मानचित्र में केवल ‘स्थल’ हैं, ‘मार्ग’ क्यों नहीं?

Edited By Jyoti,Updated: 27 Mar, 2021 06:10 PM

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रामायण के अनुसार एक बार विश्वामित्र मुनि ने श्री राम लक्ष्मण जी को रात्रि रहते ही उठाया तथा कुछ सामान्य क्रियाओं के बाद वे आश्रम को चल पड़े थे। इस क्षेत्र में एक कहावत है :

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रामायण के अनुसार एक बार विश्वामित्र मुनि ने श्री राम लक्ष्मण जी को रात्रि रहते ही उठाया तथा कुछ सामान्य क्रियाओं के बाद वे आश्रम को चल पड़े थे। इस क्षेत्र में एक कहावत है :

‘भोर भरोली भय उजियारा, बक्सर जाय ताड़का मारा’

अर्थात श्री राम को जहां भोर हुई वहां भरोली गांव है तथा जहां प्रकाश हुआ वहां उजियारा गांव बसा है। इनमें आपसी अंतर भी लगभग 2 कि.मी. ही है।

यह बात ध्यान देने योग्य है कि हमने मानचित्र तथा विवरण में केवल स्थलों का विवरण दिया है, मार्ग नहीं बताया, इसके निम्रलिखित कारण हैं :

(क) अभी तक हम लगभग 41+249= 290 स्थलों की खोज कर पाए हैं। ये स्थल बहुत बड़ी संख्या में और भी होंगे जिनकी खोज हमारी तरह अन्य लोग भी कर रहे होंगे। यथासमय पाए गए अन्य स्थल भी जोड़े जाएंगे। अभी से मार्ग बनाकर भविष्य के शोध कार्य पर हम विराम नहीं लगा सकते।

(ख) वाल्मीकि रामायण के अनुसार: तदनंतर महान अस्त्रों के ज्ञाता श्री रामचंद्र जी बारी-बारी से उन सभी तपस्वी मुनियों के आश्रमों पर गए जिनके यहां वे पहले रह चुके थे। उनके पास भी (उनकी भक्ति देख) दोबारा जाकर रहे। वा.रा.3/11/23

कहीं दस महीने, कहीं साल भर, कहीं चार महीने, कहीं पांच या छ: महीने, कहीं उससे भी अधिक समय (अर्थात सात महीने), कहीं उससे भी अधिक आठ महीने, कहीं आधे मास अधिक अर्थात साढ़े आठ महीने, कहीं तीन महीने और कहीं आठ और तीन अर्थात ग्यारह महीने तक श्री राम चंद्र जी ने सुखपूर्वक निवास किया। वा.रा.3/11/24, 25

इस प्रकार मुनियों के आश्रमों पर रहते और अनुकूलता पाकर आनंद का अनुभव करते हुए उनके दस वर्ष बीत गए। वा.रा 3/11/26

इस प्रकार सब ओर घूम-फिर कर धर्म के ज्ञाता भगवान श्री राम सीता के साथ फिर सुतीक्ष्ण के आश्रम पर ही लौट आए। वा.रा 3/11/27

श्री राम दंडक वन में पहले किन ऋषियों के पास गए यह नहीं कहा जा सकता, फिर वे प्रेम के कारण पुन: कहां-कहां जाकर सुतीक्ष्ण जी के आश्रम में आए, कहना संभव नहीं  लगता, अत: मार्ग की रेखा खींचना रामायण की मर्यादा का उल्लंघन तथा अपनी सीमा से बाहर जाना होगा।

(ग) मार्ग की दृष्टि से सुतीक्ष्ण जी का आश्रम अति महत्वपूर्ण है। उनके कई आश्रम मिले भी हैं किन्तु जहां से उन्होंने अगस्त्य जी के आश्रम के लिए प्रस्थान किया वह संभवत: नासिक जिले में सप्तशृंग के पास है जो लुप्त प्राय: है। इस संबंध में अभी शोध अपेक्षित है।

शोध कार्य में वाल्मीकि रामायण को आधार बनाकर अन्य रामायणों तथा लोक कथाओं, जन श्रुतियों को भी लिया गया है किन्तु कई बार लोक विश्वास को लेकर दुविधा की स्थिति बन जाती है। जैसे शबरी आश्रम, पंचवटी तथा विभिन्न ऋषियों के आश्रम आदि। जहां मुझे ठीक लगा उस स्थल के बारे में स्पष्ट लिखा है किन्तु जहां संगति नहीं बैठती वहां कोई टिप्पणी नहीं की है। जन मानस की आस्था व विश्वास का प्रश्र है।

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