251 पन्नों का संविधान, 6 महीने और 1 गुमनाम लेखक! जानिए कौन थे प्रेम बिहारी रायजादा

Edited By Anil dev,Updated: 26 Nov, 2020 02:01 PM

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26 नवम्बर को भारत में हर साल संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसके पीछे कई महत्वपूर्ण जानकारियां छिपी हैं। भारत का संविधान दुनिया के सभी संविधानों को परखने के बाद बनाया गया था इसीलिए इस संविधान को सबसे महत्वपूर्ण संविधान कहा जाता है। अब से हर...

नेशनल डेस्क:  26 नवम्बर को भारत में हर साल संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसके पीछे कई महत्वपूर्ण जानकारियां छिपी हैं। भारत का संविधान दुनिया के सभी संविधानों को परखने के बाद बनाया गया था इसीलिए इस संविधान को सबसे महत्वपूर्ण संविधान कहा जाता है। बहुत कम लोग जानते हैं कि संविधान की असली कॉपी प्रेम बिहारी नारायण रायजादा ने हाथ से लिखी थी। 

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नहीं लिया एक भी पैसा
1901 में दिल्ली में पैदा हुए रायजादा, जिन्होंने सारे दस्तावेज टाइपराइटर की सहायता से नहीं बल्कि अपने हाथों से लिखे। सारा संविधान हाथ से उन्होंने हाथ से बिना किसी गलती के लिखा। इस तथ्य के बावजूद कि पूरे संविधान को लिखने में लंबा समय लगा, इसमें असंगति का एक भी निशान नहीं और प्रवाहपूर्ण इटैलिक शैली जिसमें इसे लिखा गया था, सुलेख उत्कृष्टता के सर्वोत्तम उदाहरणों में से एक है।  रायजादा जिनके दादा रामप्रसाद जो अंग्रेजी और फारसी के जाने माने विद्वान थे, जिन्होंने अपने दादा से ये सुलेश कला सीखी थी। उन्होंने अपने माता पिता की मौत के बाद अपने साथ अपने चार भाईयों का भी पालन पोषण किया था। जब संविधान तैयार हो गया और प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने प्रेम बिहारी से संपर्क कर उनसे इन्हें अपनी हस्तरेखा में इटैलिक में लिखने के लिए कहा व पूछा कि उन्हें इसके लिए कितने पैसे चाहिए तो जवाब में प्रेम बिहारी ने कहा कि मेरे पास ईश्वर का दिया हुआ सब कुछ है मैं सिर्फ इतना चाहता हूं कि संविधान के पेज पर अपना नाम व उसके अंतिम पृष्ठ पर अपने बाबा का नाम लिखूं।

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6 महीने में हुआ सविधान तैयार
प्रेम बिहारी नारायण रायजादा की यह इच्छा मान ली गई। संविधान लिखने के लिए हाथ से बने हुए कागज पुणे से मंगवाए गए। रायजादा साहब ने संविधान लिखने के लिए 303 निब होल्‍डर कलम और 254 बोतल स्‍याही का इस्‍तेमाल किया गया। संविधान के लिख‍ित दस्तावेज के पन्‍नों को शांति निकेतन के नंदलाल बोस की अगुवाई वाली टीम ने अपनी कला से सजाया। भारतीय इतिहास के विभिन्न अनुभवों और आंकड़ों को संविधान के इन पन्नों में दर्शाया गया। इस तरह महान देश का महान संविधान लिख‍ित रूप में 6 महीनों में तैयार हुआ। इसके बाद संविधान सभा के सभी 299 सदस्‍यों ने इस पर जनवरी, 1950 में हस्‍ताक्षर किए।" उस समय संविधान में, कुल 395 आर्टिकल, 8 शेड्यूल, और एक प्रस्तावना थी। संविधान की पांडुलिपि में 251 पन्ने हैं, जिसका वजन 3. 75 किग्रा है।

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इन देशों के संविधान से ली मदद
मरीका : मौलिक अधिकार, न्यायिक पुनरावलोकन, संविधान की सर्वोच्चता, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, निर्वाचित राष्ट्रपति एवं उस पर महाभियोग।
ब्रिटेन: संसदात्मक शासन-प्रणाली, एकल नागरिकता एवं विधि निर्माण प्रक्रिया।
आयरलैंड: नीति निर्देशक सिद्धांत, राष्ट्रपति के निर्वाचक-मंडल की व्यवस्था, राज्यसभा मेें विशेष सदस्यों का मनोनयन
ऑस्ट्रेलिया: प्रस्तावना की भाषा, समवर्ती सूची का प्रावधान, केंद्र एवं राज्य के बीच संबंध तथा शक्तियों का विभाजन।
जर्मनी: आपातकाल के दौरान राष्ट्रपति की शक्तियां।
फ्रांस : संविधान की प्रस्तावना में स्वतंत्रता, समानता और भ्रातृत्व जैसे वाक्य फ्रांस के संविधान से लिए गए। फ्रांस की क्रांति में ये ही आदर्श वाक्य थे। 
रूस : मौलिक कर्तव्यों का प्रावधान। इसके अलावा कनाडा, द. अफ्रीका व जापान के संविधान से भी कुछ अंश लिया गया।



इसलिए चुना गया 26 नवंबर
आपको बता दें कि 26 नवंबर 1949 को भारतीय संविधान सभा द्वारा अपनाया गया और 26 नवंबर 1950 को इसे एक लोकतांत्रिक सरकार प्रणाली के साथ लागू किया गया था। 26 नवंबर का दिन संविधान के महत्व का प्रसार करने के लिए चुना गया था।
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सबसे बड़ा संविधान
विश्व में भारत का संविधान सबसे बड़ा है। इसमें 448 अनुच्छेद, 12 अनुसूचियां और 94 संसोधन शामिल हैं। भारत का संविधान एक हस्तलिखित है। इसमें 48 आर्टिकल हैं। इस संविधान को तैयार करने में 2 साल 11 महीने और 17 दिन का वक्त लगा था।


समिति की स्थापना
29 अगस्त 1947 को भारत के संविधान का मसौदा तैयार करने वाली समिति की स्थापना हुई जिसमें अध्यक्ष के रूप में डॉ. भीमराव अंबेडकर की नियुक्ति हुई।
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संविधान का मसौदा और शुभ संकेत
संविधान का मसौदा तैयार करने वाली समिति हिंदी तथा अंग्रेजी दोनों में ही हस्तलिखित और कॉलीग्राफ्ड थी, इसमें किसी भी तरह की टाइपिंग या प्रिंट का प्रयोग नहीं किया गया। जिस दिन भारत का संविधान तैयार किया जा रहा था, उस दिन बारिश हो रही थी। भारत की संस्कृति में इसे शुभ संकेत माना जाता है।


 

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