कर देती हैं। साथ ही रोमांचकारी खेलों जैसे कि ट्रैकिंग, केनोइंग, राफ्टिंग वगैरह के लिए लद्दाख से बेहतर कोई जगह ही नहीं है।

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इठलाती, बलखाती, ठाठें मारती सिंधु नदी इसी क्षेत्र से गुजरती है और साहसिक खेलों का मजा लेने वाले उत्साहियों को अपनी गोद में खेलने के लिए पुकारती है। इसके अलावा तीरंदाजी और पोलो जैसे रोमांचकारी खेलों का प्रदर्शन इस क्षेत्र की अपनी ही विशेषता है। रविवार के दिन तो लेह की रौनक अलग ही होती है, जहां पोलो और तीरंदाजी के खेल देखने के लिए बड़ी संख्या में स्थानीय लोग तो आते ही हैं, पर्यटक भी इनका आनंद लेने में पीछे नहीं रहते हैं।

यही नहीं इस निर्जन क्षेत्र के सौंदर्य में चार चांद लगाती हैं यहां की सुंदर झीलें और झरने। पानामिक, चूमाथांग और चांगथांग में गंधक के झरनों के पानी से जोड़ों के दर्द का इलाज होता है। सदियों से यहां के लोग प्राकृतिक जड़ी-बूटियों, खनिज युक्त झीलों और झरनों के जल से अपना इलाज करते आए हैं। 14000 फुट की ऊंचाई पर स्थित 150 कि.मी. लम्बी और 4 कि.मी. चौड़ी पैंगोंग झील और खारे पानी वाली टिसोमोरिरी झील को देखना कोई पर्यटक नहीं भूलता। इस झील का आधा हिस्सा चीन में पड़ता है।

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दुनिया की सबसे ऊंची सड़क पर खड़ा होने का गौरव कौन महसूस नहीं करना चाहेगा ? 18380 फुट की ऊंचाई पर खार्दुंगला दुनिया की सबसे ऊंची सड़क है, जहां मोटर गाड़ी द्वारा पहुंचा जा सकता है। सिंधू नदी के किनारे खालेस्ते और शैलाक सैलानियों के लिए विशेष आकर्षण के केंद्र हैं। यहां आज भी मूल आर्य नस्ल के डूक्रपा जनजाति के कुछ परिवार पारंपरिक रूप से जीवन व्यतीत कर रहे हैं। ये पांच गांवों में फैले हुए हैं। अभी सिर्फ दो गांवों दाह और बियामा तक ही पहुंचा जा सकता है। इन परिवारों की संख्या बहुत कम है। इनके नैन-नक्श प्राचीन आर्यों की तरह हैं और अपनी सभ्यता और संस्कृति को अभी तक ये बचाए हुए हैं इसलिए अन्य लद्दाखियों से भिन्न इनकी जीवनशैली, परम्पराओं, संस्कृति, त्यौहारों, संगीत, कला आदि का अध्ययन करने के लिए देश-विदेश से अनेक अध्ययनकर्त्ता यहां आते हैं।

लद्दाख क्षेत्र का एक और महत्वपूर्ण पहलू यहां के धार्मिक स्थल हैं। बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए तो यह क्षेत्र अत्यंत पवित्र स्थान है। भगवान बुद्ध को मनाने वाले लोग तिब्बत के बाद शायद लेह में ही सबसे अधिक होंगे। लेह स्थित पवित्र बौद्ध शांति स्तूप की भव्यता देख कर सभी धर्मों के लोग आनंद से भर उठते हैं।

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वैसे तो लद्दाख क्षेत्र में ज्यादातर त्यौहार सर्दियों में ही मनाए जाते हैं लेकिन कुछ महत्वपूर्ण त्यौहार गर्मियों में भी मनाए जाते हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है हेमिस मेला जोकि हर वर्ष जून या जुलाई में पद्मा समभवा की याद में मनाया जाता है। प्रतिवर्ष बौद्ध अनुयायियों, स्थानीय लोगों के अलावा विदेशी पर्यटकों की भारी भीड़ इस गुम्पा (पूजा स्थान) में इकट्ठी होती है और श्रद्धालु पारम्परिक रूप से नृत्य तथा गायन द्वारा ईश्वर को प्रसन्न करते हैं।

यह अनोखा क्षेत्र जहां साल में करीब 300 दिन सूर्य चमकता है लेकिन रात इसके विपरीत ठंडी होती है। आसमान एकदम निर्मल, नीला और साफ ऐसा कि आदमी एक-एक तारा गिन ले, अपनी शीतल चांदनी बिखेरता चंद्रमा जिसे निहारते हुए कभी आंखें न थकें इसलिए इसे चंद्र प्रदेश भी कहा जाता है। 

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