Srimad Bhagavad Gita: श्री कृष्ण से जानें, क्या होना चाहिए भक्ति का उद्देश्य

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 16 Aug, 2023 10:11 AM

srimad bhagavad gita

सांख्ययोगौ पृथग्बाला: प्रवदंति न पंडिता:। एकमप्यास्थित: स यगुभयोर्विन्दते फलम्॥5.4॥

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सांख्ययोगौ पृथग्बाला: प्रवदंति न पंडिता:। एकमप्यास्थित: स यगुभयोर्विन्दते फलम्॥5.4॥

अनुवाद एवं तात्पर्य : अज्ञानी ही भक्ति (कर्मयोग) को भौतिक जगत के विश्लेषणात्मक अध्ययन (सां य) से भिन्न कहते हैं।

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 जो वस्तुत: ज्ञानी हैं, वे कहते हैं कि जो इनमें से किसी एक मार्ग का भलीभांति अनुसरण करता है, वह दोनों के फल प्राप्त कर लेता है।

भौतिक जगत के विश्लेषणात्मक अध्ययन (सांख्य) का उद्देश्य आत्मा को प्राप्त करना है। भौतिक जगत की आत्मा विष्णु या परमात्मा है। भगवान की भक्ति का अर्थ परमात्मा की सेवा है। एक विधि से वृक्ष की जड़ खोजी जाती है और दूसरी विधि से उसको सींचा जाता है।

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सां यदर्शन का वास्तविक छात्र जगत के मूल अर्थात विष्णु को ढूंढता है और फिर पूर्ण ज्ञान सहित अपने को भगवान की सेवा में लगा देता है। अत: मूलत: इन दोनों में कोई भेद नहीं है क्योंकि दोनों का उद्देश्य विष्णु की प्राप्ति है।

जो लोग चरम उद्देश्य को नहीं जानते, वही कहते हैं कि सां य और कर्मयोग एक नहीं हैं, किन्तु जो विद्वान है, वह जानता है कि इन दोनों भिन्न विधियों का उद्देश्य एक है।

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