Edited By Parminder Kaur,Updated: 12 Jan, 2024 12:00 PM

सैंडविच कुकी 'ओरियो' सौ सालों से भी ज्यादा पुराना अमेरिकी ब्रांड है। लेकिन भारतीय बाजार में इसने बारह साल पहले प्रवेश किया। एल्वेरेज एंड मार्सल कंपनी के आकलन के अनुसार, भारत में बिस्किट का बाजार करीबन 45 हजार करोड़ रुपए का है। इसमें कुकीज का मार्केट...
इंटरनेशनल डेस्क. सैंडविच कुकी 'ओरियो' सौ सालों से भी ज्यादा पुराना अमेरिकी ब्रांड है। लेकिन भारतीय बाजार में इसने बारह साल पहले प्रवेश किया। एल्वेरेज एंड मार्सल कंपनी के आकलन के अनुसार, भारत में बिस्किट का बाजार करीबन 45 हजार करोड़ रुपए का है। इसमें कुकीज का मार्केट शेयर 35-40% है, सामान्य बिस्किट का 25 और क्रीम बिस्किट और क्रेकर्स का बाजार 15% है। हालांकि भारतीय बाजार में ओरियो का मार्केट शेयर बहुत सीमित है लेकिन अंतरराष्ट्रीय बाजार में यह दुनिया में सबसे ज्यादा बिकने वाली कुकीज बनी हुई है। इसकी क्रीम की रियोलॉजी पर मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) के इंजीनियर्स भी रिसर्च कर चुके हैं। अमेरिका में 6 मार्च को नेशनल ओरियो कुकी डे भी मनाया जाता है। ओरियो की शुरुआत कैसे हुई चलिए जानते हैं...
शुरुआत : दो भाइयों के झगड़े से बना ओरियो कुकी ब्रांड
ओरियो कुकी दो भाइयों के बीच हुए व्यावसायिक झगड़े का परिणाम है। कहानी की शुरुआत 1890 में हुई, जहां दो भाइयों जैकब और जोसेफ लूज ने अमेरिका में एक बेकरी खोली। जैकब ने इसे कंपनी की शक्ल दी और कंपनी प्रमुख बन गए। वहीं जोसेफ को बोर्ड में शामिल किया। जैकब की तबियत खराब रहने लगी तो जोसेफ ने कारोबार संभाला। उन्होंने बिस्किट कंपनी को बड़ा करने के लिए विलय की रणनीति अपनाई, लेकिन जैकब इससे सहमत नहीं थे। जैकब के निर्णय से उलट जोसेफ ने विलय सौदे को आगे बढ़ाया और नेशनल बिस्किट कंपनी (नाबिस्को) बनाई। यही दोनों भाइयों के बीच झगड़े की वजह बनी। जैकब ने लूज़ वाइल्स बिस्किट कंपनी बनाई। उनकी कुकी हाइड्रोक्स लंबे समय तक लोकप्रिय रही। ठीक उसी समय नाबिस्को ने ओरियो बनाई।
डिजाइन: सैंडविच कुकी ओरियो 1952 में बनी थी डिजाइन

ओरियो सैंडविच कुकी है, जिसका मतलब है कि सैंडविच की तरह दो बेफर्स के बीच इसमें क्रीम भरी होती है। पहली ओरियो 6 मार्च 1912 को बनी। 1948 में इसका नाम बदलकर ओरियो सैंडविच किया गया। 1974 में इसे ओरियो चॉकलेट सैंडविच कुकी नाम से पहचाना जाने लगा। ओरियो की डिजाइन भी समय-समय पर बदलती रही। 1952 में फूड साइंटिस्ट विलियम ए. टर्नियर ने इसकी चार पत्तियों वाली डिजाइन बनाई। तब से यही डिजाइन आज तक प्रचलित है। सालों तक ओरियो का स्वामित्व क्राफ्ट नामक फूड कंपनी के पास रहा। 2012 में अमेरिकी फूड कंपनी मोन्डेलीज ने ओरियो को खरीद लिया था। साल 1950 से ओरियो ने मार्केटिंग पर दोगुना खर्च शुरू कर दिया। नाबिस्को ने आइसक्रीम आदि में ओरियो को इस्तेमाल करने का लाइसेंस देना शुरू कर दिया।
मार्केट: भारत में 2011 से बिजनेस, तीसरा बड़ा मार्केट

भारतीय बाजार में ओरियो, मार्च 2011 में कैडबरी ओरियो नाम से पेश की गई। क्योंकि कैडबरी भारत में जाना-पहचाना ब्रांड था। वहीं ओरियो का प्रतिद्वंद्वी ब्रांड से हुआ विवाद भी खासा चर्चित रहा। आरोप था कि प्रतिद्वंद्वी ने ओरियो से मिलते-जुलते नाम और हूबहू डिजाइन और पैकेजिंग के रोक साथ फोबियो नाम से कुकी लॉन्च की। दिल्ली हाईकोर्ट ने इसे रजिस्टर्ड ट्रेडमार्क का उल्लंघन का माना और फेबियो की बिक्री पर रोक लगा दी। अमेरिका और चीन के बाद भारत ओरियो का तीसरा सबसे बड़ा मार्केट है। भारत में कंपनी ने एआई की मदद से से इट विद ओरियो नाम से विज्ञापन कैंपेन लॉन्च किया है। मोन्डेलीज़ को भारत से मिलने वाले बिजनेस में 12% ओरियो से आता है। इसके अन्य उत्पादों में कैडबरी डेक्री मिल्क, फाइव स्टार, बोर्नवीटा, टाइगर, टैंग आदि हैं।
रोचक : सौ देशों में बिकती हैं ओरियो, एक कुकी बनाने में लगते हैं दो घंटे
ओरियो की कुकीज को बीच में से अलग किया जाए, तो उसके बीच में मौजूद क्रीम, कुकीज के किसी एक ही ओर लगी रहती है। यह बीच में से टूटती आधी-आधी दोनों तरफ नहीं लगी रहती। एमआईटी के इंजीनियर्स ने इसका अध्ययन करने के लिए रियोलॉजी टेस्ट (किसी लिक्विड के प्रवाह का अध्ययन) किया। इसके लिए बकायदा शोधकर्ताओं ने थ्री-डी एमआईटी के इंजीनियर्स ने ओरियो की क्रीम को परखने के लिए बनाया 'ओरियोमीटर' प्रिटेबल ओरियोमीटर बनाया। उन्होंने पाया कि इसका जवाब ओरियो को बनाने की प्रक्रिया में है। पहले एक बेफर्स को रख देते हैं। और उसके ऊपर क्रीम लगाते हैं, कुछ देर इसे यूं ही छोड़ देते हैं, उसके बाद दूसरा बेफर्स उसके ऊपर रखते हैं। वहीं 2013 में कनेक्टीकट कॉलेज में हुई रिसर्च में सामने आया कि लोगों को ओरियो खाने की एक लत जैसी है।