तिब्बत पर कब्जा, अब लद्दाख, नेपाल, भूटान, सिक्किम और अरुणाचल पर नजर- चीन की रणनीति पर पूर्व PM का खुलासा

Edited By Updated: 13 Sep, 2025 11:35 PM

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तिब्बत की निर्वासित सरकार के पूर्व प्रधानमंत्री लोबसांग सांगेय ने चीन की विस्तारवादी नीतियों पर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि चीन तिब्बत को "हथेली" और उसके आसपास के देशों को "पांच उंगलियों" की तरह देखता है और यही उसकी विस्तारवादी नीति की जड़ है।

नेशनल डेस्कः तिब्बत की निर्वासित सरकार के पूर्व प्रधानमंत्री लोबसांग सांगेय ने चीन की विस्तारवादी नीतियों पर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि चीन तिब्बत को "हथेली" और उसके आसपास के देशों को "पांच उंगलियों" की तरह देखता है और यही उसकी विस्तारवादी नीति की जड़ है।

चीन की पांच उंगलियों की रणनीति क्या है?

सांग्ये ने समाचार एजेंसी ANI से बातचीत में कहा कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग तिब्बत को मज़बूती से अपने नियंत्रण में रखकर पांच आस-पास के क्षेत्रों — लद्दाख, नेपाल, भूटान, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश  को निशाना बना रहे हैं। यह रणनीति चीन की एक पुरानी योजना है जिसे अब फिर से सक्रिय रूप में लागू किया जा रहा है। सांग्ये ने कहा, "तिब्बत हथेली है और उसके इर्द-गिर्द के क्षेत्र पांच उंगलियां हैं। हथेली को पकड़ो और फिर उंगलियों की ओर बढ़ो – यही चीन की रणनीति है," ।

भारतीय सेना की तारीफ

सांग्ये ने भारत की सेना की सराहना करते हुए कहा कि चीन की घुसपैठ की कोशिशों को भारतीय सैनिक लगातार विफल कर रहे हैं। उन्होंने कहा: "वे डोकलाम, गलवान घाटी (लद्दाख), सिक्किम और भूटान में सक्रिय हैं। अरुणाचल प्रदेश में तो हर हफ्ते कुछ न कुछ करने की कोशिश होती है। लेकिन भारतीय सेना उन्हें पीछे धकेल रही है।"

तिब्बत में विकास चीन के लिए, तिब्बतियों के लिए नहीं

उन्होंने यह भी कहा कि तिब्बत में इन्फ्रास्ट्रक्चर तो बढ़ा है, जैसे सड़कें, रेल मार्ग, हवाई अड्डे, इमारतें। लेकिन इनका फायदा तिब्बतियों को नहीं, बल्कि चीन से आने वाले प्रवासियों को हो रहा है। "तिब्बत में लाइसेंस, दुकानें, कारोबार—सब पहले चीनियों को मिलते हैं। तिब्बती लोग तो दूसरी श्रेणी के नागरिक बनकर रह गए हैं। गर्मियों में चीनी प्रवासी तिब्बत आते हैं और पूरा व्यापार अपने हाथ में ले लेते हैं, जबकि सर्दियों में तिब्बती लोग भी इलाका छोड़ने को मजबूर होते हैं।"

तिब्बत है खनिज संपदा का खजाना

सांग्ये ने कहा कि तिब्बत की जमीन चीन के लिए बेहद कीमती है, क्योंकि वहाँ प्राकृतिक संसाधनों की भरमार है। उन्होंने बताया:

  • चीन का 75% लिथियम भंडार तिब्बत में है।

  • दूसरा सबसे बड़ा कॉपर (तांबा) खनन क्षेत्र भी तिब्बत में है।

  • यूरेनियम, सोना और 136 प्रकार के अन्य खनिज तिब्बत की ज़मीन में मौजूद हैं।

  • इन सभी का अरबों डॉलर का मूल्य है और चीन इनका खुलकर शोषण कर रहा है। सांग्ये ने कहा,"यह केवल भू-राजनीति नहीं है, बल्कि आर्थिक लाभ का भी बड़ा खेल है,"।

तिब्बत की मांग क्या है?

ल्होसांग सांग्ये ने बताया कि तिब्बतियों की मांग आज भी वही है — "मध्य मार्ग" नीति के तहत चीन के साथ संवाद और आत्मनिर्णय के अधिकार के साथ वास्तविक स्वायत्तता। "हम स्वतंत्रता नहीं, बल्कि चीन के भीतर रहते हुए एक सम्मानजनक स्वायत्तता चाहते हैं।"

चीन के साथ संवाद हो रहा है मुश्किल

हालांकि सांग्ये ने यह भी माना कि पिछले 30 सालों में चीन ने कभी गंभीरता से संवाद की कोशिश नहीं की है। वे सिर्फ अपना फायदा चाहते हैं और दूसरों की बात सुनने को तैयार नहीं होते। सांग्ये ने कहा, "चीन अब किसी के साथ संवाद नहीं करना चाहता। वह सिर्फ लेने की सोचता है, देने की नहीं," ।

पृष्ठभूमि: तिब्बत और चीन का विवाद

  • 1949 में चीन ने तिब्बत पर आक्रमण किया और 1950 तक उसे अपने नियंत्रण में ले लिया।

  • तिब्बती इसे अवैध कब्जा मानते हैं और अब उनकी निर्वासित सरकार भारत में काम कर रही है।

  • तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा ने भी "मध्य मार्ग" का समर्थन किया है, जिसमें चीन के साथ बातचीत के जरिए एक शांतिपूर्ण समाधान खोजा जा सके।

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