हिंदू धर्म में क्या है वट वृक्ष की विशेषता, जानें यहां

Edited By Jyoti,Updated: 27 May, 2021 04:02 PM

significance of banyan tree

सनातन धर्म में न केवल देवी-देवता की पूजा बल्कि इसमें कई तरह के पेड़ आदि की भी पूजा का अधिक महत्व है। इतना ही नहीं बल्कि इन पेड़ पौधों से जुड़े कई व्रत त्यौहार भी रखे जाते हैं

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
सनातन धर्म में न केवल देवी-देवता की पूजा बल्कि इसमें कई तरह के पेड़ आदि की भी पूजा का अधिक महत्व है। इतना ही नहीं बल्कि इन पेड़ पौधों से जुड़े कई व्रत त्यौहार भी रखे जाते हैं। इन्हीं में से एक है वट सावित्री का व्रत। मान्यताओं के अनुसार इस दिन महिलाएं वट वृक्ष की पूजा अर्चना करती हैं। पुत्र कामना व घर की सुख-शांति के लिए वट वृक्ष को जल अर्पित करती हुई इस पर रक्षा सूत्र बांधती है तथा 108 बार इसकी परिक्रमा करती है। हिंदू धर्म के पुराणों की मानें तो वटवृक्ष के मूल में भगवान ब्रह्मा, मध्य, में विष्णु तथा अग्रभाग में महादेव का वास होता है। 

वैदिक धर्म के साथ-साथ जैन धर्म में भी वट का काफी महत्व माना जाता है। कुछ मान्यताओं के अनुसार इसे अमरता का प्रतीक भी माना जाता है। स्कंद पुराण के अनुसार वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या तथा पूर्णिमा तिथि के दिन किया जाता है। मुख्य रूप से वट सावित्री का वट गुजरात. महाराष्ट्र व दक्षिण भारत ती स्त्रियां ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा तिथि की इस व्रत को करती हैं। कहा जाता है कि इस पवित्र वट यानी बरगद के वृक्ष में सृष्टि के सृजन, पालन और संहार करने वाले त्रिदेवों की दिव्य ऊर्जा का अक्षय भंडार उपलब्ध होता है। प्राचीन ग्रंथ वृक्षायुर्वेद में वर्णन मिलता है कि जो यथोचित रूप से बरगद के वृक्ष लगाता है, वह अंत में शिव धाम को प्राप्त होता है। बता दें कि इस वृक्ष का जितना धार्मिक दृष्टि से महत्व है, उतना ही नहीं चिकित्सा की दृष्टि से भी है। 

इसके सभी हिस्से कसैले, मधुर, शीतल तथा आंतों का संकुचन करने वाले होते हैं। इसका उपयोग खासतौर पर कफ, पित्त आदि विकार को नष्ट करने के लिए किया जाता है। 

इसके अलावा वमन, ज्वर, मूर्च्छा आदि में भी इसका प्रयोग लाभदायक है। इससे कांति में वृद्धि होती है।

कहा जाता है वट वृक्ष के छाल और पत्तों से औषधियां भी बनाई जाती हैं।
 
ज्योतिष शास्त्रियों के अनुसार वट सावित्री पूर्णिमा के दिन किसी योग्य ब्राह्मण अथवा जरूरतमंद व्यक्ति को अपनी श्रद्धानुसार दान-दक्षिणा दें, इससे पुण्‍यफल प्राप्त होता है। इसके अलावा इस दिन प्रसाद के रूप में चने व गुड़ का वितरण करने का भी अधिक महत्व है। 


 

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