Edited By Pardeep,Updated: 09 Sep, 2019 05:14 AM
रोजमर्रा की जिंदगी में प्लास्टिक की मौजूदगी बढ़ती जा रही है। खाने के बरतन से लेकर पीने का पानी रखने तक के लिए हम प्लास्टिक से बने बरतनों का उपयोग करने लगे हैं। जबकि, प्लास्टिक का उपयोग किस हदतक हम करें ताकि हमारे स्वास्थ्य पर इसका दुष्प्रभाव न हो?...
नई दिल्ली: रोजमर्रा की जिंदगी में प्लास्टिक की मौजूदगी बढ़ती जा रही है। खाने के बरतन से लेकर पीने का पानी रखने तक के लिए हम प्लास्टिक से बने बरतनों का उपयोग करने लगे हैं। जबकि, प्लास्टिक का उपयोग किस हदतक हम करें ताकि हमारे स्वास्थ्य पर इसका दुष्प्रभाव न हो? इसकी जानकारी ज्यादातर लोगों को नहीं है। कुल मिलाकर देखा जाए तो लोग प्लास्टिक के परोक्ष दुष्प्रभाव से वाकिफ नहीं हैं। विशेषज्ञ बताते हैं कि प्लास्टिक का दुष्प्रभाव कई ऐसी बीमारियों का शिकार बना सकता है, जो जानलेवा तो है ही, वहीं कुछ ऐसी बीमारियां भी चपेट में ले लेती हैं, जो जिंदगी तो नहीं लेती लेकिन जिंदगी को बोझ जरूर बना देती है।
जलने के बाद खतरनाक परिणाम देता है प्लास्टिक
एम्स के पूर्व चिकित्सक डॉ. अरुण पांडेय के मुताबिक पॉली ब्रामेमियेटेड डाइफेनिल इथर्स जो कि इलेक्ट्रानिक सामानों की प्लास्टिक, पाली यूरेथेन फोम के निर्माण में प्रयुक्त होता है। इन्हें जलाने पर हाइड्रोजन क्लोराइड नाइट्रेट गैस निकलती है। इस गैस से महिलाओं में वक्ष कैंसर की संभवना बढ़ती है। वहीं फेफड़े के प्रभावित होने से शरीर में ऑक्सीजन की आपूर्ति प्रभावित होने के कारण रक्त से संबंधित विकार भी हो सकता है। रक्त में गड़बड़ी पैदा होने से इसका असर हड्डियों, तंत्रिका तंत्र और बोन मैरो पर भी हो सकता है।
गर्मी के संपर्क में आते ही प्लास्टिक बन जाता है जहर का प्याला
गाइनाकॉलेजिस्ट व आईवीएफ विशेषज्ञ डॉ. अनुभा सिंह के मुताबिक प्लास्टिक गर्म होने से इस्ट्रोजन टूटते हैं। प्लास्टिक के बर्तन में पेय पदार्थ का सेवन करने के दौरान इस्ट्रोजन शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। जिससे स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ सकता है। इससे गर्भावस्था के दौरान शिशुओं में आगे चलकर आईक्यू से संबंधित समस्या हो सकती है।
मधुमेह का कारण बन सकता है
एम्स के वृद्धावस्था और उसके रोगों से संबद्ध चिकित्सा विभाग में सहायक प्रोफेसर डॉ. विजय गुर्जर के मुताबिक प्लास्टिक की सूक्ष्म मात्रा गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न कर सकती है। कुछ सबसे खतरनाक तत्वों में बिस्फेनाल ए और थैलेट्स हैं जो प्लास्टिक में मौजूद होता है। इससे अन्तस्त्रावी प्रणाली, शारीरिक विकास की समस्याएं हो सकती हैं।
ऐसे बरतें सावधानी
- बॉटल, लंच बॉक्स या फिर स्टोरेज कंटेनर के तौर पर प्लास्टिक का इस्तेमाल कम-से-कम करें।
- दो-तीन साल में प्लास्टिक कंटेनर और बॉटल आदि बदल दें।
- कांच या स्टील की बोतल ज्यादा उपयोग करें।
- तेल आदि के प्लास्टिक कंटेनर को गैस के पास न रखें। गर्मी से उसमें केमिकल रिएक्शन हो सकती है।
- सिल्वर फॉइल में बहुत गर्म खाना न रखें, न ही उसमें रखकर खाना माइक्रोवेव में गर्म करें।
- उपयोग करने के बाद प्लास्टिक उत्पाद को जलाएं नहीं, रिसाइकल के लिए दें।