फिलिस्तीन कभी नहीं बनेगा देश... ब्रिटेन, कनाडा के फैसले पर भड़के बेंजामिन नेतन्याहू, लगा दिया बड़ा आरोप

Edited By Updated: 22 Sep, 2025 02:39 AM

benjamin netanyahu furious over uk canada decision

ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा ने अमेरिका और इजराइल के विरोध को दरकिनार करते हुए फलस्तीनी राष्ट्र को औपचारिक रूप से मान्यता देने की रविवार को पुष्टि की। राष्ट्रमंडल में शामिल और इजराइल के लंबे समय से सहयोगी इन देशों की यह पहल गाजा में जारी युद्ध में...

इंटरनेशनल डेस्कः ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा ने अमेरिका और इजराइल के विरोध को दरकिनार करते हुए फलस्तीनी राष्ट्र को औपचारिक रूप से मान्यता देने की रविवार को पुष्टि की। राष्ट्रमंडल में शामिल और इजराइल के लंबे समय से सहयोगी इन देशों की यह पहल गाजा में जारी युद्ध में इजराइल की हरकतों के प्रति बढ़ते आक्रोश को दर्शाती है। 

इस बीच, इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा कि फलस्तीनी राष्ट्र की स्थापना "नहीं होगी।" उन्होंने विदेशी नेताओं पर हमास को "इनाम" देने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, "ऐसा नहीं होगा। जॉर्डन नदी के पश्चिम में फलस्तीनी राष्ट्र की स्थापना नहीं होगी।" ब्रिटेन के प्रधानमंत्री केअर स्टॉर्मर इजराइल के खिलाफ कड़ा रुख नहीं अपनाने के लिए अपनी सत्तारूढ़ लेबर पार्टी में भारी दबाव का सामना कर रहे थे। 

ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने कहा कि इस कदम का उद्देश्य फलस्तीनियों और इजराइलियों के बीच शांति की उम्मीदों को जिंदा रखना है। हालांकि, उन्होंने कहा कि यह हमास के लिए कोई तोहफा नहीं है। स्टार्मर ने एक वीडियो संदेश में कहा, “मैं शांति और द्वि-राष्ट्र समाधान की आशा को पुनर्जीवित करने के लिए इस महान देश के प्रधानमंत्री के रूप में स्पष्ट रूप से कहता हूं कि ब्रिटेन औपचारिक रूप से फलस्तीन राष्ट्र को मान्यता देता है।” 

उन्होंने कहा, “हमने 75 साल से भी पहले इजराइल राष्ट्र को यहूदी लोगों की मातृभूमि के रूप में मान्यता दी थी। आज हम उन 150 से अधिक देशों में शामिल हो गए हैं, जो फलस्तीनी राष्ट्र को भी मान्यता देते हैं। यह फलस्तीनी और इजराइली लोगों के लिए एक बेहतर भविष्य की प्रतिज्ञा है।” जुलाई में स्टॉर्मर ने कहा था कि अगर इजराइल गाजा पट्टी में संघर्ष-विराम के लिए सहमत नहीं होता है, तो ब्रिटेन फलस्तीनी राष्ट्र को मान्यता देगा। इस सप्ताह संयुक्त राष्ट्र महासभा में फ्रांस समेत और अधिक देशों के ऐसा करने की उम्मीद है। ब्रिटेन की तरह फ्रांस भी सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों में शामिल है। 

आस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीज ने अपने बयान में कहा कि रविवार को तीन देशों की ओर से की गईं घोषणाएं “द्वि-राष्ट्र समाधान को नयी गति देने के समन्वित अंतरराष्ट्रीय प्रयास का हिस्सा हैं।” फलस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने ब्रिटेन की घोषणा का स्वागत करते हुए कहा कि यह अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुरूप न्यायपूर्ण शांति कायम करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण व आवश्यक कदम है। ब्रिटेन ने अमेरिका के विरोध को दरकिनार करते हुए यह कदम उठाया है। कुछ दिन पहले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ब्रिटेन की यात्रा के दौरान इस योजना से असहमति जताई थी। ट्रंप ने कहा था, “इस मामले पर मैं प्रधानमंत्री (स्टॉर्मर) से असहमत हूं।” 

