Edited By Niyati Bhandari,Updated: 23 Nov, 2021 12:12 PM
आज हम बात कर रहे हैं एक ऐसे गांव की जिसे शिवजी के चेलों का गांव कहा जाता है। भरमौर के एक छोर पर बसे इस गांव में समय के साथ काफी बदलाव आया है लेकिन गांव में बने लकड़ी तथा स्लेटयुक्त मकान आज भी
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Trilochan Mahadev mandir: आज हम बात कर रहे हैं एक ऐसे गांव की जिसे शिवजी के चेलों का गांव कहा जाता है। भरमौर के एक छोर पर बसे इस गांव में समय के साथ काफी बदलाव आया है लेकिन गांव में बने लकड़ी तथा स्लेटयुक्त मकान आज भी अपनी प्राचीनता को उजागर करते हैं। यूं तो गांव के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि है, लेकिन गांव के कुछ लोग अच्छी शिक्षा हासिल कर उच्च पदों पर भी आसीन हैं।
इस गांव को शिवजी के चेलों का गांव क्यों कहा जाता है, इसी के जवाब के लिए जब गांव का दौरा कर वहां के लोगों के साथ बातचीत की तो पता चला कि भरमौर अर्थात ब्रह्मपुर की स्थापना के दौरान ही संचुई गांव में कुछ लोगों का कुटुम्ब रहता था। एक दिन भगवान भोलेनाथ ने एक गद्दी का रूप धारण कर गांव में एक घर में आटा और नमक मांगा।
कहा जाता है कि भोलेनाथ जिस घर में आटा और नमक मांगने गए वास्तव में उस घर में नमक और आटा नहीं था। घर के अंदर से निकली एक बूढ़ी औरत ने गद्दी के भेष में आए भोले शंकर से कहा कि बाबा हमारे पास आटा और नमक नहीं है और आप किसी दूसरे घर से आटा-नमक मांग लो। यह सुनकर भोलेनाथ ने कहा माई क्यों झूठ बोल रही हो? आपकी रसोई में रखे लकड़ी के संदूक में आटा और बोरी में नमक रखा तो है। गद्दी बाबा की बात सुनकर जब बूढ़ी औरत घर के अंदर गई तो वास्तव में लकड़ी का संदूक आटे से भरा पड़ा था। बूढ़ी औरत ने एकदम झोले में आटा और नामक डाल कर गद्दी को दे दिया। गद्दी ने बूढ़ी औरत से कहा कि वह भेड़-बकरियां लेकर हडसर की ओर जा रहा है। अगर तुम अपने बेटे को हडसर तक उसके साथ भेज दो तो वह इसे इसकी एवज में एक भेड़ दे देगा। यह बात सुनकर बूढ़ी औरत ने अपने बेटे त्रिलोचन को जो शादीशुदा था, गद्दी के साथ भेज दिया।
हडसर पहुंचने पर भोले नाथ ने त्रिलोचन से कहा कि बेटा मेरी कुछ भेड़ें धनछो की ओर चढ़ गई हैं अगर तुम धनछो तक उसके साथ चल पड़ते हो तो मैं तुम्हें एक और भेड़ दे दूंगा। गद्दी के रूप में भोलेनाथ की इस बात पर त्रिलोचन राजी हो गया और वह उनके साथ चल पड़ा। ऐसा करते-करते दोनों भेड़ों के काफिले के साथ मणिमहेश की डल झील के पास पहुंच गए और वहां पर देखते ही देखते भोलनाथ झील में कूद गए। गद्दी को झील में कूदते देख त्रिलोचन भी झील में कूद पड़े। झील के अंदर त्रिलोचन एक मकानरूपी जगह पर पहुंच गए और भोले नाथ ने उससे पूछा कि तुम क्या काम जानते हो।
त्रिलोचन ने कहा कि वह दर्जी का काम बखूबी जानता है, इस पर उन्होंने उसे वहां पर कुछ चोले सिलने के लिए दिए। करीब 5-6 महीने तक त्रिलोचन भगवान भोलेनाथ के साथ उस झील में रहे। अंतत: भोलेनाथ ने प्रसन्न होकर उन्हें अपने दर्शन दिए और कहा कि आज से आप त्रिलोचन महादेव कहलाओगे और आपके कुल के लोग मेरे चेले।
