Ramayana story shradh: जब दशरथ जी आए श्राद्ध का भोजन खाने...

Edited By Updated: 18 Sep, 2025 02:01 PM

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Ramayana story shradh: भगवान श्री रामचंद्र जी वनवास के समय पुष्कर में ठहरे थे। दशरथ जी स्वर्गवासी हो गए और श्राद्ध पक्ष की तिथियां आईं। राम जी ऋषि-मुनियों, ब्राह्मणों को आमंत्रण दे आए। जो कुछ कंदमूल भाई लक्ष्मण को लाना था, लाया और सीताजी ने संवारा।

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Ramayana story shradh: भगवान श्री रामचंद्र जी वनवास के समय पुष्कर में ठहरे थे। दशरथ जी स्वर्गवासी हो गए और श्राद्ध पक्ष की तिथियां आईं। राम जी ऋषि-मुनियों, ब्राह्मणों को आमंत्रण दे आए। जो कुछ कंदमूल भाई लक्ष्मण को लाना था, लाया और सीताजी ने संवारा। सीता जी ब्राह्मणों को भोजन परोसने लगीं और राम जी भी देने लगे तो अचानक भयभीत हो सीता जी झाड़ियों में चली गईं। राम जी ने लक्ष्मण की मदद ली, सीता की जगह परोस कर ब्राह्मणों को भोजन कराया। जब वे सब चले गए तो डरी-डरी सीता जी आईं।

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‘‘सीते! आज का आपका व्यवहार मुझे आश्चर्य में डाले बिना नहीं रहता है।’’

सीता जी बोलीं, ‘‘नाथ! क्या कहूं जिनको श्राद्ध के निमित बुलाया था वे बैठे, इतने में आपके पिता जी, मेरे ससुर जी मुझे उनमें दिखाई दिए। अब ससुर जी के आगे मैं कैसे घूमूंगी इसलिए मैं शर्म के मारे भाग गई।’’ ऐसी कथा आती है।

एक अन्य कथा के अनुसार त्रेता युग की बात है। प्रसिद्ध गया तीर्थ पर भगवान राम अपने पिता राजा दशरथ का पिंडदान करने आए थे। जब राम-लक्ष्मण पिंड सामग्री लाने गए तो विलंब होने पर महाराज दशरथ ने छाया रूप में उपस्थित हो सीता जी से शुभ मुहूर्त में पिंड की याचना और भोजन की मांग की।

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पिंड सामग्री के अभाव में दशरथ के कहने पर सीता जी ने महानदी सहित अन्य की उपस्थिति में रेत का पिंड बना कर दशरथ को दान किया था। किंवदंती है कि पिंडदान ग्रहण करने के लिए स्वयं राजा दशरथ का हाथ फल्गु नदी से बाहर निकला था। जब राम और लक्ष्मण पिंडदान संबंधी सामग्री लेकर वापस लौटे तब सीता जी ने पिंडदान करने की बात बताई लेकिन सीता द्वारा पिंडदान की बात का श्री राम को विश्वास नहीं हुआ, वह बेहद चिंतित एवं नाराज हुए।

सीता जी ने गवाही देने के लिए फल्गु नदी, बरगद के पेड़, अग्रि, गाय, तुलसी और गया ब्राह्मण से सच बोलने को कहा। तब फल्गु ने खुद को गंगा जैसी पापहारिणी नदी बनने के लोभ में झूठी गवाही दी, जिससे नाराज होकर सीता जी ने फल्गु को श्राप दिया था कि वह गया नगर में अपना पानी खो देगी। सीता जी के श्राप का असर आज भी देखने को मिलता है।

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