देशभर में आज नहीं होगी डिलीवरी? Amazon, Zepto, Blinkit और Swiggy समेत इन बड़ी कंपनियों के पार्टनर्स की हड़ताल

Edited By Updated: 31 Dec, 2025 01:46 AM

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अगर आप न्यू ईयर ईव पर खाना मंगवाने या क्विक कॉमर्स ऐप्स (10–15 मिनट डिलीवरी) पर निर्भर रहने की योजना बना रहे हैं, तो आपको पहले से तैयारी कर लेनी चाहिए। दरअसल, Zomato, Swiggy, Blinkit, Zepto, Amazon और Flipkart से जुड़े डिलीवरी वर्कर्स ने बुधवार यानी...

नेशनल डेस्कः अगर आप न्यू ईयर ईव पर खाना मंगवाने या क्विक कॉमर्स ऐप्स (10–15 मिनट डिलीवरी) पर निर्भर रहने की योजना बना रहे हैं, तो आपको पहले से तैयारी कर लेनी चाहिए। दरअसल, Zomato, Swiggy, Blinkit, Zepto, Amazon और Flipkart से जुड़े डिलीवरी वर्कर्स ने बुधवार यानी 31 दिसंबर को देशव्यापी हड़ताल का ऐलान किया है। यह दिन ऑनलाइन डिलीवरी के लिहाज से साल के सबसे व्यस्त दिनों में से एक माना जाता है।

कौन कर रहा है हड़ताल का नेतृत्व?

इस हड़ताल का नेतृत्व कर रहे हैं: तेलंगाना गिग एंड प्लेटफॉर्म वर्कर्स यूनियन (TGPWU) और इंडियन फेडरेशन ऑफ ऐप-बेस्ड ट्रांसपोर्ट वर्कर्स (IFAT)। इसके अलावा महाराष्ट्र, कर्नाटक, दिल्ली-NCR, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु के कुछ हिस्सों की कई क्षेत्रीय यूनियनें और वर्कर्स कलेक्टिव्स भी इसका समर्थन कर रहे हैं।

यूनियन नेताओं का दावा है कि एक लाख से ज्यादा डिलीवरी वर्कर्स न्यू ईयर ईव पर या तो ऐप्स से लॉगआउट रहेंगे या फिर काम काफी कम कर देंगे।

क्रिसमस के बाद फिर हड़ताल क्यों?

यह न्यू ईयर ईव की हड़ताल क्रिसमस डे (25 दिसंबर) को हुई इसी तरह की हड़ताल के कुछ ही दिनों बाद हो रही है। इससे साफ है कि भारत की गिग इकॉनमी में असंतोष लगातार बढ़ रहा है। यूनियनों का कहना है कि डिलीवरी की मांग तेजी से बढ़ी है, लेकिन वर्कर्स की सैलरी, सुरक्षा और काम की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ। कंपनियां हालात सुधारने के बजाय चीजों को और खराब कर रही हैं। यूनियनों का मानना है कि यह हड़ताल इन समस्याओं को सामने लाने के लिए जरूरी है।

किन शहरों में सबसे ज्यादा असर?

न्यू ईयर ईव पर आमतौर पर रिकॉर्ड ऑर्डर आते हैं। ऐसे में यूनियनों को उम्मीद है कि इस दिन की हड़ताल से कंपनियों पर दबाव बनेगा।

हड़ताल का असर इन शहरों में ज्यादा दिख सकता है: पुणे,बेंगलुरु,दिल्ली,हैदराबाद,कोलकाता और छत्रपति संभाजीनगर। इसके अलावा कई टियर-2 शहरों में भी डिलीवरी सेवाएं प्रभावित हो सकती हैं।

भारत की गिग इकॉनमी कितनी बड़ी है?

नीति आयोग के अनुमान के मुताबिक 2029–30 तक भारत में 2.35 करोड़ गिग वर्कर्स हो सकते हैं। यानी आने वाले समय में यह सेक्टर और भी बड़ा होने वाला है।

आखिर हड़ताल क्यों? (WHY THE PROTEST?)

