Manikarnika Snan Katha: जानिए, क्यों किया जाता है मणिकर्णिका स्नान और क्या है इसकी कथा

Edited By Updated: 02 Nov, 2025 02:00 PM

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Manikarnika Snan Katha 2025: मणिकर्णिका स्नान केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आत्मा की पवित्रता का उत्सव है। इस दिन वाराणसी में लाखों श्रद्धालु गंगा में डुबकी लगाकर मोक्ष की कामना करते हैं।  कहा गया है, "काश्यां मरणं मुक्तिः, स्नानं...

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Manikarnika Snan Katha 2025: मणिकर्णिका स्नान केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आत्मा की पवित्रता का उत्सव है। इस दिन वाराणसी में लाखों श्रद्धालु गंगा में डुबकी लगाकर मोक्ष की कामना करते हैं।  कहा गया है, "काश्यां मरणं मुक्तिः, स्नानं मणिकर्णिकायाम्"

अर्थात्: काशी में मरण मुक्ति का द्वार है और मणिकर्णिका में स्नान उसका प्रारंभ

Manikarnika Snan

Spiritual Importance of Manikarnika Ghat मणिकर्णिका घाट का आध्यात्मिक महत्व
वाराणसी का मणिकर्णिका घाट न केवल गंगा के तट का सबसे प्राचीन स्थान है, बल्कि यह जीवन और मृत्यु के रहस्यों का संगम भी है। कहा जाता है कि जो व्यक्ति यहां स्नान करता है या देह त्यागता है, उसे भगवान शिव स्वयं मोक्ष प्रदान करते हैं। इसी कारण इसे मोक्षभूमि काशी का हृदय भी कहा जाता है। मणिकर्णिका घाट का नाम दो शब्दों से बना है मणि (रत्न) और कर्णिका (कान)।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, माता सती के कान के आभूषण (मणिकर्ण) इसी स्थान पर गिरे थे, जिससे इसका नाम मणिकर्णिका घाट पड़ा।

Manikarnika Snan
The Divine Legend of Manikarnika Snan मणिकर्णिका स्नान की पौराणिक कथा
पुराणों के अनुसार, जब प्रजापति दक्ष ने अपनी पुत्री सती का विवाह भगवान शिव से किया, तो वे इस विवाह से संतुष्ट नहीं थे।
एक बार दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया गया। जब सती वहां पहुंचीं और अपने पति का अपमान सुना तो उन्होंने यज्ञ अग्नि में आत्मदाह कर लिया।

जब भगवान शिव को यह ज्ञात हुआ, तो वे क्रोध और दुःख से व्याकुल होकर सती के शरीर को उठाए पृथ्वी पर घूमने लगे। उनके इस तांडव से तीनों लोकों में भय फैल गया। तब भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के टुकड़े किए, जिससे 51 शक्ति पीठों की उत्पत्ति हुई।

इसी क्रम में जब सती के कर्ण-आभूषण गिरे, तो वह स्थान वाराणसी का मणिकर्णिका घाट कहलाया। कहा जाता है कि उसी स्थान पर भगवान विष्णु ने भी स्नान कर अपने चक्र प्रहार के पाप से मुक्ति पाई थी। तभी से यहां मणिकर्णिका स्नान का आरंभ हुआ, जो आज भी मोक्षदायिनी परंपरा के रूप में जीवित है।

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