पाप से बचने के लिए एकादशी उपरांत द्वादशी पर अवश्य करें यह काम

Edited By Updated: 01 Jun, 2016 07:07 AM

dwadashi

एकादशी व्रत को समाप्त करने को पारण कहते हैं। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अति आवश्यक है।

एकादशी व्रत को समाप्त करने को पारण कहते हैं। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अति आवश्यक है। यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गई हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद ही होता है। द्वादशी तिथि के भीतर पारण न करना पाप करने के समान होता है।

 

एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए। जो श्रद्धालु व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत तोड़ने से पहले हरि वासर समाप्त होने की प्रतीक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि है। व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल होता है। व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्यान्ह के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए। कुछ कारणों की वजह से अगर कोई प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं है तो उसे मध्यान्ह के बाद पारण करना चाहिए।

 

पारण समय

हिन्दू धार्मिक ग्रंथों के अनुसार एकादशी के दिन रात्रि जागरण करने का उल्लेख मिलता है। अतः एकादशी की रात्रि में न सोएं। बल्कि भगवान विष्णु जी का भजन-कीर्तन करें। अगले दिन अर्थात द्वादशी के दिन पूजा-दान एवं ब्राह्मणों को भोजन कराने के पश्चात व्रत खोलें।

पंडित विशाल दयानन्द शास्त्री

vastushastri08@hotmail.com

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