कौन थे ऋषि शौनक, धार्मिक ग्रंथों में है वर्णन

Edited By Jyoti,Updated: 04 Mar, 2021 03:31 PM

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इतना तो सब जानते ही होंगे कि आकाश में 7 तारों का एक मंडल नजर आता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इन्हीं  7 तारों के मंडल को सप्तर्षियों का मंडल भी कहा जाता है।

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इतना तो सब जानते ही होंगे कि आकाश में 7 तारों का एक मंडल नजर आता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इन्हीं  7 तारों के मंडल को सप्तर्षियों का मंडल भी कहा जाता है। इसके अतिरिक्त सप्तर्षि से उन 7 तारों का बोध होता है, जो ध्रुव तारे की परिक्रमा करते हैं। कहा जाता है मंडल के तारों के नाम भारत के महान 7 संतों के आधार पर रखे गए हैं। तो वहीं सनातन धर्म के वेंदों में भी उक्त मंडल की स्थिति, गति, दूरी और विस्तार की विस्तृत चर्चा मिलती है। मगर ऋषियों की संख्या 7 ही क्यों? 

ये सवाल बहुत से लोग के मन में आता है, लेकिन शायद इसका जवाब बहुत कम लोगों को मिला है। बता दें धार्मिक शास्त्रों में इसके बारे में बकायदा वर्णन किया गया है। तो आइए जानते हैं शास्त्रों में शामिल इससे संबंधित श्लोक व उसका अर्थात- 

श्लोक- 
सप्त ब्रह्मर्षि, देवर्षि, महर्षि, परमर्षय:।
कण्डर्षिश्च, श्रुतर्षिश्च, राजर्षिश्च क्रमावश:।। 

अर्थात: 1. ब्रह्मर्षि, 2. देवर्षि, 3. महर्षि, 4. परमर्षि, 5. काण्डर्षि, 6. श्रुतर्षि और 7. राजर्षि- ये 7 प्रकार के ऋषि होते हैं इसलिए इन्हें सप्तर्षि कहते हैं।

सनातन धर्म के ग्रंथों व पुराणों में काल को मन्वंतरों में विभाजित कर प्रत्येक मन्वंतर में हुए ऋषियों के ज्ञान और उनके योगदान को परिभाषित किया है। इसके अनुसार प्रत्येक मन्वंतर में प्रमुख रूप से 7 प्रमुख ऋषि हुए हैं। जिनमें से एक थे ऋषि शौनक। कौन थे ये ऋषि आइए जानते हैं-

पुराणों के अनुसार ऋषि शौनक एक वैदिक आचार्य थे, जो भृगुवंशी शुनक ऋषि के पुत्र थे। इनका पूरा नाम इंद्रोतदैवाय शौनक था।

बताया जाता है कि ऋषि शौनक ने कुल 10 हज़ार विद्यार्थियों को गुरुकुल को चलाकर कुलापित का विलक्षण सम्मान हासिल किया था। ऐसा कहा जाता है कि इनसे पहले किसी भी अन्य ऋृषि को ऐसा सम्मान प्राप्त नहीं हुआ था। 

इन्होंने यानि शौन राजा ने महाभारत काल में राजा जनमेजय का अश्वमेध और सर्पसत्र नामक यज्ञ संपन्न करवाया था।

ऋष्यानुक्रमणी ग्रंथानुसार, असल में शौन ऋषि अंगिरस्गोत्रीय शनुहोत्र ऋषि के पुत्र थे, परंतु बाद में भृगु-गोत्रीय शनुक ने इन्हें अपना पुत्र मान लिया था। जिस कारण इन्हें शौनक पैतृक नाम प्राप्त हुआ था। 

शौन राजा ने ऋक्प्रातिशाख्‍य, ऋग्वेद छंदानुक्रमणी, ऋग्वेद ऋष्यानुक्रमणी, ऋग्वेद अनुवाकानुक्रमणी, ऋग्वेद सूक्तानुक्रमणी, ऋग्वेद कथानुक्रमणी, ऋग्वेद पादविधान, बृहदेवता, शौनक स्मृति, चरणव्यूह, ऋग्विधान आदि अनेक ग्रंथ लिखे हैं। इसके अतिरिक्त इन्होंने ही शौनक गृह्सूत्र, शौनक गृह्यपरिशिष्ट, वास्तुशा्सत्र ग्रंथ की रचना भी की थी।

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