जुलाई में देश की थोक महंगाई दर घटकर -0.45% पर, दो साल के निचले स्तर पर पहुंची: UBI रिपोर्ट

Edited By Updated: 12 Aug, 2025 02:26 PM

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यूनियन बैंक ऑफ इंडिया की एक ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, खाद्य और ईंधन की कीमतों में भारी गिरावट के चलते भारत में थोक मुद्रास्फीति (WPI) जुलाई 2025 में लगभग दो वर्षों के निचले स्तर पर पहुंच सकती है। रिपोर्ट में बताया गया है कि जुलाई में WPI साल-दर-साल...

नेशनल डेस्क : यूनियन बैंक ऑफ इंडिया की एक ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, खाद्य और ईंधन की कीमतों में भारी गिरावट के चलते भारत में थोक मुद्रास्फीति (WPI) जुलाई 2025 में लगभग दो वर्षों के निचले स्तर पर पहुंच सकती है। रिपोर्ट में बताया गया है कि जुलाई में WPI साल-दर-साल आधार पर घटकर -0.45 प्रतिशत रहने का अनुमान है, जबकि जून 2025 में यह -0.13 प्रतिशत थी।

रिपोर्ट में कहा गया है, "जुलाई 2025 में WPI सालाना आधार पर दो साल के निचले स्तर -0.45 प्रतिशत तक आ सकती है।" यह गिरावट मुख्य रूप से खाद्य और ईंधन दोनों श्रेणियों में लगातार गिरते भाव के कारण हुई है। साथ ही, रिपोर्ट ने यह भी रेखांकित किया है कि WPI में यह गिरावट खुदरा मुद्रास्फीति (CPI) के रुझान को भी दर्शाती है।

मुख्य WPI में सुधार
जहाँ खाद्य और ईंधन की कीमतों में गिरावट दर्ज की गई, वहीं मुख्य WPI (जिसमें खाद्य और ईंधन शामिल नहीं होते) में सुधार देखने को मिला। जून 2025 में यह 1.06 प्रतिशत थी, जो जुलाई में बढ़कर 1.50 प्रतिशत हो गई। थोक बाजार में खाद्य मुद्रास्फीति में उल्लेखनीय गिरावट देखी गई। जून में यह -0.26 प्रतिशत थी, जो जुलाई में घटकर -1.72 प्रतिशत हो गई। इसी तरह, ईंधन मुद्रास्फीति भी संकुचन के क्षेत्र में बनी रही, जो जून के -4.23 प्रतिशत से गिरकर -4.90 प्रतिशत हो गई।

आधार प्रभाव और मासिक वृद्धि
रिपोर्ट में कहा गया है कि यह गिरावट आंशिक रूप से आधार प्रभाव के कारण हुई है। हालांकि, मासिक आधार पर सभी उप-श्रेणियों में पिछली अवधि की तुलना में वृद्धि दर्ज की गई। खाद्य श्रेणी में, दूध, चीनी, अन्य प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों और अंडा, मांस, मछली जैसे उत्पादों में मासिक मुद्रास्फीति में बढ़ोतरी देखी गई।
इसके विपरीत, अनाज, दालें, फल, मसाले, तेल और अन्य खाद्य पदार्थों में अपस्फीति का रुख बना रहा। विशेष रूप से, दालों की वार्षिक मुद्रास्फीति फरवरी 2025 से ही नकारात्मक क्षेत्र में बनी हुई है।

वैश्विक जोखिम और घरेलू कारक
रिपोर्ट में यह भी चेतावनी दी गई है कि अमेरिका द्वारा लगाए गए अतिरिक्त व्यापार शुल्क और चालू भू-राजनीतिक संघर्षों के कारण वैश्विक बाजार में कीमतें अस्थिर रह सकती हैं। हालाँकि, कमजोर वैश्विक माँग और पर्याप्त आपूर्ति किसी भी तीव्र मूल्य वृद्धि को सीमित कर सकती है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि मानसून का पैटर्न और संभावित मौसमीय व्यवधान आगामी महीनों में थोक मूल्य सूचकांक को प्रभावित कर सकते हैं।
रिपोर्ट में निष्कर्ष रूप में कहा गया है कि वैश्विक स्तर से आने वाला मुद्रास्फीति दबाव बना रह सकता है, लेकिन भारत में WPI के रुझान को मुख्य रूप से घरेलू परिस्थितियाँ ही तय करेंगी।

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