Ujjain: सिर्फ महाकाल का नहीं पितरों की मुक्ति का भी धाम है उज्जैन, जानिए सिद्धवट की खासियत

Edited By Updated: 21 Sep, 2025 06:00 AM

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Ujjain: उज्जैन, जिसे प्राचीन काल से अवंतिका नगरी और महाकालेश्वर की धरती के नाम से जाना जाता है न सिर्फ धार्मिक दृष्टि से बल्कि पितृ तर्पण और श्राद्ध कर्म की परंपराओं के लिए भी विशेष महत्व रखती है। यह भूमि सतयुग से ही श्रद्धा, मुक्ति और आध्यात्म का...

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Ujjain: उज्जैन, जिसे प्राचीन काल से अवंतिका नगरी और महाकालेश्वर की धरती के नाम से जाना जाता है न सिर्फ धार्मिक दृष्टि से बल्कि पितृ तर्पण और श्राद्ध कर्म की परंपराओं के लिए भी विशेष महत्व रखती है। यह भूमि सतयुग से ही श्रद्धा, मुक्ति और आध्यात्म का केंद्र रही है। यहां की मोक्षदायिनी शिप्रा नदी के घाटों पर हर वर्ष पितृ पक्ष में हजारों श्रद्धालु अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा अर्पित करने के लिए एकत्र होते हैं।

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रामघाट: जहां भगवान राम ने किया था तर्पण
उज्जैन के शिप्रा नदी तट पर स्थित रामघाट को विशेष मान्यता प्राप्त है। धार्मिक ग्रंथों के
अनुसार, भगवान श्रीराम अपने वनवास के दौरान जब उज्जैन आए थे, तो उन्होंने यहीं पर अपने पिता महाराज दशरथ के लिए तर्पण और पिंडदान किया था। यही कारण है कि रामघाट आज भी पितृ कर्म के लिए अत्यंत पुण्यदायी स्थल माना जाता है।

 सिद्धवट घाट: माता पार्वती की तपोभूमि
शिप्रा तट पर स्थित सिद्धवट घाट भी आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। यहां स्थित वटवृक्ष को लेकर मान्यता है कि इसे स्वयं माता पार्वती ने रोपा था। यह वृक्ष न केवल धार्मिक दृष्टि से पवित्र माना जाता है, बल्कि स्कंद पुराण में भी इसका उल्लेख मिलता है। भारत में चार प्रमुख सिद्धवट स्थानों में उज्जैन का सिद्धवट भी शामिल है। इसे प्रेतशिला और शक्तिभेद तीर्थ के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि यहां पिंडदान और तर्पण करने से पितृगण तुरंत तृप्त हो जाते हैं और उन्हें उच्च लोकों की प्राप्ति होती है।

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एक प्राचीन कथा के अनुसार, जब भगवान शिव के गणों ने मोक्ष की कामना की, तो उन्होंने सिद्धवट क्षेत्र को उन्हें सौंप दिया। तभी से यह स्थान पितृ तर्पण और श्राद्ध कर्म के लिए सर्वोपरि माना जाने लगा।

गयाकोठा मंदिर: उज्जैन का गयाजी धाम
गयाकोठा मंदिर, उज्जैन का एक अन्य प्रमुख तीर्थ स्थल है जो विशेष रूप से पितृ कर्म के लिए प्रसिद्ध है। यहां श्रद्धालु दूध और जल से तर्पण करते हैं और पिंडदान की विधियां पूरी श्रद्धा से निभाते हैं। पास ही स्थित ऋषि तलाई नामक स्थान को फल्गु नदी के गुप्त उद्गम स्थल के रूप में जाना जाता है।
मान्यता है कि यहां सप्तर्षियों को साक्षी मानकर जो भी पितृ तर्पण करता है, उसे वैसा ही पुण्य फल मिलता है जैसा कि गया (बिहार) में श्राद्ध करने से प्राप्त होता है। इस कारण यह स्थान भी पितृ मोक्ष के लिए अत्यंत पूजनीय है।

वंशावली की प्राचीन परंपरा: 150 वर्षों का जीवंत इतिहास
उज्जैन की एक विशेष परंपरा इसकी वंशावली पद्धति है, जो आज भी जीवंत और प्रमाणिक है। यहां के पुरोहितों के पास लगभग 150 वर्ष पुरानी वंशावली रिकॉर्ड संरक्षित हैं। आश्चर्यजनक रूप से, ये पुजारी बिना किसी तकनीकी सहायता के, केवल व्यक्ति का गोत्र, जाति या गांव पूछकर उसकी कई पीढ़ियों का इतिहास बहीखातों से बता देते हैं। यह पद्धति न सिर्फ धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि न्यायालयों में भी इसे एक वैध प्रमाण के रूप में स्वीकार किया जाता है। डिजिटल युग में भी यह परंपरा अपनी सादगी और प्रामाणिकता के कारण आज भी कायम है।
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