Edited By Prachi Sharma,Updated: 18 Sep, 2025 07:00 AM

Shukra Pradosh Vrat Katha: 19 सितंबर को शुक्र प्रदोष का व्रत रखा जाएगा और यह व्रत महादेव को समर्पित होता है। इस दिन पूजा-पाठ करने से जीवन के समस्त दुःख कट जाते हैं। मान्यता है कि जो भी श्रद्धा से प्रदोष व्रत करता है, उसे भगवान शंकर की विशेष कृपा...
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Shukra Pradosh Vrat Katha: 19 सितंबर को शुक्र प्रदोष का व्रत रखा जाएगा और यह व्रत महादेव को समर्पित होता है। इस दिन पूजा-पाठ करने से जीवन के समस्त दुःख कट जाते हैं। मान्यता है कि जो भी श्रद्धा से प्रदोष व्रत करता है, उसे भगवान शंकर की विशेष कृपा प्राप्त होती है। यह व्रत न केवल मानसिक शांति देता है, बल्कि जीवन के कष्टों और दुखों से भी मुक्ति दिलाता है। जो भी भक्त इस व्रत को करता है, उसके लिए इसकी कथा सुनना या पढ़ना बहुत जरूरी माना गया है क्योंकि यह पूजा का एक महत्वपूर्ण अंग है। आइए, अब इस पवित्र व्रत की कथा को जानते हैं।
Shukra Pradosh Vrat Katha शुक्र प्रदोष व्रत कथा
बहुत समय पहले अंबापुर नामक एक गांव में एक विधवा ब्राह्मणी रहा करती थी। वह अपने जीवन का गुज़ारा भिक्षा मांगकर करती थी और बड़े ही सरल भाव से जीवन बिता रही थी। एक दिन उसे रास्ते में दो अनाथ बालक मिले। उनका हाल देख वह उन्हें अपने घर ले आई और स्नेहपूर्वक उनका पालन-पोषण करने लगी। कुछ समय बाद वह ब्राह्मणी उन दोनों बच्चों को लेकर ऋषि शांडिल्य के आश्रम पहुंची और उनके बारे में जानना चाहा। ऋषि ने अपने योगबल से बताया कि ये दोनों बालक विदर्भ देश के राजा के पुत्र हैं, जिनका राज्य गंधर्व नरेश ने छीन लिया है।

यह जानकर ब्राह्मणी बहुत चिंतित हुई और ऋषि से पूछा कि इन बच्चों का भाग्य कैसे सुधर सकता है। तब ऋषि शांडिल्य ने उन्हें भगवान शिव के प्रदोष व्रत को करने की सलाह दी। ब्राह्मणी और दोनों राजकुमारों ने पूरे श्रद्धा और नियमों के साथ शुक्र प्रदोष व्रत करना शुरू किया। व्रत का प्रभाव जल्द ही दिखाई देने लगा। बड़े राजकुमार की मुलाकात एक राजकुमारी अंशुमती से हुई और दोनों ने विवाह करने का निश्चय किया। अंशुमती के पिता ने राजकुमारों की मदद की और गंधर्व नरेश के खिलाफ युद्ध में उनका साथ दिया। युद्ध में विजय प्राप्त कर राजकुमारों ने अपना खोया हुआ राज्य पुनः प्राप्त किया।
राज्य प्राप्ति के बाद उन्होंने ब्राह्मणी को राजदरबार में आदर का स्थान दिया। वह अब सुखपूर्वक रहने लगी और भगवान शिव की परम भक्त बन गई। इस प्रकार, प्रदोष व्रत के प्रभाव से न केवल राजकुमारों को राज्य मिला, बल्कि ब्राह्मणी को भी सम्मान और सुख की प्राप्ति हुई।
