Tulsi Vivah: कन्या न होने पर भी प्राप्त किया जा सकता है कन्यादान का पुण्य

Edited By Updated: 29 Oct, 2025 07:03 AM

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Tulsi Vivah 2025: हिंदू धर्म में तुलसी विवाह का अत्यंत पवित्र स्थान है। शास्त्रों के अनुसार, देवउठनी (देवप्रबोधिनी) एकादशी से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक तुलसी विवाह का शुभ पर्व मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के शालिग्राम स्वरूप का विवाह तुलसी माता...

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Tulsi Vivah 2025: हिंदू धर्म में तुलसी विवाह का अत्यंत पवित्र स्थान है। शास्त्रों के अनुसार, देवउठनी (देवप्रबोधिनी) एकादशी से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक तुलसी विवाह का शुभ पर्व मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के शालिग्राम स्वरूप का विवाह तुलसी माता से कराया जाता है। मान्यता है कि जिन दंपतियों के घर कन्या नहीं होती, वे यदि एक बार तुलसी विवाह कराते हैं, तो उन्हें कन्यादान का अक्षय पुण्य प्राप्त होता है। यह पुण्य सात जन्मों तक अक्षय रहता है और जीवन में सुख-समृद्धि और संतान सुख प्रदान करता है। तुलसी केवल एक पौधा नहीं, बल्कि आस्था, भक्ति और सौभाग्य का प्रतीक है। जो व्यक्ति श्रद्धा और नियमपूर्वक तुलसी विवाह करता है, उसे न केवल कन्यादान का पुण्य, बल्कि सुखी और समृद्ध जीवन का वरदान प्राप्त होता है।

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The importance of Tulsi Vivah in the scriptures शास्त्रों में तुलसी विवाह का महत्व
तुलसी देवी को देवी लक्ष्मी का अवतार माना गया है और शालिग्राम भगवान विष्णु का प्रतीक हैं। इस कारण तुलसी विवाह को लक्ष्मी-नारायण विवाह भी कहा जाता है।

पुराणों के अनुसार, तुलसी विवाह कराने वाला व्यक्ति कन्यादान के समान फल प्राप्त करता है। पापों से मुक्ति और सुखी पारिवारिक जीवन का वरदान पाता है। घर में धन, सौभाग्य और शांति का वास होता है।

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The mythological story of Tulsi and Shankhachuda तुलसी और शंखचूड़ की पौराणिक कथा
पुराणों में वर्णन आता है कि तुलसी देवी पहले वृंदा नाम की पतिव्रता स्त्री थीं, जिनके पति दानवराज जालंधर थे। उनकी भक्ति और पतिव्रता की शक्ति से देवता भी भयभीत हो गए थे। भगवान विष्णु ने छल से उनका सतीत्व भंग किया, जिससे वृंदा ने क्रोधित होकर उन्हें शाप दिया कि वे पत्थर बन जाएंगे। उस शाप के फलस्वरूप विष्णु भगवान शालिग्राम रूप में परिवर्तित हो गए। वृंदा की भक्ति और पवित्रता से प्रसन्न होकर विष्णु भगवान ने कहा, “हे वृंदा! तुम सदैव मेरे साथ पूजनीय रहोगी। तुम्हारा स्वरूप तुलसी के पौधे के रूप में पृथ्वी पर रहेगा और मेरे बिना कोई भी पूजा पूर्ण नहीं होगी।”

इस प्रकार तुलसी का पौधा विष्णु पूजन का अभिन्न अंग बन गया।

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Tulsi's religious and scientific significance तुलसी का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व
तुलसी घर की पवित्रता और समृद्धि का प्रतीक है। इसके पत्ते, डंठल और बीज सभी पावन और औषधीय गुणों से भरपूर हैं। तुलसी के पत्ते भगवान विष्णु, श्रीराम, श्रीकृष्ण और शालिग्राम की पूजा में अनिवार्य हैं।

Tulsi Vivah Puja Vidhi तुलसी विवाह कराने की विधि
तुलसी माता के पौधे को गमले या तुलसी-पीठ पर सजाएं। पास में शालिग्राम या भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित करें। फूल, हल्दी, चंदन, सिंदूर, दीपक और मिठाई से पूजा करें। तुलसी माता को साड़ी और भगवान विष्णु को वस्त्र पहनाएं। मंगल गीत गाएं और शंख बजाकर विवाह संस्कार संपन्न करें। विवाह के बाद प्रसाद बांटें और जरूरतमंदों को भोजन कराएं।

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The result of Tulsi marriage when there is no daughter. कन्या न होने पर तुलसी विवाह का फल
जिन दंपतियों के घर कन्या नहीं होती, वे तुलसी विवाह करके कन्यादान का पुण्य प्राप्त करते हैं। यह पुण्य कई जन्मों तक अक्षय रहता है। घर में संतान सुख, धन-लाभ और पारिवारिक सौहार्द बढ़ता है। पूर्वजों का आशीर्वाद मिलता है और पितृदोष समाप्त होता है।

“तुलसी बिना विष्णु पूजन अधूरा है और तुलसी विवाह के बिना जीवन का पुण्य अधूरा है।”

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