जब हनुमान जी ने तोड़ा बलराम जी का अभिमान, द्वारका की वाटिका में घटा चमत्कार

Edited By Updated: 04 Dec, 2025 02:30 PM

hanuman ji story

Hanuman ji Story: रामायण काल से लेकर महाभारत युग तक हनुमान जी की शक्ति, भक्ति और पराक्रम का वर्णन मिलता है। द्वापर युग में उनसे जुड़ी एक रोचक कथा मिलती है, जिसमें वे श्रीकृष्ण के बड़े भाई एवं शेषनाग के अवतार बलराम जी का घमंड दूर करते हैं।

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Hanuman ji Story: रामायण काल से लेकर महाभारत युग तक हनुमान जी की शक्ति, भक्ति और पराक्रम का वर्णन मिलता है। द्वापर युग में उनसे जुड़ी एक रोचक कथा मिलती है, जिसमें वे श्रीकृष्ण के बड़े भाई एवं शेषनाग के अवतार बलराम जी का घमंड दूर करते हैं।

बलराम जी का बढ़ता अभिमान
बलराम जी अपनी अप्रतिम शक्ति के कारण दूर-दूर तक प्रसिद्ध थे। उन्होंने असंख्य असुरों और दैत्यों को परास्त किया था। यहां तक कि पौंड्रक के सामर्थ्यवान वानर योद्धा द्वीत को भी उन्होंने एक ही प्रहार में समाप्त कर दिया। इतने पराक्रम के बाद उनके भीतर धीरे-धीरे अहंकार जागने लगा और वे स्वयं को अजेय समझने लगे।

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हनुमान जी का द्वारका आगमन
बलराम जी की इसी मनोवृत्ति को पहचानकर श्रीकृष्ण ने हनुमान जी को द्वारका आने का आदेश दिया। प्रभु की आज्ञा पाकर हनुमान जी गंधमादन पर्वत से उड़ते हुए द्वारका पहुंचे। वहां वे सबसे सुंदर उद्यान में पहुंचे और प्रसन्न मन से सभी फलों को खा गए। उनके कूदने-फांदने से पूरी वाटिका अस्त-व्यस्त हो गई।

बलराम जी और हनुमान जी का आमना-सामना
जब यह समाचार बलराम जी तक पहुंचा, तो वे क्रोधित होकर अपनी गदा के साथ उद्यान में पहुंचे। उन्होंने हनुमान जी को एक साधारण वानर समझकर डांटा और उन्हें भगाने का प्रयास किया। परंतु हनुमान जी अडिग रहे। अंततः बलराम जी ने गदा उठाकर हनुमान जी को युद्ध के लिए ललकारा। दोनों के बीच तीव्र गदा-युद्ध शुरू हुआ। बलराम जी ने पूरी शक्ति लगा दी, लेकिन वे समझ ही नहीं पा रहे थे कि यह साधारण दिखने वाला वानर उनकी शक्ति पर भारी कैसे पड़ रहा है।

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सत्य का प्रकट होना
जब बलराम जी थकने लगे और हल उठाने की चेतावनी दी, तब हनुमान जी ने मन ही मन श्रीकृष्ण से मार्गदर्शन मांगा। उसी क्षण श्रीकृष्ण और रुक्मिणी वहां प्रकट हुए।

श्रीकृष्ण ने शांत भाव से कहा- भैया, यह कोई साधारण वानर नहीं… यह पवनपुत्र हनुमान हैं। यह सुनते ही बलराम जी आश्चर्य से भर उठे। उन्होंने तुरंत अपना अहंकार त्याग दिया और हनुमान जी के चरणों में सिर झुकाकर क्षमा मांगी।

अहंकार का अंत
बलराम जी ने स्वीकार किया कि वे अपनी शक्ति, गदा और हल के घमंड में डूब गए थे। हनुमान जी के विनम्र पराक्रम ने उन्हें विनम्रता का महत्वपूर्ण पाठ सिखाया। इस प्रकार द्वापर युग की इस अद्भुत लीला में हनुमान जी ने अपने पराक्रम और भक्ति से बलराम जी का घमंड दूर किया।

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