देश के 14वें उपराष्ट्रपति बने जगदीप धनखड़, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने दिलाई शपथ

Edited By rajesh kumar,Updated: 11 Aug, 2022 12:49 PM

jagdeep dhankhar became the 14th vice president of the country

पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल जगदीप धनखड़ (71) ने बृहस्पतिवार को भारत उपराष्ट्रपति पद की शपथ ली। राष्ट्रपति भवन के दरबार हॉल में आयोजित शपथ ग्रहण समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई।

नेशनल डेस्क: पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल जगदीप धनखड़ (71) ने बृहस्पतिवार को भारत उपराष्ट्रपति पद की शपथ ली। राष्ट्रपति भवन के दरबार हॉल में आयोजित शपथ ग्रहण समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई। इसके साथ ही धनखड़ देश के 14वें उपराष्ट्रपति बन गए हैं। उन्होंने हिंदी में ईश्वर के नाम पर शपथ ली। धनखड़ ने शपथ लेने के बाद जैसे ही हस्ताक्षर किए, राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा, ‘‘बहुत-बहुत बधाई।'' शपथ ग्रहण से पहले निर्वाचन अधिकारी द्वारा उनके निर्वाचित होने पर प्रदान किए गए प्रमाण पत्र को पढ़ा गया।

Delhi | President Droupadi Murmu administers the oath of office to Vice President-elect Jagdeep Dhankhar

Jagdeep Dhankhar becomes the 14th Vice President of India. pic.twitter.com/26m0SdZPXm — ANI (@ANI) August 11, 2022

 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पूर्व उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी सहित कई बड़े नेता इस अवसर पर मौजूद थे। शपथ ग्रहण करने से पहले धनखड़ ने सुबह राजघाट जा कर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि दी। बापू के स्मारक पर जाने के बाद धनखड़ ने ट्वीट किया, ‘‘पूज्य बापू को श्रद्धांजलि देते हुए राजघाट की शांत भव्यता में भारत की सेवा में तत्पर रहने के लिए अपने आप को धन्य एवं प्रेरित महसूस किया।'' प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट कर धनखड़ को बधाई दी और उनके सफल और उपयोगी कार्यकाल की कामना की।

उपराष्ट्रपति और संसद के उच्च सदन राज्यसभा के नए सभापति के रूप में वह वेंकैया नायडू का स्थान लेंगे। धनखड़ ने उपराष्ट्रपति चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के प्रत्याशी के तौर पर विपक्ष की साझा उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा को पराजित किया था एकतरफा मुकाबले में धनखड़ को कुल 528 मत मिले, जबकि अल्वा को सिर्फ 182 वोट से ही संतोष करना पड़ा। इस चुनाव में कुल 725 सांसदों ने मतदान किया, जिनमें से 710 वोट वैध पाए गए, और 15 मतपत्रों को अवैध पाया गया।

कभी जनता दल के साथ रहे धनखड़ 2008 में भाजपा में शामिल हुए थे

राजनीतिक क्षितिज में पिछले कुछ वर्षों के दौरान धनखड़ के उदय ने बहुत सारे लोगों को आश्चर्य में डाला है। कभी राजनीति में आने को लेकर अनिच्छुक रहे धनखड़ पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के रूप में चर्चा में आए जब अक्सर उनके और वहां की राज्य सरकार के बीच टकराव की खबरें सुर्खियां बनती थीं। यही कारण रहा कि वह कई बार मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस के निशाने पर आए। कभी जनता दल के साथ रहे धनखड़ 2008 में भाजपा में शामिल हुए थे। वह अतीत में अधिवक्ता के तौर पर काम कर चुके हैं।

उन्होंने राजस्थान में जाट समुदाय को ओबीसी का दर्जा दिलाने की मांग और ओबीसी से जुड़े कई अन्य मुद्दों की जोरदार ढंग से वकालत की। धनखड़ की उम्मीदवारी की घोषणा करते समय भाजपा ने उन्हें ‘किसान पुत्र' बताया था, जिसे किसानों और खासकर जाट समुदाय के बीच एक संदेश देने के प्रयास के तौर पर देखा गया, क्योंकि तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ हुए आंदोलन में इस समुदाय के लोगों ने अच्छीखासी भागीदारी की थी।

1989 के लोकसभा चुनाव में झुंझुनू से सांसद चुने गए

राजस्थान में झुंझुनू जिले के एक सुदूर गांव में किसान परिवार में जन्मे धनखड़ ने अपनी स्कूली शिक्षा सैनिक स्कूल, चित्तौड़गढ़ से पूरी की। भौतिकी में स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने राजस्थान विश्वविद्यालय से एलएलबी की उपाधि ली। धनखड़ ने राजस्थान उच्च न्यायालय और देश के उच्चतम न्यायालय, दोनों में वकालत की। 1989 के लोकसभा चुनाव में झुंझुनू से सांसद चुने जाने के बाद उन्होंने 1990 में संसदीय मामलों के राज्य मंत्री के रूप में कार्य किया। 1993 में वह अजमेर जिले के किशनगढ़ निर्वाचन क्षेत्र से राजस्थान विधानसभा पहुंचे। अपने समय के अधिकांश जाट नेताओं की तरह धनखड़ भी मूल रूप से देवीलाल से जुड़े हुए थे।

तब युवा वकील रहे धनखड़ का राजनीतिक सफर तब आगे बढ़ना शुरू हुआ, जब देवीलाल ने उन्हें 1989 में कांग्रेस का गढ़ रहे झुंझुनू संसदीय क्षेत्र से विपक्षी उम्मीदवार के रूप में मैदान में उन्हें उतारा था और धनखड़ ने जीत दर्ज की। धनखड़ 1990 में विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व वाली सरकार में केंद्रीय मंत्री बने। जब पी.वी. नरसिंह राव प्रधानमंत्री बने तो वह कांग्रेस में शामिल हो गए। राजस्थान की राजनीति में अशोक गहलोत का प्रभाव बढ़ने पर धनखड़ भाजपा में शामिल हो गए और कहा जाता है कि वह जल्द वसुंधरा राजे के करीबी बन गए। धनखड़ को एक खेल प्रेमी के रूप में भी जाना जाता है और वह राजस्थान ओलंपिक संघ और राजस्थान टेनिस संघ के अध्यक्ष रह चुके हैं। 

 

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