क्या मंदिरों से जुड़ी ये बातें आप जानते हैं?

Edited By Updated: 03 Feb, 2021 07:57 PM

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हिंदू धर्म में धार्मिक स्थलों व मंदिरों आदि का अधिक महत्व है। हिंदू धर्म से संबंध रखने वाले लोग किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले धार्मिक स्थलों पर जा कर अपने आराध्य को पूजते हैं। मगर मंदिर का अर्थ क्या है?

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
हिंदू धर्म में धार्मिक स्थलों व मंदिरों आदि का अधिक महत्व है। हिंदू धर्म से संबंध रखने वाले लोग किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले धार्मिक स्थलों पर जा कर अपने आराध्य को पूजते हैं। मगर मंदिर का अर्थ क्या है? 

ये एक ऐसा प्रश्न है जिसका उत्तर शायद बहुत कम लोग जानते होंगे। तो आज हम आपको बताते हैं। मंदिर शब्द का अर्थ साथ ही साथ बताएंगे इससे जुड़ी कुछ और रोचक और रहस्यमयी बातें जिनके बारे में जानना शायद प्रत्येक उस व्यक्ति के लिए आवश्यक है जो हिंदू धर्म से संबंध रखता है। जी हां, रोज़ाना हम आपको विभिन्न प्रकार के मंदिरों आदि के बारे में बताते हैं मगर आज हम आपको मंदिर है क्या इस बारे में जानकारी देने वाले हैं। 

पौराणिक शास्त्रों में मंदिर का अर्थ बताया गया है 'मन से दूर कोई स्थान'। मंदिर का शाब्दिक अर्थ 'घर' है और मंदिर को 'द्वार' भी कहते हैं, जैसे रामद्वारा, गुरुद्वारा आदि। मंदिर को 'आलय' भी कह सकते हैं, ‍जैसे ‍कि शिवालय, जिनालय आदि। लेकिन जब हम कहते हैं कि मन से दूर जो है, वह मंदिर तो उसके मायने बदल जाते हैं। यह ध्यान रखें कि मंदिर को अंग्रेजी में 'मंदिर' ही कहते हैं 'टेम्पल' नहीं। 

द्वारा किसी भगवान, देवता या गुरु का होता है, तो वहीं आलय सिर्फ शिव का होता है। ‍मंदिर या स्तूप सिर्फ ध्यान-प्रार्थना के लिए होते हैं, मगर अगर वर्तमान समय की बात करें तो उक्त सभी स्थान को 'मंदिर' कहा जाता है, जिसमें देव प्रतिमा की पूजा होती है।

मन से दूर रहकर निराकार ईश्वर की आराधना या ध्यान करने के स्थान को 'मंदिर' कहते हैं। शास्त्रो में कहा गया है कि जब व्यक्ति अपने जूते उतारकर मंदिर में प्रवेश करते हैं, उसी प्रकार मंदिर जाने से मन और अहंकार भी बाहर छूट जाता है। 

बहुत कम लोग जानते हैं कि देवस्थल और पूजा स्थल में अंतर होता है। कहा जाता है कि जहां देवताओं की पूजा होती है उसे 'देवरा' या 'देव-स्थल' कहा जाता है। तो वहीं जहां पूजा होती है उसे पूजास्थल, जहां प्रार्थना होती है उसे प्रार्थनालय कहते हैं। धार्मिक वेदज्ञ का मानना है कि 'भगवान प्रार्थना से प्रसन्न होते हैं, पूजा से नहीं।'

अगर हम प्राचीनकाल के मंदिरों की बात करें तो इसकी रचना इस प्रकार की थी कि सभी मंदिर कुछ-कुछ पिरामिडनुमा आकार के होते थे। शुरुआत से ही धर्मवेत्ताओं ने मंदिर की रचना पिरामिडनुमा आकाक के ही करवाई। बल्कि ऋषि-मुनियों की कुटिया भी उसी प्रकार की होती थी। तो ये थे मंदिर व धार्मिक स्थल से जुड़े कुछ खास रोचक रहस्य। 
 

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