बदलती निष्ठा,बढ़ती महत्वाकांक्षा: नई पीढ़ी के नेताओं को लुभाने के लिए संघर्ष कर रही कांग्रेस

Edited By Updated: 13 Jul, 2025 05:41 PM

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महाराष्ट्र में किसी जमाने में मजबूत ताकत रही कांग्रेस अब अपने परंपरागत जनाधार में बड़ी खामोशी के साथ निरंतर कमी होने की समस्या से जूझ रही है। कभी पार्टी की रीढ़ माने जाने वाले कई परिवारों की नई पीढ़ी या तो विपक्षी दलों के साथ गठबंधन कर रही है या फिर...

नेशनल डेस्क: महाराष्ट्र में किसी जमाने में मजबूत ताकत रही कांग्रेस अब अपने परंपरागत जनाधार में बड़ी खामोशी के साथ निरंतर कमी होने की समस्या से जूझ रही है। कभी पार्टी की रीढ़ माने जाने वाले कई परिवारों की नई पीढ़ी या तो विपक्षी दलों के साथ गठबंधन कर रही है या फिर सक्रिय राजनीति से दूर जा रही है। पार्टी सूत्रों के अनुसार, यह बदलाव कांग्रेस की संगठनात्मक गहराई को कमजोर कर रहा है और इस वर्ष होने वाले महत्वपूर्ण स्थानीय निकाय चुनावों से पहले दल की मुश्किलें बढ़ा रहा है। पिछले वर्ष हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को राज्य में अपनी सबसे बुरी हार का सामना करना पड़ा था। महाराष्ट्र की 288 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस को केवल 16 सीट से ही संतोष करना पड़ा था।

कांग्रेस ने शिवसेना-उद्धव बालासाहेब ठाकरे (उबाठा) और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा)-शरदचंद्र पवार के साथ गठबंधन में 101 सीट पर चुनाव लड़ा था। हाल के महीनों में कांग्रेस से लंबे समय से जुड़े परिवारों के नेताओं ने ऐसे कदम उठाए हैं, जो समर्पित समर्थकों के बीच पार्टी की घटती लोकप्रियता को दर्शाते हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अनंत गाडगिल ने दशकों से पार्टी से जुड़े रहने वाले परिवारों की दूसरी पीढ़ी के नेताओं के पार्टी छोड़ने के सिलसिले पर चिंता व्यक्त की है। गाडगिल का संबंध संभवत: उन अंतिम निष्ठावान परिवारों में से एक से है जो हमेशा पार्टी के प्रति प्रतिबद्ध रहे हैं। तीसरी पीढ़ी के राजनीतिक नेता गाडगिल ने ‘पीटीआई-भाषा' को बताया कि कांग्रेस की विचारधारा से गहराई से जुड़े होने के नाते वह 139 साल पुरानी पार्टी के भविष्य को लेकर चिंतित हैं।

गाडगिल ने कहा कि उन्हें यह देखकर दुख हुआ कि उनके पिता (वीएन गाडगिल) के केंद्रीय मंत्रिमंडल के सहयोगियों और कई अन्य लोगों के बच्चे कांग्रेस छोड़कर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हो गए हैं। महाराष्ट्र में पूर्व केंद्रीय मंत्री मिलिंद देवरा ने 2024 में कांग्रेस छोड़ दी और अब शिवसेना के सांसद हैं। सांगली में, कट्टर कांग्रेसी शिवाजीराव देशमुख के पुत्र सत्यजीत देशमुख भाजपा में शामिल हो गए। गाडगिल ने कहा, “विडंबना देखिए। जिस भाजपा ने शिवाजीराव देशमुख को परिषद के अध्यक्ष पद से हटाने के लिए अन्य दलों के साथ गठबंधन किया था, उसने बाद में उनके बेटे को विधायक बना दिया। धुले में, कट्टर कांग्रेसी रोहिदास पाटिल के पुत्र कुणाल पाटिल हाल ही में भाजपा में शामिल हुए हैं।”

उन्होंने कहा, “पुणे में कांग्रेस के एक अन्य पूर्व मंत्री अनंतराव थोपटे के बेटे संग्राम थोपटे यह दावा करते हुए भाजपा में शामिल हो गए कि कांग्रेस ने उन्हें उचित सम्मान नहीं दिया। कांग्रेस के दिग्गज नेता वसंतदादा पाटिल की पोती राजश्री पाटिल भी भाजपा में शामिल हो गईं।” विधान परिषद के पूर्व सदस्य ने कहा, “वरिष्ठ नेता बालासाहेब थोराट के भतीजे और कभी राहुल गांधी के करीबी माने जाने वाले सत्यजीत तांबे न केवल विधान परिषद के निर्दलीय सदस्य बने बल्कि राहुल जी के आलोचक भी बन गए। ये सभी पारंपरिक कांग्रेसी परिवारों से थे।”

कांग्रेस नेता शिवराज पाटिल की बहू अर्चना पाटिल 2024 में हुए विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हो गईं और लातूर शहर से कांग्रेस उम्मीदवार अमित देशमुख के खिलाफ चुनाव लड़ा। गाडगिल ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में कांग्रेस के भीतर दृष्टिकोण में बदलाव आया है, जो न केवल करीबियों को बल्कि कार्यकर्ताओं को भी रास नहीं आ रहा है। उन्होंने दलील दी, “करीबियों में यह भावना बढ़ रही है कि पार्टी बदलने वालों को तुरंत इनाम मिल जाता है। वे बताते हैं कि महाराष्ट्र में पिछले 10-12 साल में उन लोगों को प्रमुख पद दिए गए हैं, जो या तो पहले कांग्रेस छोड़ चुके थे या पार्टी बदलने के रिकॉर्ड के साथ कांग्रेस में शामिल हुए थे। (चुनाव) उम्मीदवारों के गलत चयन का मुद्दा है। कांग्रेस के करीबी यह सब पचा नहीं पा रहे हैं।”

गाडगिल के अनुसार, कुछ वरिष्ठ पदाधिकारियों का मानना है कि पार्टी के राष्ट्रीय नेताओं को सही प्रतिक्रिया (फीडबैक)भी नहीं मिल रही है। गाडगिल ने कहा, “(कांग्रेस सांसद) सोनिया जी, राहुल जी और (अध्यक्ष मल्लिकार्जुन) खरगे जी को पूरे देश में पार्टी के मामलों की देखभाल करनी है। उनसे सब कुछ जानने की उम्मीद करना गलत है। इसलिए चुनाव के दौरान पार्टी पर्यवेक्षकों की नियुक्ति की जाती है। लेकिन अगर पर्यवेक्षकों के आकलन में कमी होती है, तो पार्टी को नुकसान होता है।”

कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “कई युवा राजनेताओं को अब कांग्रेस में अपना भविष्य नहीं दिखता। संगठन कमजोर है। उनका दूसरी पार्टी में जाना विचारधारा से ज्यादा अस्तित्व की चिंता है।” राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि महाराष्ट्र कांग्रेस में समस्या सिर्फ दलबदल की नहीं है, बल्कि पीढ़ीगत वफादारी के अंत की है। हालांकि, कांग्रेस नेताओं ने नेताओं के पलायन के प्रभाव को कमतर करके दिखाने की कोशिश की। महाराष्ट्र कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष नसीम खान ने कहा, ‘‘हां, कुछ लोग पार्टी से चले गए हैं, लेकिन ये व्यक्तिगत निर्णय हैं। कांग्रेस के पास अब भी प्रतिबद्ध कार्यकर्ताओं और लोगों का समर्थन है।'' 

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