CDS अनिल चौहान का खुलासा: 1962 युद्ध में वायुसेना न होना थी भारत की सबसे बड़ी भूल

Edited By Updated: 25 Sep, 2025 06:02 PM

cds anil chauhan 1962 war air power strategy

सीडीएस जनरल अनिल चौहान ने कहा कि 1962 के भारत-चीन युद्ध में वायुसेना का इस्तेमाल न करना भारत की गंभीर गलती थी। उन्होंने बताया कि उस समय एयर पावर को आक्रामक माना गया था, जबकि अब यह राष्ट्रीय सुरक्षा की अहम आवश्यकता है। ऑपरेशन सिंदूर इसका ताजा उदाहरण...

नेशनल डेस्क : चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) जनरल अनिल चौहान ने कहा कि अगर 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान भारतीय वायुसेना का इस्तेमाल किया गया होता, तो चीन का आक्रमण काफी धीमा पड़ जाता। उस समय वायु शक्ति के प्रयोग को “एस्केलेटरी” यानी आक्रामक कदम माना जाता था, लेकिन आज स्थिति बिल्कुल अलग है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि हाल ही में हुए ऑपरेशन सिंदूर ने यह साबित किया है कि आधुनिक दौर में एयर पावर का इस्तेमाल जरूरी और स्वीकार्य है।

जनरल चौहान पुणे में लेफ्टिनेंट जनरल एस. पी. पी. थोराट की संशोधित आत्मकथा ‘रेवेली टू रिट्रीट’ के विमोचन समारोह के दौरान वीडियो संदेश के जरिए बोल रहे थे। उन्होंने 1962 युद्ध से जुड़े दो बड़े रणनीतिक सबकों पर जोर दिया।

वायुसेना के इस्तेमाल न करने की गलती
पहला सबक, 1962 में वायुसेना को युद्ध में शामिल न करना भारत की गंभीर रणनीतिक भूल थी। उन्होंने कहा कि वर्तमान रणनीति इस अनुभव से प्रेरित है और भविष्य में चीन या किसी अन्य बाहरी खतरे का सामना करने में वायु शक्ति निर्णायक भूमिका निभाएगी। आज दुनिया के लगभग सभी देश एयर डिफेंस सिस्टम और सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलों पर निर्भर हैं।

एलएसी पर टिकाऊ और मज़बूत रक्षा
दूसरा सबक, उस समय सीमावर्ती इलाकों में अलग-थलग चौकियां स्थापित करने की नीति विफल रही। CDS चौहान ने कहा कि मौजूदा भारतीय रणनीति इसके ठीक विपरीत है, और अब एलएसी पर मजबूत बुनियादी ढांचा व हर मौसम में टिकाऊ डिफेंस तैयार किया जा रहा है।

बदल चुके हैं हालात और भूगोल
उन्होंने यह भी कहा कि अब भूगोल और जियोपॉलिटिक्स पूरी तरह बदल चुके हैं। 1962 में लद्दाख और नेफा (अरुणाचल प्रदेश) की परिस्थितियां अलग थीं, लेकिन उस दौर की नीतियों ने दोनों क्षेत्रों को एक समान मान लिया, जो रणनीतिक दृष्टि से गलत था। लद्दाख में चीन पहले ही भारत की जमीन के बड़े हिस्से पर कब्जा कर चुका था, जबकि नेफा में भारत की स्थिति कहीं ज्यादा मजबूत थी।

एयर पावर की अहमियत
जनरल चौहान ने स्पष्ट किया कि अगर 1962 में वायुसेना को शामिल किया गया होता, तो भारतीय सेना को तैयारी और रणनीति बदलने के लिए अधिक समय मिल जाता। आज स्थिति यह है कि वायु शक्ति को आक्रामक कदम नहीं बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा की मजबूती माना जाता है। उन्होंने कहा कि ऑपरेशन सिंदूर इसका हालिया उदाहरण है, जब भारत ने पाकिस्तान और पीओके में आतंकी ठिकानों को वायुसेना के जरिए तबाह किया।

अंत में उन्होंने कहा कि ‘रेवेली टू रिट्रीट’ सिर्फ आत्मकथा नहीं, बल्कि नेतृत्व, रणनीति और निर्णयों पर गहरी दृष्टि प्रस्तुत करने वाली कृति है, जो अतीत की गलतियों से सीखने और वर्तमान चुनौतियों का समाधान खोजने में मदद करती है।

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