Swadeshi Diwas: स्वदेशी आंदोलन के प्रथम बलिदानी थे बाबू गेनू, पढ़ें उनके सहास की कहानी

Edited By Updated: 12 Dec, 2023 08:52 AM

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12 दिसंबर, 1930 भारत के स्वदेशी आंदोलन का अत्यंत महत्वपूर्ण दिन है जिसे आज भी ‘स्वदेशी दिवस’ के रूप में याद किया जाता है। इसी दिन 22 वर्षीय बाबू गेनू ने महात्मा गांधी के स्वदेशी आंदोलन से प्रभावित होकर

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Swadeshi Diwas: 12 दिसंबर, 1930 भारत के स्वदेशी आंदोलन का अत्यंत महत्वपूर्ण दिन है जिसे आज भी ‘स्वदेशी दिवस’ के रूप में याद किया जाता है। इसी दिन 22 वर्षीय बाबू गेनू ने महात्मा गांधी के स्वदेशी आंदोलन से प्रभावित होकर कपड़ा मिल से विदेशी कपड़े का ट्रक रोकने के लिए अपना जीवन न्यौछावर कर दिया था। उनका जन्म 1 जनवरी, 1908  को महाराष्ट्र के पुणे जिले के ग्राम महालुंगे पडवल में एक अत्यंत गरीब किसान परिवार में मां कोंडाबाई की कोख से पिता ज्ञानोबा आब्टे के घर हुआ था। दुर्भाग्य से पिता की शीघ्र ही मृत्यु के बाद बड़े भाई भीम और माता ने इन्हें बहुत मेहनत से पाला। उनकी आज्ञानुसार ये जानवरों को चराने के लिए जाते थे। एक बार इनका एक बैल पहाड़ी से गिर कर मर गया। इस पर बड़े भाई ने बहुत डांटा, जिससे दुखी होकर गेनू मुबंई आकर अपनी मां, जो एक कपड़ा मिल में मजदूरी करती थीं, के साथ काम करने लगे। 

उन दिनों पूरे भारत वर्ष में स्वतंत्रता संघर्ष छिड़ा हुआ था, स्वदेशी वस्तुओं का इस्तेमाल तथा विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का आंदोलन भी जोरों पर था। 22 वर्षीय बाबू गेनू भी इस आंदोलन में बढ़-चढ़ कर भाग लेते थे। मिल के अपने साथियों को एकत्र कर वह आजादी एवं स्वदेशी का महत्व बताया करते थे। उन्होंने साइमन कमीशन का विरोध करने के लिए भी एक बड़ा जुलूस आयोजित किया था।  26 जनवरी, 1930 को ‘सम्पूर्ण स्वराज्य मांग दिवस’ आंदोलन में सक्रियता से भाग लेने के कारण बाबू  गेनू को तीन महीने के लिए जेल भेज दिया, जिससे इनके मन में स्वतंत्रता प्राप्ति की चाह और तीव्र हो गई।

12 दिसंबर, 1930 को कपड़ा मिल मालिक मैनचेस्टर से आए कपड़े को अपने गोदाम से मुंबई शहर में भेजने वाले थे। जब बाबू गेनू को यह पता लगा तो इन्होंने अपने साथियों को एकत्र कर हर कीमत पर इसका विरोध करने का निश्चय किया। 11 बजे वह कालबादेवी स्थित मिल के गेट पर आ गए। धीरे-धीरे पूरे शहर में यह खबर फैल गई और हजारों लोग वहां एकत्र हो गए। यह सुनकर पुलिस भी वहां आ गई। कुछ ही देर में विदेशी कपड़े से लदा ट्रक मिल से बाहर आया, जिसे सशस्त्र पुलिस ने घेर रखा था। गेनू के संकेत पर उनका साथी घोण्डू रेवणकर ट्रक के आगे लेट गया जिससे ट्रक रुक गया। 

जनता ‘वन्दे मातरम्’ और ‘भारत माता की जय’ के नारे लगाने लगी। पुलिस ने उसे घसीट कर हटा दिया पर उसके हटते ही दूसरा कार्यकर्ता वहां लेट गया। इस प्रकार एक के बाद एक 30 स्वयंसेवक लेट गए। यह देख अंग्रेज सार्जेंट ने आंदोलनकारियों पर ट्रक चढ़ाने को कहा पर भारतीय चालक इसके लिए तैयार नहीं हुआ। इस पर सार्जेंट उसे हटाकर स्वयं चालक की सीट पर जा बैठा। 

यह देख बाबू गेनू स्वयं ट्रक के आगे लेट गए। सार्जेंट की आंखों में खून उतर आया। उसने ट्रक से 22 वर्षीय नौजवान बाबू गेनू को रौंद डाला। सब लोग भौचक्के रह गए। गेनू का शरीर धरती पर ऐसे पसरा था, मानो कोई छोटा बच्चा अपनी मां की छाती से लिपटा हो। इन्हें तत्क्षण अस्पताल ले जाया गया, परंतु वह तब तक शहीद हो चुके थे। स्वदेशी के लिए बलिदान देने वालों की माला में पहला नाम लिखाकर बाबू गेनू ने स्वयं को अमर कर लिया। तभी से 12 दिसंबर को ‘स्वदेशी दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।

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