Edited By Sarita Thapa,Updated: 10 Jul, 2025 06:01 AM

Motivational story: जापान का सेनापति नोबूनागा अपने सैनिकों के साथ दुश्मन का सामना करने रणभूमि की तरफ जा रहा था। पर उसके सैनिकों के हौसले पस्त थे। मन-ही-मन वे कुछ बुझे-बुझे से थे, क्योंकि दुश्मन बहुत ताकतवर था।
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Motivational story: जापान का सेनापति नोबूनागा अपने सैनिकों के साथ दुश्मन का सामना करने रणभूमि की तरफ जा रहा था। पर उसके सैनिकों के हौसले पस्त थे। मन-ही-मन वे कुछ बुझे-बुझे से थे, क्योंकि दुश्मन बहुत ताकतवर था। नोबूनागा से अपने सैनिकों के दिल की बात छिपी न थी। कुछ दूर निकल आने पर एक पूजा-स्थल दिखाई पड़ा। नोबूनागा ने अपने सैनिकों को वहीं रुकने के लिए कहकर पूजा-स्थल के अंदर जाते हुए कहा, “देखो, मैं उपासना करने अंदर जा रहा हूं। कुछ देर में लौटुंगा। तुम लोग बाहर मेरा इंतजार करना।”

थोड़ा वक्त बीत जाने पर नोबूनागा पूजा-स्थल से बाहर आया। तब उसके चेहरे पर खुशी थी। उसने जेब से एक सिक्का निकाला। उसे सैनिकों को दिखाते हुए कहा, “अब मैं इस सिक्के को उछालता हूं। अगर राजा की छपाई वाला हिस्सा ऊपर आया तो समझना लड़ाई में जीत हमारी होगी और अगर इसका उल्टा हुआ तो फिर समझना युद्ध में हमारी पराजय।”

यह कहकर नोबूनागा ने वह सिक्का हवा में उछाल दिया। सिक्का टन से जमीन पर गिरा। उस पर छपा राजा का चेहरा मानो सबको मुस्कराकर जीत का विश्वास दिला रहा था। जोश और उमंग में भरकर सब सैनिक जय-जयकार कर उठे। प्रबल उत्साह से सब सेनापति के पीछे-पीछे युद्धभूमि की तरह बढ़ने लगे।
युद्ध समाप्त हुआ। जीत नोबूनागा की सेना की ही हुई। अपने खेमों में लौटकर सब जीत का जश्न मनाने लगे। नोबूनागा अपने तम्बू में था। पास ही उपसेनापति बैठा था। वह नोबूनागा से बोला, “आखिर ईश्वर का वरदान काम आया। युद्ध जीत कर रहे।” सुनकर नोबूनागा ने सिक्का उपसेनापति को दिखाकर हंसकर कहा, “यह लड़ाई हमने अपने मनोबल और दृ़ढ़ विश्वास से जीती है।”
