H1B Visa Impact: ट्रंप का वीजा बम, भारत के लिए संकट या सुनहरा अवसर? एक्सपर्ट्स ने बताई पूरी सच्चाई

Edited By Updated: 20 Sep, 2025 08:20 PM

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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने H-1B वीजा शुल्क बढ़ाकर 1 लाख अमेरिकी डॉलर कर दिया है, जिसका सीधा असर भारतीय आईटी कंपनियों और पेशेवरों पर पड़ेगा। विशेषज्ञों का कहना है कि इससे नई H-1B आवेदन घट सकते हैं और आउटसोर्सिंग बढ़ सकती है। वहीं, नीति आयोग...

नेशनल डेस्क : अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की सरकार ने H-1B वीजा से जुड़ा बड़ा फैसला लिया है। अब हर H-1B वीजा के लिए कंपनियों को सालाना 1 लाख अमेरिकी डॉलर यानी करीब 88 लाख रुपये चुकाने होंगे। पहले यह शुल्क 1,500 डॉलर था। इस फैसले का सीधा असर भारतीय आईटी कंपनियों, पेशेवरों और वैश्विक टेक दिग्गजों पर पड़ने वाला है।

आईटी इंडस्ट्री और भारतीय प्रोफेशनल्स पर असर

विशेषज्ञों का कहना है कि इतनी बड़ी फीस कंपनियों पर भारी आर्थिक बोझ डालेगी। इससे नए H-1B आवेदन कम हो सकते हैं और आउटसोर्सिंग बढ़ सकती है। भारतीय आईटी कंपनियों को हर साल हजारों नए H-1B वीजा मिलते हैं, लेकिन अब यह संख्या घटने की आशंका है। अमेज़न, गूगल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी अमेरिकी कंपनियों पर भी इसका असर होगा।

इंफोसिस के पूर्व CFO का बयान

इंफोसिस के पूर्व CFO मोहनदास पई ने इस फैसले पर प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि यह धारणा गलत है कि कंपनियां H-1B वीजा का इस्तेमाल सस्ते कर्मचारियों को भेजने के लिए करती हैं। उनके मुताबिक, शीर्ष 20 H-1B नियोक्ताओं का औसत वेतन पहले से ही 1 लाख डॉलर से ज्यादा है। उन्होंने ट्रंप के बयानों को 'बेतुका' बताया।

यह भी पढ़ें - ट्रंप का वीजा बम: भारतीय प्रोफेशनल्स को 24 घंटें के अंदर चुकानी होगी 88 लाख फीस, वरना...

नीति आयोग के पूर्व CEO का बयान

नीति आयोग के पूर्व CEO अमिताभ कांत ने कहा कि यह बदलाव अमेरिका के इनोवेशन इकोसिस्टम के लिए नुकसानदायक साबित होगा। लेकिन भारत को इसका फायदा मिल सकता है। खासकर बेंगलुरु और हैदराबाद जैसे तकनीकी शहर इनोवेशन और स्टार्टअप्स के नए केंद्र बन सकते हैं। उन्होंने कहा कि अब प्रयोगशालाएं, पेटेंट और टेक्नोलॉजी से जुड़े बड़े निवेश भारत की ओर रुख कर सकते हैं।

नैस्कॉम की चिंता

आईटी उद्योग निकाय नैस्कॉम ने इस फैसले पर गंभीर चिंता जताई। उनका कहना है कि अचानक इतनी बड़ी फीस से भारतीय आईटी कंपनियों पर बुरा असर होगा और अमेरिका में चल रही कई परियोजनाएं प्रभावित हो सकती हैं। नैस्कॉम ने यह भी कहा कि 21 सितंबर की डेडलाइन बेहद कम है, जिससे पेशेवरों और छात्रों में असमंजस की स्थिति है।

नैस्कॉम ने यह भी बताया कि भारतीय और भारत-केंद्रित कंपनियां पहले से ही अमेरिका में स्थानीय कर्मचारियों की भर्ती पर ध्यान दे रही हैं और H-1B पर निर्भरता घटा रही हैं। ये कंपनियां अमेरिकी नियमों का पालन करती हैं, प्रचलित वेतन देती हैं और वहां की अर्थव्यवस्था में योगदान करती हैं।

कुल मिलाकर, ट्रंप का यह फैसला भारतीय आईटी इंडस्ट्री और पेशेवरों के लिए चुनौती लेकर आया है, लेकिन इसके साथ ही भारत के तकनीकी शहरों को नए अवसर भी मिल सकते हैं।

 


 

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