आखिर कौन था वो सांसद जिसके एक वोट से गिर गई थी अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार

Edited By Anil dev,Updated: 25 Dec, 2021 11:22 AM

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देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की तीसरी पुण्यतिथि आज है।  इस मौके पर आज राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें श्रद्धांजलि दी है। उनके साथ ही उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने भी पूर्व पीएम की पुण्यतिथि पर उन्हें...

नेशनल डेस्क: देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की तीसरी पुण्यतिथि आज है।  इस मौके पर आज राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें श्रद्धांजलि दी है। उनके साथ ही उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने भी पूर्व पीएम की पुण्यतिथि पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित की। 

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वाजपेयी को एक कुशल राजनीतिज्ञ, प्रशासक, भाषाविद, कवि, पत्रकार व लेखक के रूप में जाने जाते रहे हैं। एक दौर में उनकी भाषाण शैली का भारतीय राजनीति में डंका बजता था। वह जब जनसभा या संसद में बोलने खड़े होते तो उनके समर्थक और विरोधी दोनों उन्हें सुनना पसंद करते थे। वाजपेयी के राजनीतिक सफर की एक घटना ज़रूर याद आती है जो 1999 में लोकसभा में घटित हुई थी। जब वाजपेयी सरकार सिर्फ 13 महीने के बाद गिर गई थी। 

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1998 के आम चुनाव में किसी भी पार्टी को पूरी तरह बहुमत नहीं मिला था लेकिन AIADMK के समर्थन से एनडीए ने केंद्र में सरकार बनाई थी लेकिन 13 माह बाद अम्मा ने समर्थन वापस ले लिया तो अटल सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश हो गया। सरकार को नंबर गेम पर भरोसा था इसलिए प्रस्ताव स्वीकार हो गया। 

मायावती ने अटल सरकार के खिलाफ दिया था वोट 
उधर मायावती ने भी वोटिंग में हिस्सा नहीं लेने की घोषणा की थी। लेकिन ऐन वक्त पर मायावती ने माया दिखाई और उनके सांसदों ने अटल सरकार के खिलाफ वोट दिया। जब वोटिंग हुई तो अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार एक वोट से हार गयी। जी हां एक वोट से और यह वोट था गिरधर गमांग का जो उस वक्त उड़ीसा (अब ओडीशा) के मुख्यमंत्री थे। अटल बिहारी बाजपेयी इससे इतने हतप्रभ हुए थे कि काफी देर तक चुपचाप सदन में अपनी सीट पर बैठे रहे थे और  उसके बाद बाहर निकल गए थे। दरअसल उन्हें विश्वास ही नहीं था कि उनकी सरकार अविश्वास प्रस्ताव हार जाएगी।


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वाजपेयी को था सरकार के बच जाने का भरोसा 
मायावती की वादाखिलाफी के बावजूद उन्हें सरकार बचा ले जाने का भरोसा था। लेकिन गिरधर गमांग की अंतिम समय में हुई एंट्री ने पासा पलट दिया। दरअसल गमांग बतौर सांसद उड़ीसा के मुख्यमंत्री बनकर जा चुके थे। उन्हें छह महीने में  विधायक बनना था। लेकिन उन्होंने संसद की सीट नहीं छोड़ी थी। इसलिए कांग्रेस उन्हें वोटिंग के लिए विशेष तौर पर लाई। हालांकि उनके इस तरह से वोट करने की काफी आलोचना हुई थी लेकिन चूंकि नियम स्पष्ट नहीं थे तो उनका वोट  वैध माना गया और वही निर्णायक साबित हुआ। 

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गमांग ने बिगाड़ा था अटल सरकार का खेल 
अन्यथा बराबर रहने पर स्पीकर के वोट से भी बीजेपी सरकार बच जाती।  यही गणित पार्टी ने लगाया भी था। लेकिन गमांग ने सारा खेल बिगाड़ दिया था। सियासत के दिलचस्प रंग देखिये। ..गिरधर गमांग जिन्होंने अटल सरकार को गिराने में अहम भूमिका निभाई थी वही गमांग बाद में भाजपा के चहेते बन गए। वर्ष 2015 में उन्होंने अमित शाह के साथ मुलाकात करके बीजेपी ज्वाइन कर ली थी। उस वक्त इसके लिए बीजेपी की आलोचना भी खूब हुई थी। 

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