अमेरिका और इजराइल सरकार के साथ-साथ विभिन्न आलोचकों ने इस योजना की निंदा करते हुए कहा है कि यह हमास और आतंकवाद को बढ़ावा देगी। आलोचकों का तर्क है कि मान्यता देना अनैतिक और एक खोखला कदम है, क्योंकि फलस्तीनी लोग दो क्षेत्रों- वेस्ट बैंक और गाजा- में विभाजित हैं, जिनकी कोई मान्यता प्राप्त अंतरराष्ट्रीय राजधानी नहीं है। पिछले 100 वर्षों में पश्चिम एशिया की राजनीति में फ्रांस और ब्रिटेन की ऐतिहासिक भूमिका रही है। प्रथम विश्व युद्ध में ओटोमन साम्राज्य की हार के बाद दोनों देशों ने इस क्षेत्र का विभाजन किया था। 

इस विभाजन के परिणामस्वरूप, तत्कालीन फलस्तीन पर ब्रिटेन का शासन स्थापित हुआ। ब्रिटेन ने ही 1917 में बैल्फोर घोषणापत्र भी तैयार किया था, जिसमें “यहूदी लोगों के लिए एक राष्ट्र” की स्थापना का समर्थन किया गया था। हालांकि, घोषणापत्र के दूसरे भाग को दशकों से काफी हद तक नजरअंदाज किया गया है। इसमें कहा गया है कि “ऐसा कुछ भी नहीं किया जाएगा, जिससे फलस्तीनी लोगों के नागरिक व धार्मिक अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े।” लंदन में स्थित रॉयल यूनाइटेड सर्विसेज इंस्टीट्यूट में पश्चिम एशिया सुरक्षा के वरिष्ठ अनुसंधान विद बुर्कू ओजेलिक ने कहा, “फ्रांस और ब्रिटेन के लिए फलस्तीन को मान्यता देना महत्वपूर्ण है, क्योंकि पश्चिम एशिया में इन दोनों देशों की विरासत रही है।” 

उन्होंने कहा, “लेकिन मुझे लगता है कि फलस्तीन के मामले में अमेरिका को साथ लिये बिना जमीनी स्तर पर बहुत कम बदलाव आएगा।” ब्रिटेन में फलस्तीनी मिशन के प्रमुख हुसम जोमलोट ने ‘बीबीसी' से कहा कि मान्यता देने से औपनिवेशिक काल की एक गलती सुधर जाएगी। जोमलोट ने कहा, “मुझे लगता है कि आज ब्रिटेन के लोगों को इतिहास में की गई गलती को सुधारे जाने का जश्न मनाना चाहिए। गलतियां सुधारी जा रही हैं, अतीत की गलतियों को स्वीकार किया जा रहा है।” 

ब्रिटेन दशकों से इजराइल के साथ-साथ एक स्वतंत्र फलस्तीनी राष्ट्र का समर्थन करता रहा है, लेकिन उसने इस बात पर जोर दिया है कि मान्यता द्वि-राष्ट्र समाधान प्राप्त करने के लिए शांति योजना के भाग के रूप में दी जानी चाहिए। लंदन में स्थित थिंक टैंक चैटहम हाउस में ‘यूके इन द वर्ल्ड कार्यक्रम' की निदेशक ओलिविया ओ'सुलिवन ने कहा, “इस कदम का प्रतीकात्मक और ऐतिहासिक महत्व है, यह द्वि-राष्ट्र समाधान के अस्तित्व से जुड़ीं ब्रिटेन की चिंताओं को स्पष्ट करता है, और इसका उद्देश्य उस लक्ष्य को प्रासंगिक व जीवंत बनाए रखना है।” 

Related Story

Trending Topics

IPL
Royal Challengers Bengaluru

190/9

20.0

Punjab Kings

184/7

20.0

Royal Challengers Bengaluru win by 6 runs

RR 9.50
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!