Edited By Yaspal,Updated: 26 Aug, 2020 10:34 PM
कोरोनो महामारी की वजह से लगे लॉकडाउन के चलते बहुत से लोगों को आर्थिक समस्या का सामना करना पड़ रहा है। कई लोगों की नौकरी चली गई है तो कइयों ने अपना रोजगार ही बदल दिया। कोरोना काल में बेरोजगार हुए लोगों का आलम यह है कि एक गणित शिक्षक को बैग बेचने पर...
नई दिल्लीः कोरोनो महामारी की वजह से लगे लॉकडाउन के चलते बहुत से लोगों को आर्थिक समस्या का सामना करना पड़ रहा है। कई लोगों की नौकरी चली गई है तो कइयों ने अपना रोजगार ही बदल दिया। कोरोना काल में बेरोजगार हुए लोगों का आलम यह है कि एक गणित शिक्षक को बैग बेचने पर मजबूर होना पड़ा। दरअसल, मामला राजधानी दिल्ली का है। गणित शिक्षक का नाम मोहम्मद फैजी है। मोहम्मद फैजी को मार्च से वेतन नहीं मिला है। वेतन न मिलने की वजह से वह अपनी दो बेटियों की स्कूली फीस भी नहीं जमा कर पाए।
मोहम्मद फैजी को मार्च से वेतन नहीं मिला है, जिसके चलते वह अपनी दो बेटियों की स्कूली फीस भी नहीं जमा कर पाये। अब वह दिल्ली के दिलशाद गार्डन में साप्ताहिक बाजार में कपड़े के बैग बेचने लगे हैं। कोरोना वायरस लॉकडान के चलते दिल्ली में मार्च के आखिर से साप्ताहिक बाजार बंद थे और वे सोमवार को खुले। दिल्ली सरकार ने प्रायोगिक आधार पर 30 अगस्त तक उन्हें खुलने की इजाजत दी है। फैजी अपने बुजुर्ग माता-पिता, पत्नी और पांच एवं दस साल की दो बेटियों के साथ शाहदरा में दो कमरे के मकान में रहते हैं। वह एक निजी विद्यालय में छठी से लेकर आठवीं कक्षाओं तक के विद्यार्थियों को गणित पढ़ाते हैं। लॉकडाउन के बाद वह बिना किसी वेतन के ऑनलाइन क्लास लेने लगे।
फैजी ने कहा, ‘‘ मेरे दोस्तों ने वित्तीय रूप से मेरी मदद की लेकिन मैं उनसे और मांग भी नहीं सकता। हम किसी तरह काम चला रहे हैं। मैं अपनी बेटियों की स्कूल फीस भी नहीं जमा कर सका, इसलिए मैं उन्हें खुद ही पढ़ा रहा हूं।'' दिन में ऑनलाइन क्लास लेने वाले फैजी मंगलवार शाम को अपने दोस्तों के यहां बने कपड़े के बैगों को बेचने दिलशाद गार्डन के साप्ताहिक बाजार पहुंचे। ग्राहक के इंतजार कर रहे फैजी ने कहा, ‘‘ मेरे दोस्त ये बैग बनाते हैं। उन्होंने सुझाव किया मैं बाजार में इन्हें बेचूं और मुनाफा कमाऊं।''
फैजी ने कहा कि वह समझ सकते हैं कि स्कूल कुछ समय के लिए उनका वेतन नहीं दे पाएगा। उन्होंने कहा, ‘‘ कई परिवार कोविड के चलते बेरोजगार हो गये। मुझ जैसे लोग अपने बच्चों की स्कूल फीस नहीं दे पाए। स्कूल भी शिक्षकों का वेतन देने में कठिनाई झेल रहे हैं।'' उन्होंने कहा, ‘‘ मैं दिन के समय पढ़ाना चाहता हूं और शाम के समय कुछ और करना चाहता हूं ताकि अपनी जरूरतें पूरी कर पाऊं। यही वजह है कि साप्ताहिक बाजार अच्छा विचार जान पड़ा।''