Edited By Radhika,Updated: 14 Jul, 2025 11:33 AM

मध्य प्रदेश के अशोकनगर जिले से इंसानियत को शर्मसार कर देने वाली घटना सामने आई है। यहां के एक जिले के चंदेरी क्षेत्र के नानकपुर गांव में एक युवक का अंतिम संस्कार भरी बारिश के बीच खुले आसमान के नीचे करना पड़ा।
नेशनल डेस्क: मध्य प्रदेश के अशोकनगर जिले से इंसानियत को शर्मसार कर देने वाली घटना सामने आई है। यहां के एक जिले के चंदेरी क्षेत्र के नानकपुर गांव में एक युवक का अंतिम संस्कार भरी बारिश के बीच खुले आसमान के नीचे करना पड़ा। यह दिल दहला देने वाली घटना सिर्फ इसलिए हुई, क्योंकि गांव के नए श्मशान घाट का अभी तक उद्घाटन नहीं हुआ था।
क्या है पूरा मामला?
मृतक युवक पवन कुमार अहिरवार (25) हाल ही में एक दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल हो गया था। इलाज के बाद वह घर लौट आया था, लेकिन रविवार को अचानक उसकी तबियत बिगड़ गई और उसकी मृत्यु हो गई। जब परिजन पवन के शव को अंतिम संस्कार के लिए गांव के नए बने श्मशान घाट लेकर पहुंचे तो उन्हें पंचायत सचिव सविता रजक ने रोक दिया। सचिव ने कहा कि श्मशान घाट का अभी तक उद्घाटन नहीं हुआ है, इसलिए वहां अंतिम संस्कार नहीं किया जा सकता। विडंबना यह थी कि उस समय पूरा क्षेत्र लगातार भारी बारिश की चपेट में था।
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बारिश में जली चिता, लोग हाथ में पकड़े रहे टीन
ऐसे में मजबूर होकर परिवार वालों और गांव के लोगों ने पास के ही एक खुले मैदान में अंतिम संस्कार का अस्थायी इंतजाम किया। उन्होंने लोहे की टीन और लकड़ियों की मदद से एक ढांचा बनाया ताकि चिता को बारिश से बचाया जा सके। कुछ लोग खुद अपने हाथों से टीन को पकड़े रहे, ताकि पवन का शव बारिश में भीग न जाए। चिता जलाने के लिए बार-बार डीजल डालना पड़ा, क्योंकि बारिश के कारण आग कई बार बुझ जाती थी। यह दृश्य इतना हृदयविदारक था कि हर किसी की आंखें नम हो गईं।
ना लकड़ी मिली, ना अंत्येष्टि सहायता राशि
इस अमानवीय घटना ने हर किसी के मन में यह सवाल छोड़ दिया कि क्या मरने के बाद भी इंसान को 'उद्घाटन' का मोहताज होना पड़ेगा? परिजनों ने आरोप लगाया कि उन्होंने पंचायत से अंतिम संस्कार के लिए सहायता राशि और लकड़ियों की व्यवस्था करने की भी गुहार लगाई, लेकिन उनकी किसी ने नहीं सुनी। गांव के लोगों का कहना है कि यह नया श्मशान घाट महीनों पहले से बनकर तैयार है, लेकिन सिर्फ 'उद्घाटन' न होने की वजह से आज यह अमानवीय स्थिति पैदा हुई।
यह घटना केवल सरकारी लापरवाही नहीं बल्कि संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है। सवाल यह है कि अगर एक सुविधा का उपयोग नहीं हो सकता तो फिर उसका निर्माण किसलिए कराया गया? क्या अब किसी की मृत्यु होने पर भी सरकारी फीता काटने की रस्म पूरी होने का इंतजार करना होगा? यह घटना सरकारी व्यवस्था पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न लगाती है और स्थानीय प्रशासन के असंवेदनशील रवैये को उजागर करती है।