यूनियनों का कहना है कि फूड डिलीवरी और क्विक कॉमर्स का तेजी से विस्तार हुआ है लेकिन इसका फायदा जमीन पर काम करने वाले वर्कर्स को नहीं मिला। प्लेटफॉर्म कंपनियां स्पीड और कस्टमर सुविधा को प्राथमिकता देती हैं, जबकि काम का बोझ बढ़ता जा रहा है, कमाई घट रही है और जोखिम पूरा वर्कर्स पर डाला जा रहा है।

यूनियन नेता क्या बोले?

शेख सल्लाउद्दीन, जो TGPWU के फाउंडर और IFAT के नेशनल जनरल सेक्रेटरी हैं, ने कहा: “25 दिसंबर की हड़ताल ने भारत की गिग इकॉनमी की सच्चाई उजागर कर दी है। जब भी वर्कर्स अपनी आवाज उठाते हैं, कंपनियां उनकी आईडी ब्लॉक कर देती हैं, धमकियां देती हैं, पुलिस शिकायत का डर दिखाती हैं और एल्गोरिदम के जरिए सजा देती हैं।” उन्होंने इसे आधुनिक दौर का शोषण बताया और कहा: “गिग इकॉनमी टूटी हुई देह और दबाई गई आवाजों पर नहीं चल सकती।”

सल्लाउद्दीन के मुताबिक 25 दिसंबर की हड़ताल में करीब 40,000 वर्कर्स शामिल हुए। कई शहरों में करीब 60% डिलीवरी प्रभावित हुई। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि कंपनियों ने हड़ताल तोड़ने के लिए थर्ड-पार्टी एजेंसियां, ज्यादा इंसेंटिव का लालच और पुराने इनएक्टिव आईडी दोबारा चालू कीं।

वर्कर्स की बड़ी समस्याएं क्या हैं?

1️⃣ ऐप और एल्गोरिदम का पूरा कंट्रोल

वर्कर्स का कहना है कि ऐप्स उनके काम के घंटे, पेमेंट, इंसेंटिव, टारगेट और पेनल्टी सब कुछ तय करते हैं, वो भी बिना किसी स्पष्ट जानकारी के। इस वजह से रोज की कमाई का अंदाजा लगाना मुश्किल हो जाता है और अचानक कमाई घट जाती है।

2️⃣ 10 मिनट डिलीवरी का दबाव

वर्कर्स अल्ट्रा-फास्ट डिलीवरी मॉडल के खिलाफ हैं। यूनियनों का कहना है कि 10 मिनट डिलीवरी के चक्कर में सड़क हादसों का खतरा बढ़ गया है। कंपनियां अपना रिस्क वर्कर्स पर डाल रही हैं। एक यूनियन नेता ने कहा: “हम असुरक्षित 10 मिनट डिलीवरी मॉडल, मनमानी आईडी ब्लॉकिंग और गरिमा से वंचित करने को स्वीकार नहीं करेंगे।”

3️⃣ घटती आमदनी

वर्कर्स का आरोप है कि इंसेंटिव स्ट्रक्चर बार-बार बदला जाता है, कमाई अनिश्चित हो गई है और पहले जितनी कमाई के लिए अब ज्यादा घंटे काम करना पड़ता है। फिर भी न पेड लीव, न हेल्थ कवर और न इनकम प्रोटेक्शन।

4️⃣ शिकायतों का कोई समाधान नहीं

वर्कर्स की आम शिकायतें:

  • बिना वजह आईडी बंद कर देना

  • पेमेंट में देरी या फेल होना

  • ऐप द्वारा गलत रूट असाइन करना

  • अपने कंट्रोल से बाहर की चीजों पर पेनल्टी

उनका कहना है कि इन समस्याओं को हल करने के लिए कोई मजबूत सिस्टम नहीं है।

यूनियनों की अंतिम मांग

यूनियनें मांग कर रही हैं:

  • एक्सीडेंट इंश्योरेंस

  • हेल्थ कवरेज

  • तय रेस्ट ब्रेक

  • पेंशन जैसी सामाजिक सुरक्षा

उनका कहना है कि: “त्योहारों, वीकेंड और पीक टाइम पर सबसे ज्यादा काम हम करते हैं, लेकिन हमें वो सुरक्षा नहीं मिलती जो एक रेगुलर कर्मचारी को मिलती है।”

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