आध्यात्मिक साधना तथा संयम पथ के पथिक स्वामी ‘श्री रूप चंद जी महाराज’

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 13 Mar, 2021 12:10 PM

shri roop chand ji maharaj

भारतीय वसुंधरा ने समय-समय पर ऐसे महापुरुष दिए हैं जिन्होंने अपने तप, त्याग और आध्यात्मिक साधना से जन मानस को प्रभावित किया।

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भारतीय वसुंधरा ने समय-समय पर ऐसे महापुरुष दिए हैं जिन्होंने अपने तप, त्याग और आध्यात्मिक साधना से जन मानस को प्रभावित किया। ऐसे महापुरुषों की श्रेणी में आध्यात्मिक साधना तथा संयम पथ के पथिक स्वामी श्री रूप चंद जी महाराज का नाम भी प्रमुखता से लिया जाता है।

इनका जन्म 1811 ई. लुधियाना में उनके ननिहाल में हुआ। पूज्य पिता श्री अमोलक राय ओसवाल और माता श्रीमती मंगला देवी की प्रसन्नता का कोई ठिकाना न रहा। पूर्व जन्मों के शुभ संस्कारों के कारण आप ने पूज्य गुरुदेव श्री नंद लाल जी महाराज के श्री चरणों में बड़ौदा में 1837 ई. में 26 वर्ष की आयु में मुनि दीक्षा अंगीकार की।

‘उत्तराध्ययन सूत्र में भगवान महावीर ने अपने श्रमणों को शिक्षा देते हुए कहा था, ‘‘हे मेरे प्रिय श्रमणो! यदि तुम लोग प्रतिबद्ध हो तो मोह निद्रा में सोए हुए लोगों में जागरूक होकर रहो क्योंकि समय निर्दयी है और शरीर निर्बल है। इसलिए प्रमाद रहित होकर संयम पथ पर विचरण करो।’’

स्वामी श्री रूपचंद जी महाराज ने भगवान महावीर के इस प्रतिबोध को अपने जीवन का सम्बल बना लिया। वह अधिकतर मौन रहते थे और ध्यान साधना के साथ-साथ स्वाध्याय में लीन रहते थे। लोग उनके तप और त्याग से अत्यंत प्रभावित थे। वह निंदा और स्तुति में सम भाव रखते थे। वह एकल विहारी थे क्योंकि उन्होंने अपना कोई शिष्य नहीं बनाया था।

आपने अपने मुनि जीवन में 42 चातुर्मास किए। इन चातुर्मासों में अपने तप और त्याग की ममहक बिखेरी और सहस्रों प्राणियों को कुव्यसन मुक्त किया तथा भगवान महावीर के संदेशों को जन-जन तक पहुंचाया।

जिस औघड़ संन्यासी ने आप पर प्रहार किया था, आपने उसका भी उद्धार किया। आप जैसे महापुरुष में अपने विरोधी को भी क्षमा करने की क्षमता थी, इसीलिए तो आप जन-जन के वंदनीय बन गए थे।

श्री रूपचंद एस.एस. जैन बिरादरी जगराओं की ओर से 14 मार्च को आपका दीक्षा जयंती दिवस सामयिक एवं जाप के रूप में मनाया जा रहा है।

 

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