Edited By Niyati Bhandari,Updated: 01 Sep, 2025 04:15 PM

Vaman Jayanti: एक समय की बात है- युद्ध में इंद्र से हार कर दैत्यराज बलि गुरु शुक्राचार्य की शरण में गए। शुक्राचार्य ने उनके अंदर देव भाव जगाया। कुछ समय बाद गुरु कृपा से बलि ने स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। प्रभु की महिमा कितनी विचित्र है कि कल का देवराज...
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Vaman Jayanti: एक समय की बात है- युद्ध में इंद्र से हार कर दैत्यराज बलि गुरु शुक्राचार्य की शरण में गए। शुक्राचार्य ने उनके अंदर देव भाव जगाया। कुछ समय बाद गुरु कृपा से बलि ने स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। प्रभु की महिमा कितनी विचित्र है कि कल का देवराज इंद्र आज भिखारी हो गया। वह दर-दर भटकने लगा। अंत में अपनी माता अदिति की शरण में गया। इंद्र की दशा देखकर मां का हृदय फटने लगा। अपने पुत्र के दुख से दुखी अदिति ने पयोव्रत का अनुष्ठान किया। व्रत के अंतिम दिन भगवान ने प्रकट होकर अदिति से कहा, ‘‘देवी! चिंता मत करो। मैं तुम्हारे पुत्र रूप में जन्म लूंगा और इंद्र का छोटा भाई बनकर उनका कल्याण करूंगा।’’ यह कह कर वह अंतर्धान हो गए।
आखिर वह शुभ घड़ी आ ही गई। अदिति के गर्भ से भगवान ने वामन के रूप में अवतार लिया। भगवान को पुत्र रूप में पाकर अदिति की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। भगवान को वामन ब्रह्मचारी के रूप में देख कर देवताओं और महर्षियों को बड़ा आनंद हुआ। उन लोगों ने कश्यप जी को आगे करके भगवान का उपनयन आदि संस्कार करवाया।
उसी समय भगवान ने सुना कि राजा बलि भृगुकच्छ नामक स्थान पर अश्वमेध यज्ञ कर रहे हैं। उन्होंने वहां के लिए यात्रा की। भगवान वामन कमर में मूंज की मेखला और यज्ञोपवीत धारण किए हुए थे। बगल में मृग चर्म था। सिर पर जटा थीं। इसी प्रकार बौने ब्राह्मण के वेष में अपनी माया से ब्रह्मचारी बने हुए भगवान ने बलि के यज्ञ मंडप में प्रवेश किया। उन्हें देखकर बलि का हृदय गद्गद हो गया। उन्होंने भगवान को एक उत्तम आसन दिया तथा नाना प्रकार से वामन की पूजा की।

उसके बाद बलि ने प्रभु से कुछ मांगने का अनुरोध किया तो उन्होंने तीन पग भूमि मांग ली। शुक्राचार्य प्रभु की लीला समझ रहे थे। उन्होंने दान देने से बलि को मना किया परंतु बलि ने उनका परामर्श नहीं माना। उसने संकल्प लेने के लिए जल-पात्र उठाया। शुक्राचार्य अपने शिष्य का हित सोच कर पात्र में प्रवेश कर गए। जिससे जल गिरने का रास्ता रुक गया। भगवान ने एक कुश उठाकर पात्र के छेद में डाल दिया जिसमें उनकी एक आंख फूट गई।

संकल्प पूरा होते ही भगवान वामन ने एक पग में पृथ्वी और दूसरे में स्वर्ग नाप लिया। तीसरे पग में बलि ने अपने आपको ही उन्हें सौंप दिया। बलि के इस समर्पण भाव से भगवान प्रसन्न हुए। उन्होंने उसे सुतल लोक का राज्य दे दिया और इंद्र को स्वर्ग का स्वामी बना दिया।
कहा जाता है कि भगवान वामन द्वारपाल के रूप में राजा बलि को और उपेंद्र के रूप में इंद्र को नित्य दर्शन देते हैं।