Edited By Mansa Devi,Updated: 17 Dec, 2025 06:28 PM

पिछले कुछ वर्षों में कैंसर के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी देखने को मिली है। फेफड़ों का कैंसर जिसे कभी सिर्फ धूम्रपान करने वालों की बीमारी माना जाता था, अब यह धारणा बदलती नजर आ रही है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश के बड़े महानगरों में नॉन-स्मोकिंग...
नेशनल डेस्क: पिछले कुछ वर्षों में कैंसर के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी देखने को मिली है। फेफड़ों का कैंसर जिसे कभी सिर्फ धूम्रपान करने वालों की बीमारी माना जाता था, अब यह धारणा बदलती नजर आ रही है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश के बड़े महानगरों में नॉन-स्मोकिंग महिलाओं में फेफड़ों के कैंसर के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। दिल्ली के डॉक्टरों का कहना है कि यह बदलाव अब अस्पतालों और क्लीनिकों में साफ दिखाई देने लगा है।
सरकार ने क्या बताया?
लोकसभा में एक लिखित जवाब में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने ICMR–नेशनल कैंसर रजिस्ट्री प्रोग्राम के आंकड़ों का हवाला दिया। इसके अनुसार, 1982 से 2016 के बीच महानगरों में फेफड़ों के कैंसर के मामलों में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है। खास बात यह है कि महिलाओं में अब एडेनोकार्सिनोमा फेफड़ों के कैंसर का सबसे आम प्रकार बन चुका है। यह कैंसर ग्रंथियों (ग्लैंड) से शुरू होता है और सबसे ज्यादा नॉन-स्मोकर्स में देखा जा रहा है। आंकड़ों के मुताबिक महिलाओं में फेफड़ों के कैंसर के करीब 53 प्रतिशत मामले इसी श्रेणी के हैं, जो बीमारी के पैटर्न में बड़े बदलाव की ओर इशारा करता है।
डीजल और केरोसिन के धुएं से बढ़ रहा खतरा
TOI की एक रिपोर्ट के अनुसार, पीएसआरआई इंस्टीट्यूट ऑफ पल्मोनरी, क्रिटिकल केयर एंड स्लीप मेडिसिन के चेयरमैन और वरिष्ठ पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. जी.सी. खिलनानी का कहना है कि पहले जहां 80–90 प्रतिशत फेफड़ों के कैंसर मरीज स्मोकर होते थे, वहीं अब दुनियाभर में 15–20 प्रतिशत मरीज नॉन-स्मोकर हैं। भारत में यह आंकड़ा इससे भी ज्यादा है। डॉ. खिलनानी के मुताबिक, डीजल से निकलने वाला धुआं फेफड़ों के कैंसर का प्रमाणित कारण माना जाता है, जबकि केरोसिन का धुआं भी जोखिम को बढ़ाता है। इसके अलावा बायोमास ईंधन, पैसिव स्मोकिंग और कुल मिलाकर वायु प्रदूषण इस खतरे को और गंभीर बना रहे हैं।
महिलाओं में कैंसर का बदलता ट्रेंड
अन्य विशेषज्ञों का मानना है कि यह एक साइलेंट एपिडेमियोलॉजिकल शिफ्ट है। एक्शन कैंसर हॉस्पिटल के सीनियर डायरेक्टर (सर्जिकल ऑन्कोलॉजी) डॉ. कपिल कुमार के अनुसार, नॉन-स्मोकिंग महिलाओं में एडेनोकार्सिनोमा अब फेफड़ों का सबसे आम कैंसर बन गया है। इसके पीछे तंबाकू से ज्यादा पर्यावरणीय और ऑर्गेनिक कारण जिम्मेदार हैं। डॉ. कुमार कहते हैं कि शहरी महिलाएं लगातार जहरीले प्रदूषण के संपर्क में रहती हैं, लेकिन फेफड़ों के कैंसर को आज भी सिर्फ स्मोकिंग से जोड़कर देखा जाता है। इसी वजह से शुरुआती लक्षणों को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है और बीमारी का पता तब चलता है, जब वह एडवांस स्टेज में पहुंच चुकी होती है।