Edited By Parminder Kaur,Updated: 29 Apr, 2024 01:16 PM
हिंद महासागर में वर्ष 2020 और 2100 के बीच समुद्री सतह के 1.4 डिग्री सेल्सियस से तीन डिग्री सेल्सियस तक गर्म होने की संभावना है, जो चक्रवात में तेजी लाएगा, मानसून को प्रभावित करेगा और समुद्र के जल स्तर में वृद्धि करेगा। एक नए अध्ययन में यह दावा किया...
नेशनल डेस्क. हिंद महासागर में वर्ष 2020 और 2100 के बीच समुद्री सतह के 1.4 डिग्री सेल्सियस से तीन डिग्री सेल्सियस तक गर्म होने की संभावना है, जो चक्रवात में तेजी लाएगा, मानसून को प्रभावित करेगा और समुद्र के जल स्तर में वृद्धि करेगा। एक नए अध्ययन में यह दावा किया गया है।
यह अध्ययन पुणे स्थित भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान (आइआइटीएम) के जलवायु वैज्ञानिक राक्सी मैथ्यू कोल के नेतृत्व में किया गया। अध्ययन में यह प्रदर्शित किया गया है कि समुद्री 'हीटवेव' (समुद्र के तापमान के असामान्य रूप से अधिक रहने की अवधि) के प्रतिवर्ष 20 दिन (1970 2000) से बढ़कर प्रतिवर्ष 220-250 दिन होने का अनुमान है, जिससे उष्ण कटिबंधीय हिंद महाररागर 21 वीं सदी के अंत तक स्थायी 'हीटवेव' स्थिति के करीब पहुंच जाएगा। समुद्री 'हौटवेव' के कारण मूंगों का रंग खत्म हो जाता है, समुद्री घास नष्ट हो जाती है और जलीय पारिस्थितिकी को नुकसान पहुंचता है। इससे मत्स्य पालन क्षेत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
यह चक्रवात के कम अवधि में जोर पकड़ने की भी एक प्रमुख वजह है। 'उष्णकटिबंधीय हिंद महासागर के लिए भविष्य के पूर्वानुमान' शीर्षक वाले अध्ययन के मुताबिक, हिंद महासागर के जल का तेजी से गर्म होना केवल इसकी सतह तक सीमित नहीं है।
हिंद महासागर में, उष्मा की मात्रा सतह से 2,000 मीटर की गहराई तक वर्तमान में 4.5 जेटा जूल प्रति दशक की दर से बढ़ रही है और इसमें भविष्य में 16- 22 नेटा-जूल प्रति दशक की दर से वृद्धि होने का अनुमान है।
कोल ने कहा कि उष्मा की मात्रा में भविष्य में होने वाली वृद्धि एक परमाणु बम (हिरोशिमा में हुए) विस्फोट से उत्पन्न होने वाली ऊर्जा के समान होगी। अधिकतम 'वार्मिंग' अरब सागर सहित उत्तर पश्चिम हिंद महासागर में होगी, जबकि सुमात्रा और जावा के तटों पर कम 'वार्मिंग' होगी।