16 हजार पत्नियों में से ये 9 थीं श्रीकृष्ण के हृदय के सबसे करीब, जानिए इनसे जुड़ी रोचक कथाएं

Edited By Updated: 20 Jul, 2025 07:00 AM

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हिंदू धर्म में भगवान विष्णु को सृष्टि का पालनकर्ता माना गया है। जब उन्होंने द्वापर युग में श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया, तो उनका जन्म माता देवकी से हुआ लेकिन उनका पालन-पोषण यशोदा मैया ने किया।

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हिंदू धर्म में भगवान विष्णु को सृष्टि का पालनकर्ता माना गया है। जब उन्होंने द्वापर युग में श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया, तो उनका जन्म माता देवकी से हुआ लेकिन उनका पालन-पोषण यशोदा मैया ने किया। बचपन से ही गोकुल की गलियों में अपने नटखटपन और लीलाओं से सभी का दिल जीतने वाले श्री कृष्ण, बड़े होकर गोपियों के प्रिय बने और राधा जी से उनका विशेष प्रेम संबंध रहा।

लेकिन राधा और गोपियों के अलावा श्रीकृष्ण की कुल 16,108 पत्नियां थीं। इसका कारण एक विशेष पौराणिक कथा में बताया गया है। एक बार राक्षस नरकासुर ने हजारों राजकुमारियों को बलपूर्वक बंदी बना लिया था। जब श्रीकृष्ण ने उन्हें मुक्त कराया, तो समाज की दृष्टि से उनकी मान-प्रतिष्ठा को बचाने के लिए उन सभी ने श्रीकृष्ण से विवाह की इच्छा जताई। श्रीकृष्ण ने कर्तव्य और करुणा के आधार पर उन सभी को पत्नी रूप में स्वीकार किया। इन हजारों रानियों में से 9 रानियां विशेष रूप से पटरानी कहलाईं। इनके साथ श्रीकृष्ण के विवाह के पीछे अलग-अलग प्रसंग कारण और कथाएं पुराणों में विस्तार से दर्ज हैं। ये रानियां श्रीकृष्ण को सबसे अधिक प्रिय थीं और उनके जीवन में विशेष स्थान रखती थीं। आगे जानिए कौन थीं वे नौ रानियां, कैसे हुआ उनका विवाह और क्यों थीं वे श्रीकृष्ण के हृदय के सबसे करीब- 

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पटरानी रुक्मिणी
श्रीकृष्ण और रुक्मिणी की प्रेम कथा, सभी प्रेम कहानियों में बेहद खास मानी जाती है। विदर्भ की राजकुमारी रुक्मिणी ने मन ही मन श्रीकृष्ण को अपना पति स्वीकार कर लिया था, लेकिन उनके भाई रुक्मी ने जबरन उनका विवाह शिशुपाल से तय कर दिया। इस निर्णय के विरुद्ध, रुक्मिणी ने श्रीकृष्ण को एक पत्र के माध्यम से अपनी भावनाएं प्रकट कीं। पत्र पढ़कर श्रीकृष्ण तुरंत विदर्भ पहुंचे और रुक्मिणी का स्वयंवर स्थल से हरण कर उनसे विवाह कर लिया।

पटरानी कालिंदी
मान्यताओं के अनुसार, रुक्मिणी को विदर्भ से बाहर लाने में अर्जुन ने मदद की थी और अंततः श्रीकृष्ण ने उनसे माता पार्वती के मंदिर में विवाह किया। श्रीकृष्ण की दूसरी पटरानी देवी कालिंदी थी, जो सूर्य देव की पुत्री थीं। मान्यता है कि कालिंदी ने भगवान श्रीकृष्ण को पाने के लिए कठोर तप किया था, जिससे प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण ने स्वयं उनसे विवाह किया।

पटरानी मित्रवृंदा
भगवान श्रीकृष्ण की तीसरी पटरानी मित्रवृंदा थीं, जो उज्जैन की राजकुमारी थीं। कथा के अनुसार, वे अद्वितीय सुंदरता की धनी थीं और श्रीकृष्ण ने उनके स्वयंवर में भाग लेकर उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया।

पटरानी सत्या
श्रीकृष्ण की चौथी पटरानी सत्या थीं, जो काशी के राजा नग्नजित की पुत्री थीं। उनके स्वयंवर की शर्त थी कि जो योद्धा एक साथ सात शक्तिशाली बैलों को वश में करेगा, वही उनका पति बनेगा। श्रीकृष्ण ने यह कठिन चुनौती पूरी कर सत्या से विवाह किया।

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पटरानी जामवंती
श्रीकृष्ण की एक पटरानी जामवंती थीं, जो ऋक्षराज जाम्बवन्त की पुत्री थीं। कथा के अनुसार,स्यमंतक मणि को लेकर श्री कृष्ण और जाम्बवंत के बीच युद्ध हुआ। जब जामवंत ने पहचान लिया कि श्रीकृष्ण ही उनके आराध्य श्री राम के अवतार हैं, तो उन्होंने युद्ध रोक दिया और सम्मान पूर्वक अपनी पुत्री जामवंती का विवाह श्रीकृष्ण से कर दिया।

पटरानी रोहिणी
श्रीकृष्ण की छठी पटरानी रोहिणी थीं, जो गय देश के राजा ऋतुसुकृत की पुत्री थीं। कुछ ग्रंथों में उन्हें कैकेयी या भद्रा भी कहा गया है। उनके स्वयंवर में श्रीकृष्ण ने कोई युद्ध या चुनौती नहीं लड़ी बल्कि रोहिणी ने स्वयं श्रीकृष्ण को पति रूप में चुना और उनका विवाह संपन्न हुआ।

पटरानी सत्यभामा
श्रीकृष्ण की सातवीं पटरानी सत्यभामा थीं, जो राजा सत्राजित की पुत्री थीं। जब श्रीकृष्ण पर स्यमंतक मणि चुराने और प्रसेन की हत्या का झूठा आरोप लगा, तो उन्होंने सच साबित करते हुए मणि लौटाई। इस पर सत्राजित ने अपनी पुत्री सत्यभामा का विवाह सम्मानपूर्वक श्रीकृष्ण से कर दिया।

पटरानी लक्ष्मणा
श्रीकृष्ण की आठवीं पटरानी लक्ष्मणा थीं। स्वयंवर के समय उन्होंने सभी राजाओं के बीच श्रीकृष्ण को वरमाला पहनाकर स्वयं उन्हें अपने जीवनसाथी के रूप में चुना।

पटरानी शैव्या
श्रीकृष्ण की नौवीं और अंतिम पटरानी शैव्या थी, जो राजा शैव्य की पुत्री थीं। उन्होंने भी स्वयंवर में श्रीकृष्ण को वर के रूप में चुना और विवाह के बाद उन्हें नौवीं पटरानी का स्थान मिला। कुछ ग्रंथों में उनका नाम गांधारी भी बताया गया है।

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