उन्होंने वरदान दिया कि आपके कुल या गांव का कोई भी व्यक्ति मेरी झील में डूबेगा नहीं और उनके मुख से निकली हर बात सच होगी। इसके बाद भोलेनाथ ने त्रिलोचन से कहा कि वह उसे तत्काल उसके घर पहुंचा देंगे, लेकिन इस बात का जिक्र कभी भी किसी के साथ मत करना। यहां तक अपनी पत्नी या मां के साथ भी नहीं। अगर तुमने यह बात किसी को बताई तो तुम इस मृत्युलोक में नहीं रह पाओगे।
इसी दौरान भोलेनाथ ने उसे कुछ चोले भी साथ ले जाने को कहा। भोले नाथ ने उसे आंख बंद करने के लिए कहा और आंख खुलने पर उसने खुद को भरमाणी माता के मंदिर के पास एक खुले खेत में पाया। इसके बाद त्रिलोचन बांसुरी बजाते हुए घर की ओर लौटने लगे। वहीं, 5-6 महीने तक बेटे के घर न लौटने पर परिवार वालों ने उसे मृत समझ लिया था लेकिन इतने दिनों के बाद बांसुरी की आवाज सुनकर मां ने अपनी बहू से कहा कि कोई व्यक्ति उसके बेटे की तरह बांसुरी बजा रहा है। गांव के ही किसी व्यक्ति ने घर में यह सूचना दे दी कि त्रिलोचन जिंदा है और घर लौट आया है। बेटे को घर आते देख मां फूली नहीं समाई और पत्नी की आंखों में खुशी के आंसू निकल पड़े। इसके बाद त्रिलोचन अपने परिवार के साथ रहने लगे।
कहा जाता है कि भोले नाथ ने उसे जो सिले हुए गद्दी चोले दिए थे वे सोने-चांदी के बन गए थे। एक दिन उनकी पत्नी इस जिद्द पर अड़ गई कि इतने दिनों तक यह कहां रहे, इसके बारे में बताएं और यह सोना-चांदी कहां से आया? पत्नी के बार-बार जिद्द करने पर त्रिलोचन ने कहा कि अगर वह उसे सच्चाई बता देगा तो वह इस संसार में नहीं रह पाएंगे। इसके बावजूद पत्नी नहीं मानी और अंतत: त्रिलोचन ने कहा कि वह ज्येष्ठ रविवार को सच्चाई बता देंगे। ज्येष्ठ रविवार को उन्होंने जैसे ही पत्नी को सच्चाई बयां कि तो उनके घर की छट फट गई और त्रिलोचन उससे निकल कर सीधे ग्रीमां गांव में गिरे। जहां उन्होंने एक घर में जाकर पानी मांगा लेकिन वहां उन्हें पानी देने से मना कर दिया गया। कुछ देर बाद त्रिलोचन गांव लाहल में पहुंच गए और एक घर में जाकर फिर पानी मांगा। यहां एक बूढ़ी औरत ने उसे दही का लोटा दिया, दही पीने के बाद भी प्यास न बुझने पर बूढ़ी औरत ने अपनी बहू को नीचे दरिया से पानी लाने भेज दिया। कुछ देर बाद बहू के हाथ से पानी पीकर त्रिलोचन की प्यास शांत हुई। इस दौरान त्रिलोचन ने महिला का सात दाने माह यानी उड़द के लाने को कहा। त्रिलोचन ने मंत्र मारकर वे दाने इर्द-गिर्द फैंके और वहां पर सात झरने फूट पड़े।
लोगों द्वारा इस स्थान पर हर साल देसी घी की दाल और चपातियों का लंगर लगाया जाता है। इसके बाद खड़ामुख पहुंचकर त्रिलोचन रावी नदी में कूद गए और बहते हुए दुनाली के पास दो पत्थरों के बीच फंस गए। उस रात नजदीक के एक गांव में एक व्यक्ति को स्वप्न में आकर त्रिलोचन ने कहा कि मैं दो चट्टानों के बीच फंसा हूं मुझे वहां से निकाल लाओ। अगले दिन जब वह व्यक्ति उस स्थान पर पहुंचा तो उसे पत्थररूपी बन गए त्रिलोचन नजर नहीं आए। उसी रात उसे पुन: स्वप्न आया और त्रिलोचन ने उसे पत्थरनुमा होने की बात बताई। अगली सुबह उस व्यक्ति ने त्रिलोचन को वहां से निकाला और अपने घर की ओर ले जाने लगा, लेकिन जैसे ही उसने नदी के किनारे त्रिलोचन की शिला रखी तो त्रिलोचन वहीं पर स्थापित हो गए। इसके बाद लोगों ने श्रद्धा से नदी की बगल में त्रिलोचन महादेव का मंदिर भी बनवाया।