Edited By Prachi Sharma,Updated: 18 Aug, 2025 02:00 PM

उन दिनों की बात है जब गांधी जी दक्षिण अफ्रीका में थे। कुछ युवक उनके जीवन से प्रेरित होकर फिनिक्स आश्रम पहुंचे और वहां रहने के लिए निवेदन किया। इजाजत मिलने के बाद वे आश्रम में रहने लगे। बापू को प्रभावित करने के लिए उन्होंने बिना नमक का भोजन करने की...
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Inspirational Story: उन दिनों की बात है जब गांधी जी दक्षिण अफ्रीका में थे। कुछ युवक उनके जीवन से प्रेरित होकर फिनिक्स आश्रम पहुंचे और वहां रहने के लिए निवेदन किया। इजाजत मिलने के बाद वे आश्रम में रहने लगे। बापू को प्रभावित करने के लिए उन्होंने बिना नमक का भोजन करने की प्रतिज्ञा की। कुछ दिनों तक वे नमक न खाने की अपनी प्रतिज्ञा पर कायम रहे लेकिन शीघ्र ही उस बेस्वाद भोजन से ऊबने लगे।
जब बिना नमक के खाना मुश्किल हो गया तब एक दिन उन युवकों ने मसालेदार चटपटी चीजें मंगवाईं और चुपचाप खा लीं। उन युवकों में से एक के लिए यह चोरी छिपाना संभव नहीं हुआ। उसने जाकर बापू को सब कुछ बतला दिया। बापू उस समय कुछ नहीं बोले लेकिन शाम की प्रार्थना के उपरांत उन्होंने युवकों को अपने पास बुलाया और मसालेदार खाना खाने के बारे में पूछा। युवकों ने इस प्रकार का खाना खाने से साफ इन्कार कर दिया। उलटे उन्होंने भेद खोलने वाले युवक को ही झूठा ठहरा दिया।
बापू सत्य तथा अहिंसा को अपने जीवन का सबसे बड़ा आधार मानते थे। आश्रम में रहने आए इन युवकों का व्यवहार उनके लिए बेहद तकलीफदेय था फिर भी उन्होंने शांत भाव से उन युवकों से कहा, “तुमने मुझसे सच्चाई छिपाई, यह तुम्हारी नहीं, मेरी कमी है।

ऐसा लगता है कि अब तक मैंने सत्य का गुण ठीक से प्राप्त नहीं किया है, इसीलिए सत्य मुझसे दूर भागता है। अपने ह्रदय को और शुद्ध बनाने के लिए मुझे ही प्रायश्चित करना पड़ेगा।” गांधी जी के इन शब्दों का उन युवकों पर गहरा प्रभाव पड़ा। सबने तत्काल अपना अपराध कबूल कर लिया और बापू से क्षमा मांगते हुए संकल्प लिया कि अब कभी सत्य की राह नहीं छोड़ेंगे।
