Edited By Prachi Sharma,Updated: 06 Jun, 2025 07:00 AM

Mahatma Buddha Story: भगवान गौतम बुद्ध शिष्यों के साथ यात्रा पर निकले थे। रास्ते में उनसे लोग मिलते। कुछ उनके दर्शन करके संतुष्ट हो जाते तो कुछ अपनी समस्याएं रखते थे। बुद्ध सबकी परेशानियों का समाधान करते थे।
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Mahatma Buddha Story: भगवान गौतम बुद्ध शिष्यों के साथ यात्रा पर निकले थे। रास्ते में उनसे लोग मिलते। कुछ उनके दर्शन करके संतुष्ट हो जाते तो कुछ अपनी समस्याएं रखते थे। बुद्ध सबकी परेशानियों का समाधान करते थे।
एक दिन एक व्यक्ति ने कहा, “मैं एक विचित्र तरह की मानसिक दुविधा से गुजर रहा हूं। मैं लोगों को प्यार तो करता हूं पर मुझे बदले में कुछ नहीं मिलता। जब मैं किसी के प्रति स्नेह रखता हूं तो यह अपेक्षा तो करूंगा ही कि बदले में मुझे भी स्नेह या संतुष्टि मिले लेकिन मुझे ऐसा कुछ नहीं मिलता। मेरा जीवन स्नेह से वंचित है। कृपया बताएं कि मुझ में कहां गलती और कमी है।”

भगवान बुद्ध ने तुरन्त कोई उत्तर नहीं दिया। वह चुप रहे। सब चलते रहे। चलते-चलते बुद्ध के एक शिष्य को प्यास लगी। कुआं पास ही था। रस्सी और बाल्टी भी पड़ी हुई थी। शिष्य ने बाल्टी कुएं में डाली और खींचने लगा। कुआं गहरा था। पानी खींचते-खींचते उसके हाथ थक गए पर वह पानी नहीं भर पाया, क्योंकि बाल्टी जब भी ऊपर आती खाली ही रहती। सभी यह देखकर हंसने लगे। हालांकि कुछ यह भी सोच रहे थे कि इसमें कोई चमत्कार तो नहीं? थोड़ी देर में सबको कारण समझ में आ गया। दरअसल बाल्टी में छेद था।

भगवान बुद्ध ने उस व्यक्ति की तरफ देखा और कहा कि हमारा मन भी इस बाल्टी की ही तरह है जिसमें कई छेद हैं। आखिर पानी इसमें टिकेगा भी तो कैसे ? मन में यदि सुराख रहेगा तो उसमें प्रेम भरेगा कैसे। क्या वह रुक पाएगा ? तुम्हें प्रेम मिलता भी है तो टिकता नहीं है। तुम उसे अनुभव नहीं कर पाते क्योंकि मन में विकार रूपी छेद हैं।
विकार होने से मन कमजोर हो जाता है और बाहर से आने वाली अच्छी चीजों को यह ग्रहण नहीं कर पाता है। यह सुनकर व्यक्ति को अपनी भूल का अहसास हो गया।
