Edited By Jyoti,Updated: 10 Jul, 2022 12:12 PM

श्रीमद राजचंद्र भाई गुजरात के एक बड़े व्यापारी थे। उनका हीरे-जवाहरात का व्यापार था। वह एक उच्च कोटि के आध्यात्मिक पुरुष थे। महात्मा गांधी ने उन्हें गुरु माना था। अक्सर लोग अचंभे में पड़ जाते कि एक जौहरी को महात्मा अपना गुरु क्यों कहते हैं
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श्रीमद राजचंद्र भाई गुजरात के एक बड़े व्यापारी थे। उनका हीरे-जवाहरात का व्यापार था। वह एक उच्च कोटि के आध्यात्मिक पुरुष थे। महात्मा गांधी ने उन्हें गुरु माना था। अक्सर लोग अचंभे में पड़ जाते कि एक जौहरी को महात्मा अपना गुरु क्यों कहते हैं? जो लोग उन्हें नहीं जानते थे, उन्हीं के मन में यह सवाल पैदा होता था। ऊपर से तो वह व्यापारी थे परंतु भीतर से वैरागी थे। उनके जीवन में एक बार परीक्षा की घड़ी आई। किसी के साथ उनका एक मामला तय हुआ। लिखा-पढ़ी हो गई।

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फिर जब माल देने का समय आया तो दाम इतने बढ़ गए कि राजचंद्रभाई को करोड़ों का मुनाफा हो जाता और उस आदमी का दिवाला निकल जाता। राजचंद्र भाई ने उसे बुला भेजा। उस आदमी ने हाथ जोड़कर कहा, ‘‘मैं अपने वचन पर स्थिर हूं, जिस पर दस्तखत हो गए हैं, उसी के अनुसार माल पहुंचाऊंगा। आप चिंता न करें।’’ राजचंद्र भाई ने समझाया, ‘‘वह बात अब बेमानी हो गई है। आप अपने कागजात ले आइए।’’
वह आदमी कागजात ले आया। उसने फिर से कहा, ‘‘मैं अपने दस्तखत पर कायम हूं।’’

राजचंद्र भाई ने कागजात उठाए और फाड़ दिए। वह आदमी देखता रह गया। राजचंद्र भाई बोले, ‘‘मैं व्यापार करता हूं, मुनाफा कमाने का हकदार हूं। आइए, हम दूसरे कागजात तैयार करेंगे।’’ और नए दामों के अनुसार नए कागजात बन गए। जो आदमी पूरी तरह से बर्बाद होने जा रहा था, उसने कहा, ‘‘आप व्यापारी नहीं, आप तो महात्मा हैं।’’