Kundli tv- कोकिला वन से शनिदेव का क्या है नाता

Edited By Updated: 01 Dec, 2018 04:49 PM

relation of shanidev with kokilavan

दिल्ली से 128 कि.मी. की दूरी पर और मथुरा से 60 कि.मी.की दूरी पर स्थित कोसीकलां नामक स्थान पर जहां सूर्यपुत्र भगवान शनिदेव जी का एक अति प्राचीन मंदिर स्थापित है। कोकिलावन धाम का यह सुंदर परिसर लगभग 20 एकड़ में फैला हुआ है।

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दिल्ली से 128 कि.मी. की दूरी पर और मथुरा से 60 कि.मी.की दूरी पर स्थित कोसीकलां नामक स्थान पर जहां सूर्यपुत्र भगवान शनिदेव जी का एक अति प्राचीन मंदिर स्थापित है। कोकिलावन धाम का यह सुंदर परिसर लगभग 20 एकड़ में फैला हुआ है। इसमें श्री शनिदेव मंदिर, श्री देव बिहारी मंदिर, श्री गोकुलेश्वर महादेव मंदिर, श्री गिरिराज मंदिर, श्री बाबा बनखंडी मंदिर प्रमुख हैं। यहां दो प्राचीन सरोवर और गऊशाला भी हैं। कहते हैं जो यहां आकर शनि महाराज के दर्शन करते हैं उन्हें शनि की दशा, साढ़ेसाती और ढैय्या में शनि नहीं सताते। प्रत्येक शनिवार को यहां पर आने वाले श्रद्धालु शनि भगवान की 3 कि.मी. की परिक्रमा करते हैं। 
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शनिश्चरी अमावस्या को यहां पर विशाल मेले का आयोजन होता है। शनि महाराज भगवान श्रीकृष्ण के भक्त माने जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि कृष्ण के दर्शनों के लिए शनि महाराज ने कठोर तपस्या की। शनि की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान श्री कृष्ण ने इसी वन में कोयल के रूप में शनि महाराज को दर्शन दिया इसीलिए यह स्थान आज कोकिला वन के नाम से जाना जाता है।
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माता यशोदा ने नहीं करने दिया शनि को कृष्ण दर्शन
जब श्रीकृष्ण ने जन्म लिया तो सभी देवी-देवता उनके दर्शन करने नंदगांव पधारे। कृष्णभक्त शनिदेव भी देवताओं संग श्रीकृष्ण के दर्शन करने नंदगांव पहुंचे परन्तु मां यशोदा ने उन्हें नंदलाल के दर्शन करने से मना कर दिया क्योंकि मां यशोदा को डर था कि शनिदेव की वक्र-दृष्टि कहीं कान्हा पर न पड़ जाए परन्तु शनिदेव को यह अच्छा नहीं लगा और वह निराश होकर नंदगांव के पास जंगल में आकर तपस्या करने लगे। शनिदेव का मानना था कि पूर्ण परमेश्वर श्रीकृष्ण ने ही तो उन्हें न्यायाधीश बनाकर पापियों को दंडित करने का कार्य सौंपा है तथा सज्जनों, सत्पुरुषों, भगवत् भक्तों का शनिदेव सदैव कल्याण करते हैं।
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....इसलिए बना कोकिला वन
भगवान श्रीकृष्ण शनिदेव की तपस्या से द्रवित हो गए और शनिदेव के सामने कोयल के रूप में प्रकट होकर कहा, हे शनिदेव! आप नि:संदेह अपने कर्तव्य के प्रति समर्पित हों और आपके ही कारण पापियों, अत्याचारियों, कुकर्मियों का दमन होता है और परोक्ष रूप से कर्म-परायण, सज्जनों, संत-पुरुषों, भगवत भक्तों का कल्याण होता है, आप धर्म-परायण प्राणियों के लिए ही तो कुकर्मियों का दमन करके उन्हें भी कर्त्तव्य-परायण बनाते हैं, आपका हृदय तो पिता की तरह सभी कर्त्तव्य निष्ठ प्राणियों के लिए द्रवित रहता है और उन्हीं की रक्षा के लिए आप एक सजग और बलवान पिता की तरह सदैव उनके अनिष्ट स्वरूप दुष्टों को दंड देते रहते हैं। 
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हे शनिदेव! मैं आपसे एक भेद खोलना चाहता हूं कि यह ब्रज-क्षेत्र मुझे परमप्रिय है और मैं इस पवित्र भूमि को सदैव आप जैसे सशक्त-रक्षक और पापियों को दंड देने में सक्षम, कर्त्तव्य-परायण शनिदेव की छत्रछाया में रखना चाहता हूं। इसलिए हे शनिदेव! आप मेरी इस इच्छा को सम्मान देते हुए इसी स्थान पर सदैव निवास करें क्योंकि मैं यहां कोयल के रूप में आपसे मिला हूं इसीलिए आज से यह पवित्र स्थान ‘कोकिलावन’ के नाम से विख्यात होगा। यहां कोयल के मधुर स्वर सदैव गूंजते रहेंगे, आप मेरे इस ब्रज प्रदेश में आने वाले हर प्राणी पर नम्र रहें, साथ ही कोकिलावन-धाम में आने वाला आपके साथ-साथ मेरी भी कृपा का पात्र होगा।
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मंदिर का इतिहास : गरुड़ पुराण में व नारद पुराण में कोकिला बिहारी जी का उल्लेख आता है, तो शनि महाराज का भी कोकिलावन में विराजना भगवान कृष्ण के समय से ही माना जाता है। बीच में कुछ समय के लिए मंदिर जीर्ण-शीर्ण हो गया था, करीब साढ़े तीन सौ वर्ष पूर्व राजस्थान में भरतपुर महाराज हुए थे। उन्होंने भगवान की प्रेरणा से इस कोकिलावन में जीर्ण-शीर्ण हुए मंदिर का अपने राजकोष से जीर्णोद्धार करवाया, तब से लेकर दिनों-दिन मंदिर का विकास होता चला जा रहा है।
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