दूसरों की भलाई में अपना भला : प्रमुख स्वामी महाराज

Edited By Updated: 17 Dec, 2022 09:56 AM

pramukh swami maharaj

शास्त्री जी महाराज द्वारा स्थापित बी.ए.पी.एस. स्वामीनारायण संस्था के पांचवें आध्यात्मिक मुखिया प्रमुख स्वामी जी महाराज ने अमेरिका के राष्ट्रपति बिल क्लिंटन जैसे अनेक महानुभावों को प्रभावित किया और भारत के राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने तो इन्हें...

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Pramukh Swami Maharaj Shatabdi Mahotsav: शास्त्री जी महाराज द्वारा स्थापित बी.ए.पी.एस. स्वामीनारायण संस्था के पांचवें आध्यात्मिक मुखिया प्रमुख स्वामी जी महाराज ने अमेरिका के राष्ट्रपति बिल क्लिंटन जैसे अनेक महानुभावों को प्रभावित किया और भारत के राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने तो इन्हें गुरु के रूप में ही अपना लिया। प्रमुख स्वामी महाराज का सांस्कृतिक वैभव दिल्ली के अक्षरधाम सहित 1200 मंदिरों में  देखा जाता है, जो शिल्प, स्थापत्य, वास्तुकला और भारतीय वैज्ञानिक विरासत की झलक देते हैं। ‘मंदिर विज्ञान और आध्यात्मिक ज्ञान का धाम होना चाहिए’, प्रमुख स्वामी महाराज ने इसे साबित कर दिया। 

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चाणसद गांव में 1921 में जन्मे बालक ने मात्र 8 वर्ष विद्याभ्यास किया और 7 नवम्बर,1939 को गृह-त्याग करके अहमदाबाद में शास्त्री जी महाराज के वरदहस्त से पार्षदी दीक्षा तथा 10 जनवरी, 1940 को अक्षर देहरी, गोंडल में भगवती दीक्षा प्राप्त की। उन्हें 23 जनवरी, 1973 को संस्था का प्रमुख घोषित करते हुए ‘प्रमुख स्वामी’ जी महाराज का नाम दिया गया। 

हिंदू संस्कार, हिंदू विचारधारा, हिन्दू संस्कृति के प्रवर्तन में जिन संतों का विशेष योगदान रहा, उनमें प्रमुख स्वामी महाराज विशेष रूप से अग्रसर थे।  स्वामी जी का कहना था कि विज्ञान का विकास होने पर भी मनुष्य सुखी नहीं है। उसे शांति नहीं मिलती, क्योंकि भौतिकवाद बढ़ रहा है। भौतिक सुख के लिए आपस में कलह और अशांति होती है। 

हमारे आंतरिक दोष, एक-दूसरे के प्रति अहंमत्व और रागद्वेष के कारण समाज में बुरे कार्य भी होते हैं। दुनिया का बाहृा विकास हुआ, परंतु आंतरिक विकास के लिए संतों का अनुसरण और सभी के लिए कल्याण की भावना रखना ही हमारा धर्म है। हमारा जीवन निर्व्यसनी एवं सदाचारी होना चाहिए। 

दूसरों की भलाई में अपना भला है। इस जीवन सूत्र के साथ लाखों लोगों को आत्मीय स्नेह से अध्यात्म पथ दिखाने वाले प्रमुख स्वामी जी महाराज एक विरल संत विभूति थे। आप वात्सल्यमूर्ति संत थे, आप के सान्निध्य में शंकाओं का निवारण होता था, दुविधाएं दूर होती थीं। आघात अदृश्य होते थे और मन शांति की अनुभूति में सराबोर हो जाता था। 

विश्व के सबसे विशाल संगमरमरी हिंदू मंदिर का नीसडेन, लन्दन में निर्माण करने के अलावा गांधी नगर, दिल्ली व अमरीका के न्यू जर्सी क्षेत्र में अक्षरधाम की अनुपम सौगात देने वाले परोपकारी एवं लोकहित के रक्षक स्वामी जी ने अपनी कर्मभूमि सारंगपुर में 13 अगस्त, 2016 को अन्तिम सांस ली।

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