तरुनप्रीत सिंह सौंद द्वारा प्रस्ताव पेश

Edited By Updated: 30 Dec, 2025 07:07 PM

proposal presented by tarunpreet singh saund

तरुनप्रीत सिंह सौंद द्वारा प्रस्ताव पेश


चंडीगढ़, 30 दिसंबर (अर्चना सेठी) पंजाब विधान सभा ने आज ग्रामीण विकास एवं पंचायत मंत्री तरुनप्रीत सिंह सौंद द्वारा पेश किए गए एक प्रस्ताव को सर्वसम्मति से पारित कर दिया, जिसमें भारत सरकार द्वारा महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मगनरेगा) को ‘विकसित भारत- रोजगार एवं आजीविका मिशन (ग्रामीण) के लिये गारंटी अधिनियम’ नामक नए अधिनियम से बदलने के कदम की कड़ी निंदा की गई है। यह नई स्कीम गरीब मजदूरों, महिलाओं तथा राज्य के लाखों जॉब कार्ड धारक परिवारों से गारंटीशुदा मजदूरी/रोजगार का अधिकार छीन लेगी तथा राज्यों पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ डालेगी।

मंत्री ने बताया कि राष्ट्रीय ग्रामीण विकास रोजगार गारंटी अधिनियम भारत सरकार द्वारा सितंबर 2005 में पारित किया गया था तथा इसे 2008-09 में पंजाब के सभी जिलों में लागू किया गया था। बाद में, भारत सरकार द्वारा इस योजना का नाम 2 अक्टूबर 2009 को मगनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) रखा गया था। मगनरेगा योजना का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में प्रत्येक घर के वयस्क सदस्य जो गैर-हुनरमंद हाथ से कार्य करने के इच्छुक हैं, को एक वित्तीय वर्ष में न्यूनतम 100 दिनों की गारंटीशुदा मजदूरी वाला रोजगार प्रदान करके आजीविका सुरक्षा में वृद्धि करना है।

सौंद ने आगे बताया कि मगनरेगा भारत के सामाजिक कल्याण तथा ग्रामीण आर्थिक सुरक्षा ढांचे में एक महत्वपूर्ण तथा विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त कानून है, जिसने ग्रामीण भारत में गरीब, भूमिहीन तथा हाशिए पर पड़े समुदायों, जिसमें अनुसूचित जाति/जनजाति व्यक्ति तथा महिलाएं शामिल हैं, के लिए रोजगार को एक कानूनी अधिकार के रूप में स्थापित किया है। यह अधिनियम मांग आधारित है, जिसके तहत यदि कोई व्यक्ति मगनरेगा स्कीम के अंतर्गत कार्य की मांग करता है, तो यह राज्य तथा भारत सरकार की कानूनी जिम्मेदारी है कि वह उसे निर्धारित समय के अंदर कार्य प्रदान करे या बेरोजगारी भत्ता प्रदान करे।

इसके विपरीत, भले ही वी.बी.-जी. राम जी अधिनियम (विकसित भारत- रोजगार एवं आजीविका मिशन (ग्रामीण) के लिये गारंटी अधिनियम) 2025 में 125 दिनों के रोजगार का जिक्र किया गया है, लेकिन यह गारंटी वास्तव में संबंधित बजट तथा सीमित वित्तीय प्रबंधों पर निर्भर करेगी, जिस कारण यह गारंटी केवल कागजों में ही रह जाएगी। इस ढांचे में, रोजगार की उपलब्धता अब मजदूर की मांग पर निर्भर नहीं रहेगी बल्कि भारत सरकार द्वारा पहले से निर्धारित योजनाओं तथा बजट सीमाओं के अनुसार की गई आवंटन पर निर्भर करेगी।

अधिक जानकारी देते हुए, कैबिनेट मंत्री ने कहा कि विकसित भारत- रोजगार एवं आजीविका मिशन (ग्रामीण) के लिये गारंटी अधिनियम के तहत 60ः40 के अनुपात में वेतन देने तथा साप्ताहिक भुगतान अनिवार्य करने की बात की गई है, लेकिन वास्तव में ये बदलाव राज्य सरकारों पर वित्तीय बोझ कम करने की बजाय बढ़ाएंगे।

भारत सरकार द्वारा पूरे वित्तीय वर्ष के लिए पहले से ही एक बजट सीमा निर्धारित की जाएगी। हालांकि, यह ध्यान देने योग्य है कि मगनरेगा स्कीम के तहत कामगारों को कार्य की मांग करने का कानूनी अधिकार है, जोकि इस बजट सीमा से प्रभावित होगा। इस स्थिति में, यदि निर्धारित समय के अंदर कार्य नहीं दिया जाता है तो उन्हें बेरोजगारी भत्ता देना राज्य सरकार की जिम्मेदारी होगी।

साथ ही, यदि केंद्रीय बजट आवंटन की सीमा पूरी हो जाती है, तो कामगारों को कार्य प्रदान करना न केवल प्रशासनिक रूप से चुनौतीपूर्ण हो जाएगा बल्कि वित्तीय रूप से भी असंभव हो जाएगा।

इस दौरान  सौंद ने मीडिया से बातचीत करते हुए बताया कि कांग्रेस के लोक सभा सदस्य सप्तगिरी शंकर उल्का की अगुवाई में ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज संबंधी संसदीय स्थायी समिति की बैठक में, कांग्रेस के किसी भी सदस्य ने वी.बी. जी. राम जी स्कीम का विरोध नहीं किया लेकिन विधान सभा में वे मगरमच्छ के आंसू बहा रहे हैं।

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