Supreme Court: हालात बदतर हो रहे हैं…बच्चा तस्करी पर जमकर भड़की सुप्रीम कोर्ट, सरकार से मांगी सख्त रिपोर्ट

Edited By Updated: 12 Aug, 2025 12:15 PM

supreme court slams govt over rising child trafficking in delhi

देश की राजधानी दिल्ली में बच्चा तस्करी के बढ़ते मामलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर चिंता जाहिर की है। सोमवार को हुई सुनवाई के दौरान कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा कि अब तक इस अपराध को रोकने के लिए क्या-क्या ठोस कदम उठाए गए हैं। कोर्ट ने एक सप्ताह...

नेशनल डेस्क: देश की राजधानी दिल्ली में बच्चा तस्करी के बढ़ते मामलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर चिंता जाहिर की है। सोमवार को हुई सुनवाई के दौरान कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा कि अब तक इस अपराध को रोकने के लिए क्या-क्या ठोस कदम उठाए गए हैं। कोर्ट ने एक सप्ताह के भीतर कार्रवाई की विस्तृत रिपोर्ट मांगी है। यह मुद्दा इतना संवेदनशील बन चुका है कि अब सुप्रीम कोर्ट को खुद इसमें हस्तक्षेप करना पड़ा है। सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसमें जस्टिस जेबी पारदीवाला और आर महादेवन शामिल हैं, ने केंद्र सरकार को सख्त शब्दों में कहा कि वह इस गंभीर समस्या की अनदेखी नहीं कर सकती। कोर्ट ने पूछा कि क्या सरकार को पता है कि बच्चा तस्करी जैसे अपराध अब अंतरराज्यीय गिरोहों के जरिए संचालित हो रहे हैं। कोर्ट ने यह भी कहा कि तस्करी की यह समस्या दिल्ली तक सीमित नहीं रह गई है, इसका जाल अब देश के अन्य हिस्सों में भी फैल चुका है।

कमजोर जांच और आसान जमानत बनी बड़ी चुनौती

कोर्ट ने इस बात पर नाराजगी जाहिर की कि गंभीर मामलों में भी जांच एजेंसियों की लापरवाही के चलते आरोपी आसानी से जमानत पर छूट जाते हैं। कोर्ट ने दिल्ली में दो आरोपियों को मिली जमानत के आदेश की प्रतियां मंगवाई हैं, ताकि यह देखा जा सके कि कहीं कोई गलती तो नहीं हुई। इसके साथ ही कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वह जांच की स्थिति को समझना चाहता है और यह देखना चाहता है कि किस आधार पर ऐसे संगीन अपराधों के आरोपियों को जमानत मिल रही है।

'पूजा गैंग' और पिछला आदेश

कोर्ट ने अप्रैल 2021 के अपने एक पुराने आदेश का हवाला देते हुए कहा कि पुलिस को ‘पूजा’ नाम की एक गैंग लीडर की तलाश में तेजी लाने और तीन बेचे गए शिशुओं को ढूंढने का निर्देश दिया गया था। कोर्ट ने तब यह भी कहा था कि कुछ मामलों में बच्चों के माता-पिता भी खुद तस्करी में शामिल हो सकते हैं, जो जांच एजेंसियों के लिए एक बड़ी चुनौती बन चुका है।

अस्पतालों की लापरवाही और कोर्ट की सख्ती

यह मामला तब और गहरा हो गया जब सुप्रीम कोर्ट ने अस्पतालों की भूमिका पर सवाल उठाए। कोर्ट ने कहा कि जब कोई महिला बच्चे को जन्म देने अस्पताल आती है, तो उस नवजात की सुरक्षा सुनिश्चित करना अस्पताल प्रशासन की पहली जिम्मेदारी होती है। 15 अप्रैल को दिए गए अपने फैसले में कोर्ट ने कहा था कि तस्करी में लिप्त पाए गए अस्पतालों के लाइसेंस रद्द किए जाएं और ऐसे मामलों की सुनवाई छह महीने में पूरी की जाए। इसके साथ ही 13 आरोपियों की जमानत रद्द करने के आदेश भी कोर्ट ने दिए थे।

इलाहाबाद हाईकोर्ट की कार्यशैली पर उठाए सवाल

सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की भी आलोचना की, जहां एक गंभीर मामले में आरोपियों को आसानी से जमानत दे दी गई थी। कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में न्यायपालिका की जिम्मेदारी सबसे अधिक होती है। अपराधियों की आज़ादी समाज की सुरक्षा के खिलाफ है। सभी हाईकोर्ट को निर्देश दिए गए हैं कि वे बच्चा तस्करी के लंबित मामलों का डाटा इकट्ठा करें और ट्रायल कोर्ट को छह महीने के भीतर मामलों को निपटाने के लिए निर्देश दें।

NHRC की सिफारिशें लागू करने के निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) की 2023 की सिफारिशें लागू करने के निर्देश दिए। इन सिफारिशों में यह कहा गया है कि जब तक किसी गुमशुदा बच्चे के मामले में अन्यथा कुछ साबित न हो, तब तक उसे तस्करी का मामला मानकर जांच की जाए।

माता-पिता के लिए भावुक अपील

सुनवाई के अंत में सुप्रीम कोर्ट ने देश भर के माता-पिता से एक भावुक अपील की। कोर्ट ने कहा कि "अपने बच्चों के साथ बेहद सतर्क और सावधान रहें। एक छोटी सी लापरवाही भी बड़े दुख का कारण बन सकती है।" कोर्ट ने आगे कहा कि किसी बच्चे की मौत का दर्द अलग होता है, लेकिन जब बच्चा तस्करी का शिकार होता है, तो उसका दुख पूरी ज़िंदगी नहीं जाता। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि यह केवल कानून का मामला नहीं है, बल्कि समाज की भी जिम्मेदारी है कि वह इस तरह के अपराधों को रोकने में सरकार और कानून व्यवस्था की मदद करे।

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