अफगान विदेश मंत्री का तालिबानी फरमान, दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस से महिला पत्रकारों को किया बैन

Edited By Updated: 10 Oct, 2025 10:03 PM

taliban foreign minister bans women journalists during india visit

अफगानिस्तान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी सात दिन के भारत दौरे पर हैं और उन्होंने एस. जयशंकर से मुलाकात की। इस दौरान दोनों ने व्यापार और सुरक्षा पर चर्चा की, लेकिन चर्चा का विषय बना तालिबान मंत्री की प्रेस कॉन्फ्रेंस में महिला पत्रकारों की एंट्री...

इंटरनेशनल डेस्क : अफगानिस्तान की तालिबान सरकार के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी गुरुवार को सात दिन के भारत दौरे पर पहुंचे। अपने दौरे के दूसरे दिन उन्होंने भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर से मुलाकात की। इस दौरान दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय व्यापार, मानवीय सहायता और सुरक्षा सहयोग जैसे अहम मुद्दों पर चर्चा की। मुत्तकी ने आश्वासन दिया कि अफगानिस्तान की ज़मीन का इस्तेमाल किसी भी सूरत में किसी अन्य देश के खिलाफ नहीं होने दिया जाएगा। लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा में रहा प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान महिला पत्रकारों की गैरमौजूदगी।

प्रेस कॉन्फ्रेंस में महिला पत्रकारों की एंट्री बैन
शुक्रवार को आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में किसी भी महिला पत्रकार को प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई, जिसके बाद सोशल मीडिया पर लोगों ने तालिबान की इस सोच की तीखी आलोचना की। कई पत्रकारों और सोशल मीडिया यूजर्स ने इसे “अस्वीकार्य” बताया। एक यूजर ने लिखा, “महिला पत्रकारों को प्रेस कॉन्फ्रेंस से बाहर रखना शर्मनाक है।” वहीं, एक अन्य ने कहा, “पुरुष पत्रकारों को विरोध के तौर पर कॉन्फ्रेंस से वॉकआउट करना चाहिए था।”

तालिबान शासन में महिलाओं की स्थिति
महिला पत्रकारों की अनुपस्थिति ने एक बार फिर तालिबान शासन में महिलाओं की दयनीय स्थिति को उजागर कर दिया है। अगस्त 2021 में तालिबान के सत्ता में लौटने के बाद से महिलाओं पर कठोर पाबंदियां लगाई गई हैं। महिलाओं के काम करने, पढ़ाई करने और सार्वजनिक जीवन में भागीदारी पर सख्त नियंत्रण है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय और मानवाधिकार संगठनों ने तालिबान की नीतियों को “लैंगिक रंगभेद (Gender Apartheid)” तक करार दिया है।

शिक्षा और रोजगार पर सख्त पाबंदी
तालिबान ने 12 साल से अधिक उम्र की लड़कियों के लिए स्कूल और विश्वविद्यालयों में पढ़ाई पर पूरी तरह से रोक लगा दी है। 2025 तक लाखों लड़कियां शिक्षा से वंचित हैं। यूनेस्को के अनुसार, अफगानिस्तान में 11 लाख से अधिक लड़कियां स्कूलों से बाहर हैं।
महिलाओं को सरकारी, एनजीओ और निजी क्षेत्रों में काम करने से भी वंचित रखा गया है, जिससे स्वास्थ्य, शिक्षा और बचाव जैसे क्षेत्रों में महिला पेशेवरों की भारी कमी हो गई है।

प्राकृतिक आपदा में महिलाओं की मुश्किलें
पिछले महीने अफगानिस्तान में आए एक हफ्ते के भीतर तीसरे भूकंप में 2,200 से अधिक लोगों की मौत हुई और हजारों घायल हुए। रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस आपदा का सबसे ज्यादा असर महिलाओं पर पड़ा। तालिबान के नियमों के चलते पुरुष बचावकर्मी महिलाओं को छू नहीं सकते, जिसके कारण कई महिलाएं मलबे में घंटों फंसी रहीं। महिला बचावकर्मियों की भारी कमी ने राहत कार्यों को और मुश्किल बना दिया, क्योंकि तालिबान शासन में महिलाओं की शिक्षा और रोजगार पर प्रतिबंधों ने उन्हें लगभग घरों में कैद कर दिया है।

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