Papankusha Ekadashi: धन और खुशहाली के लिए पापांकुशा एकादशी पर करें मां लक्ष्मी के इन मंत्रों का जाप

Edited By Updated: 03 Oct, 2025 06:01 AM

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Papankusha Ekadashi: हिंदू धर्म में पापांकुशा एकादशी का विशेष महत्व है। पापांकुशा एकादशी का दिन विशेष रूप से पापों को दूर करने और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा लाने के लिए जाना जाता है।

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Papankusha Ekadashi: हिंदू धर्म में पापांकुशा एकादशी का विशेष महत्व है। पापांकुशा एकादशी का दिन विशेष रूप से पापों को दूर करने और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा लाने के लिए जाना जाता है। इस बार पापांकुशा एकादशी का व्रत 03 अक्टूबर यानी आज के दिन रखा जाएगा। माना जाता है कि इस दिन पूरे विधि-विधान के साथ भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा करने और मंत्रों का जाप करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। इस दिन किए गए मंत्र जाप और ध्यान से न केवल मानसिक शांति मिलती है, बल्कि धन-संपत्ति और समृद्धि के मार्ग भी खुलते हैं। तो आइए जानते हैं कि पापांकुशा एकादशी के दिन कौन से मंत्रों का जाप करना चाहिए।

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मां लक्ष्मी के मंत्र

या रक्ताम्बुजवासिनी विलासिनी चण्डांशु तेजस्विनी।

या रक्ता रुधिराम्बरा हरिसखी या श्री मनोल्हादिनी॥

या रत्नाकरमन्थनात्प्रगटिता विष्णोस्वया गेहिनी।

सा मां पातु मनोरमा भगवती लक्ष्मीश्च पद्मावती ॥

ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं त्रिभुवन महालक्ष्म्यै अस्मांक दारिद्र्य नाशय प्रचुर धन देहि देहि क्लीं ह्रीं श्रीं ॐ ।

ॐ श्री महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णु पत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् ॐ ।।

ॐ सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो, धन धान्यः सुतान्वितः।

मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशयः ॐ ।।

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नम:॥

ॐ ह्रीं क्ष्रौं श्रीं लक्ष्मी नृसिंहाय नमः ।

ॐ क्लीन क्ष्रौं श्रीं लक्ष्मी देव्यै नमः ।।

ॐ ह्री श्रीं क्रीं श्रीं क्रीं क्लीं श्रीं महालक्ष्मी मम गृहे धनं पूरय पूरय चिंतायै दूरय दूरय स्वाहा ।

ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौं ॐ ह्रीं क ए ई ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं सकल ह्रीं सौं ऐं क्लीं ह्रीं श्री ॐ।

ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये

धनधान्यसमृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा॥

ऊँ हिमकुन्दमृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम सर्वशास्त्रप्रवक्तारं भार्गवं प्रणमाम्यहम ।।

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लक्ष्मी ध्यानम

सिन्दूरारुणकान्तिमब्जवसतिं सौन्दर्यवारांनिधिं,

कॊटीराङ्गदहारकुण्डलकटीसूत्रादिभिर्भूषिताम् ।

हस्ताब्जैर्वसुपत्रमब्जयुगलादर्शंवहन्तीं परां,

आवीतां परिवारिकाभिरनिशं ध्याये प्रियां शार्ङ्गिणः ॥

भूयात् भूयो द्विपद्माभयवरदकरा तप्तकार्तस्वराभा,

रत्नौघाबद्धमौलिर्विमलतरदुकूलार्तवालेपनाढ्या ।

नाना कल्पाभिरामा स्मितमधुरमुखी सर्वगीर्वाणवनद्या,

पद्माक्षी पद्मनाभोरसिकृतवसतिः पद्मगा श्री श्रिये वः ॥

वन्दे पद्मकरां प्रसन्नवदनां सौभाग्यदां भाग्यदां,

हस्ताभ्यामभयप्रदां मणिगणैर्नानाविधैर्भूषिताम् ।

भक्ताभीष्टफलप्रदां हरिहरब्रह्मादिभिस्सेवितां,

पार्श्वे पङ्कजशङ्खपद्मनिधिभिर्युक्तां सदा शक्तिभिः ॥

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