Edited By Niyati Bhandari,Updated: 27 Oct, 2023 09:31 AM
कितना सुखदायी और शांतमयी होता था इस भारत का बुढ़ापा। जब बुजुर्ग परिवार के हर सदस्य से सम्मान पाता था, पर समय की गति को कौन पकड़ सका।
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Smile please: कितना सुखदायी और शांतमयी होता था इस भारत का बुढ़ापा। जब बुजुर्ग परिवार के हर सदस्य से सम्मान पाता था, पर समय की गति को कौन पकड़ सका। यही वजह है कि सारे जीवन की कमाई लेकर भी आज बच्चे अपने वृद्ध माता-पिता को वृद्धाश्रम की राह दिखाते हैं। इस नींव के पत्थर को ही घर का कचरा समझकर वृद्धाश्रम में भेज देते हैं।
आज की युवा पीढ़ी भूल रही है कि बुढ़ापा कब आपसे आपका कीमती समय मांगता है। बुढ़ापा तो बस आपकी एक हल्की-सी मुस्कान चाहता है, अगर दे सको तो। लेकिन शायद आप यह नहीं जानते कि जो कार्य आपके लिए असंभव हो जाता है उसको हमारे बुजुर्ग चुटकियों में संभव कर देते हैं क्योंकि वे अनुभव के खजाने के मालिक हैं और आप भूल जाते हैं कि एक दिन हमें भी इस प्रक्रिया से गुजरना होगा, तब हमारी औलादें भी ऐसा ही करेंगी।
जैसा बोएंगे वैसा ही काटेंगे, यही तो होगा इसलिए मेरा मानना है कि बुजुर्गों का सम्मान करें और अपने बच्चों को सम्मान करना सिखाएं।
मेरा अनुभव कहता है कि एक बुजुर्ग सौ अध्यापकों के बराबर होता है। जिस घर में दादा-दादी हैं, उनके बच्चों का हौसला देखिए और जिनके नहीं हैं, उनका देखिए, मेरे हिसाब से दिन-रात का अंतर मालूम होगा।
मैंने अनुभव किया, सन् 1995 में मेरे पिता जी की उम्र 90 साल थी, जो चल-फिर नहीं सकते थे। फिर भी अगर मुझे कहीं बाहर घूमने जाना होता, तो पीछे मुड़कर यह नहीं देखना पड़ता था कि घर में कोई नहीं है। बिल्कुल ब्रेफ्रिक होकर कहते थे कि पिता जी हैं, हमें कोई चिन्ता नहीं। अब घर के उन महान स्तम्भ को हम खुशियां न दें तो हमारा पूजा-पाठ किया बेकार नहीं जाएगा ?