Mansa Devi Mandir: मनसा देवी मंदिर क्यों है इतना प्रसिद्ध? जानें इस मंदिर के पौराणिक कथा के बारे में

Edited By Updated: 27 Jul, 2025 12:22 PM

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उत्तराखंड के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल मनसा देवी मंदिर में रविवार सुबह बड़ा हादसा हो गया। श्रद्धालुओं की भारी भीड़ के चलते भगदड़ मच गई, जिसमें 6 लोगों की दर्दनाक मौत हो गई और करीब 25 से 30 लोग घायल हो गए। इस हादसे ने एक बार फिर इस पवित्र मंदिर की ओर...

नेशनल डेस्क: उत्तराखंड के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल मनसा देवी मंदिर में रविवार सुबह बड़ा हादसा हो गया। श्रद्धालुओं की भारी भीड़ के चलते भगदड़ मच गई, जिसमें 6 लोगों की दर्दनाक मौत हो गई और करीब 25 से 30 लोग घायल हो गए। इस हादसे ने एक बार फिर इस पवित्र मंदिर की ओर देशभर का ध्यान खींचा है। आइए जानते हैं कि आखिर मां मनसा देवी का यह मंदिर इतना प्रसिद्ध क्यों है, इसकी ऐतिहासिक और धार्मिक मान्यता क्या है और यहां आस्था की डोर से जुड़ी कौन-सी खास परंपराएं निभाई जाती हैं। हरिद्वार के शिवालिक पर्वतमाला की ऊंची चोटी पर मां मनसा देवी का भव्य मंदिर स्थित है। यहां से पूरे हरिद्वार शहर का सुंदर दृश्य दिखाई देता है। यह मंदिर उत्तराखंड के प्रमुख सिद्ध पीठों में से एक है और हर वर्ष लाखों श्रद्धालु यहां अपनी मनोकामनाएं पूरी करवाने के लिए पहुंचते हैं।

धागा बांधने की अनोखी परंपरा

मंदिर के परिसर में एक विशेष स्नोही वृक्ष है, जिस पर श्रद्धालु धागा बांधते हैं। मान्यता है कि यदि कोई व्यक्ति सच्चे मन से मां से प्रार्थना करता है और इस पेड़ पर धागा बांधता है, तो मां उसकी हर मनोकामना पूर्ण करती हैं। जब मनोकामना पूरी हो जाती है तो श्रद्धालु वापस आकर उसी पेड़ पर बंधा धागा खोलते हैं।

मां मनसा देवी कौन हैं?

पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, मां मनसा देवी को नागों की देवी और मनोकामना पूर्ण करने वाली देवी माना जाता है। ‘मनसा’ का अर्थ होता है ‘इच्छा’ या ‘मन की भावना’। स्कंद पुराण में उन्हें दस महाविद्याओं में से एक बताया गया है। उनकी उत्पत्ति शिवजी के मन से मानी जाती है, इसलिए उनका नाम ‘मनसा’ पड़ा।

पौराणिक कथा: महिषासुर का अंत और मां का आशीर्वाद

पुराणों के अनुसार, एक बार महिषासुर नामक राक्षस ने स्वर्गलोक पर आक्रमण कर वहां के देवताओं को पराजित कर दिया। तब सभी देवताओं ने एकजुट होकर देवी का आह्वान किया। मां मनसा देवी ने प्रकट होकर महिषासुर का वध किया और देवताओं को फिर से स्वर्ग का अधिकार दिलाया। इससे प्रसन्न होकर देवताओं ने देवी से अनुरोध किया कि कलियुग में भी वे इसी प्रकार भक्तों की मनोकामना पूर्ण करती रहें। मां ने देवताओं को वचन दिया कि वे हरिद्वार के शिवालिक पर्वत की श्रृंखला के मुख शिखर पर निवास करेंगी और वहीं से भक्तों को आशीर्वाद देंगी। तभी से इस स्थान को मनोकामना सिद्धि स्थल माना जाता है।

मंदिर का ऐतिहासिक निर्माण

इतिहासकारों के अनुसार, मनसा देवी मंदिर का निर्माण ग्वालियर के राजा गोला सिंह ने वर्ष 1811 से 1815 के बीच करवाया था। यह मंदिर चार प्रमुख शक्तिपीठों में से एक माना जाता है, जहां समुद्र मंथन के समय अमृत की कुछ बूंदें गिर गई थीं। इसी कारण इसे दिव्य और शक्तिशाली स्थल माना जाता है।

मंदिर में स्थापित हैं मां की दो दिव्य प्रतिमाएं

मंदिर में मां की दो भव्य मूर्तियां स्थापित हैं। एक प्रतिमा में मां के तीन मुख और पांच भुजाएं हैं और दूसरी में आठ भुजाएं। मां की एक मूर्ति कमल पर विराजमान है और दूसरी सर्प पर, जो इस बात का प्रतीक है कि वे सर्पों की रक्षक और नाग देवी भी हैं।

कैसे पहुंचें मनसा देवी मंदिर?

हरिद्वार रेलवे स्टेशन से यह मंदिर कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मंदिर तक पहुंचने के लिए रोपवे (उड़न खटोला) की सुविधा भी उपलब्ध है, जो खासकर बुजुर्ग और बच्चों के लिए यात्रा को आसान बना देता है। चाहें तो आप पैदल भी चढ़ाई कर मंदिर तक जा सकते हैं।

हरिद्वार दर्शन का अभिन्न हिस्सा है मनसा देवी मंदिर

हरिद्वार आने वाला हर यात्री, चाहे वो कुंभ स्नान करने आया हो या गंगा आरती देखने, मनसा देवी के दर्शन किए बिना अपनी यात्रा अधूरी मानता है। नवरात्रि, सावन और अन्य त्योहारों के समय यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ रहती है।

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