22 साल की जुदाई के बाद हाईकोर्ट ने दी तलाक की मंजूरी, कहा अब मेल-मिलाप की कोई संभावना नहीं

Edited By Updated: 06 Sep, 2025 02:05 PM

high court approves divorce after 22 years of separation no chance of reunion

मध्य प्रदेश के जबलपुर हाईकोर्ट ने बैतूल के निरंजन और नीला अग्रवाल को तलाक की मंजूरी दी है। दंपति पिछले 22 वर्षों से अलग रह रहे थे। पति ने पत्नी पर मानसिक बीमारी (स्किजोफ्रेनिया) और असामान्य व्यवहार के आरोप लगाए थे। निचली अदालत ने पहले तलाक खारिज...

नेशनल डेस्कः मध्य प्रदेश के बैतूल जिले के एक दंपति के बीच लंबे समय से चले आ रहे विवाद पर जबलपुर हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने 22 वर्षों से अलग रह रहे पति-पत्नी को तलाक की अनुमति देते हुए कहा कि अब इस रिश्ते में सुधार की कोई संभावना नहीं है और विवाह को बनाए रखना न्यायोचित नहीं होगा।

क्या है पूरा मामला?

यह मामला बैतूल निवासी निरंजन अग्रवाल और नागपुर निवासी नीला अग्रवाल का है, जिनका विवाह 7 फरवरी 1988 को हिंदू रीति-रिवाजों से सम्पन्न हुआ था। प्रारंभिक वर्षों में संबंध सामान्य रहे, लेकिन कुछ वर्षों बाद रिश्तों में दरार आ गई। निरंजन का आरोप था कि नीला का व्यवहार असामान्य होता चला गया और वह बार-बार अलग रहने की जिद करती थी। वर्ष 2003 में नीला अपने मायके चली गई, जिसके बाद से दोनों साथ नहीं रह रहे हैं।

पति निरंजन ने लगाया आरोप

पति निरंजन ने आरोप लगाया कि नीला स्किजोफ्रेनिया (मानसिक विकार) से पीड़ित है, और यह तथ्य विवाह के समय उनसे छुपाया गया था। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि पत्नी की सफाई को लेकर आदतें सामान्य सीमा से बाहर थीं। वह रोज़ घर की दीवारों से लेकर फर्श तक धुलवाती थीं और बाहर से लाई गई हर चीज़ को बार-बार धोने का दबाव बनाती थीं। इतना ही नहीं, बच्चों पर भी यह दबाव होता था कि वे सुबह छह बजे से पहले स्नान करें। निरंजन ने यह भी आरोप लगाया कि नीला न तो समय पर खाना बनाती थी और न ही बच्चों के टिफिन की व्यवस्था करती थी, जिसके कारण बच्चे अक्सर बिना खाए ही स्कूल चले जाते थे।

हाईकोर्ट में अपील दायर

साल 2005 में निरंजन ने ट्रायल कोर्ट में तलाक की अर्जी दाखिल की थी, लेकिन 13 मई 2005 को निचली अदालत ने उनका आवेदन खारिज कर दिया था। इसके बाद उन्होंने हाईकोर्ट में अपील दायर की। हाईकोर्ट ने सभी प्रस्तुत साक्ष्यों और परिस्थितियों का विश्लेषण करने के बाद माना कि पति-पत्नी के बीच अब सहजीवन की कोई संभावना नहीं है। लगातार 22 वर्षों की जुदाई और पत्नी के व्यवहार को ध्यान में रखते हुए अदालत ने इसे मानसिक क्रूरता करार दिया, जो हिंदू विवाह अधिनियम के तहत तलाक का वैध आधार है।

 

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