Kundli Tv- जो भी प्राणी इस दर पर आए, राजी होकर जाए

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 22 Jun, 2018 01:24 PM

religious place

गांव मानूंपुर लुधियाना की तहसील समराला में पड़ता है। यहां आस्था और श्रद्धा का एक बड़ा केंद्र माता शीतला का मंदिर है, जहां भक्तजन अपने दुखों के निवारण हेतु दूर-दूर से आते हैं। माता शीतला मंदिर वाला स्थान आज से 35-40 वर्ष पहले बिल्कुल वीरान था।

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गांव मानूंपुर लुधियाना की तहसील समराला में पड़ता है। यहां आस्था और श्रद्धा का एक बड़ा केंद्र माता शीतला का मंदिर है, जहां भक्तजन अपने दुखों के निवारण हेतु दूर-दूर से आते हैं। माता शीतला मंदिर वाला स्थान आज से 35-40 वर्ष पहले बिल्कुल वीरान था। यहां के ब्रह्मज्ञानी बाबा बखतौर सिंह जी माता के सच्चे भक्त थे। सन् 1975 में उन्होंने इन मंदिरों का निर्माण शुरू करवाया। पहले ये स्थान गांव में बने माता रानी के अन्य स्थानों की भांति ही होते थे। पूर्ण रूप में ये मंदिर 22 फरवरी, 2000 में आधुनिक तरीके से निर्मित होने शुरू हुए। आज खेतों के बीच स्थित ये मंदिर लोगों की आस्था और श्रद्धा का केंद्र बन चुके हैं। 

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उल्लेखनीय है कि जहां किसी समय जंगल हुआ करता था वहीं आज दिन-रात श्रद्धालुओं तथा गरीबों के लिए लंगर चल रहे हैं। इन मंदिरों की विशेषता यह है कि यहां कोई रसीद आदि नहीं काटी जाती। श्रद्धालु जो भी भेंट करते हैं वह सब माता के मंदिर के निर्माण में ही लगाया जाता है। हर वर्ग के लोग इन मंदिरों में सेवा निभाते हैं। बाबा बखतौर सिंह के भौतिक शरीर त्यागने के बाद यहां की देखभाल और स्थानों की सेवा रिटायर्ड मास्टर बाबा संत सिंह कर रहे हैं।

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इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि किसी वक्त लोग गांव से दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित बरौटों के स्थान पर पशु चराने के लिए ले जाते थे। बाबा बखतौर सिंह भी उनके साथ उस स्थान पर जाते थे। वहां पानी का कोई साधन नहीं था। एक दिन बाबा की मुलाकात एक साधु से हुई। साधु ने उन्हें रोजाना एक घड़ा पानी का लाने को कहा परन्तु उनमें से कोई राजी न हुआ। बाबा बखतौर सिंह ने इस कार्य के लिए हां कह दी और सवा महीने तक लगातार यह सेवा की।

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इस दौरान साधु ने बाबा को कहा कि पानी की सेवा सबसे बड़ी सेवा है, जो तुमने बखूबी निभाई है। मैं तुम्हें एक और सेवा देना चाहता हूं। तुम्हारा उद्देश्य लोगों का भला करना होगा। उन्होंने ये शब्द बाबा जी के आगे 3 बार दोहराए परन्तु बाबा ने मना कर दिया और घर आ गए। अगले दिन बाबा जब वहां गए तो साधु वहां पर नहीं मिला। इसके बाद बाबा जी पर बहुत कष्ट आए। उनके शरीर पर दाने निकल आए तथा आंखों की रोशनी  चली गई। बाबा को साधु की बात का ज्ञान हुआ और उन्हें याद करते हुए उन्होंने विनती की कि मैं सेवा के लिए तैयार हूं। मुझे थोड़ा ठीक कर दो। 

उन्होंने 41 दिन तक पानी में खड़े होकर ख्वाजा पीर तथा माता शीतला जी की कठिन तपस्या की और उन्हें वर प्राप्त हुआ कि तेरी भक्ति पूर्ण हुई। तब से ही वह माता की सेवा में लीन हो गए और सारी उम्र नि:स्वार्थ भाव से दीन-दुखियों की सेवा करते रहे। अपने अंतिम समय में जब वह चलने-फिरने से असमर्थ हो गए तो उन्होंने माता जी से विनती की, ‘‘हे मां, मैं अपनी सेवा भक्ति आपके चरणों में प्रदान कर रहा हूं, जो भी प्राणी आपके दर पर आए राजी होकर जाए।’’ 

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इतना कह कर बाबा जी घर आ गए और उन्होंने अपना पंच भौतिक शरीर त्याग दिया।

इसके बाद इन मंदिरों की देखभाल फिर से बंद हो गई। सन् 2000 में बाबा संत सिंह के परिवार पर दोबारा संकट आया तो उन्होंने इन स्थानों की देखभाल शुरू कर दी, जिसकी मिसाल इन सुंदर मंदिरों से मिलती है। इन स्थानों पर निरंतर देसी घी की जोत जलती रहती है। यहां बाबा जी की भक्ति तथा माता रानी की शक्ति से हर मुराद पूरी होती है। जब भी किसी के माता निकलती है तो उसे इन मंदिरों में लाया जाता है। वैसे तो यहां रोजाना ही मेले लगे रहते हैं परन्तु साल में 2 मेले काफी महत्वपूर्ण हैं-एक चैत्र मास का तथा दूसरा श्रावण मास का। इन मेलों के दौरान मंदिर को अच्छी तरह सजाया जाता है और माता जी का विशेष शृंगार किया जाता है। बड़ी संख्या में श्रद्धालु इन मंदिरों में अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए आते हैं। इन मंदिरों के दरवाजे उनके लिए 24 घंटे खुले रहते हैं। 

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