वो पुल जो आजादी से पहले अंग्रेजों ने बनाया था, जब टूटा तो गई थी 141 लोगों की जान

Edited By Updated: 09 Jul, 2025 06:14 PM

the bridge which was built by the british before independence 141 people died

गुजरात के वडोदरा जिले के पाडरा इलाके में आज सुबह एक पुराना पुल भरभरा कर ढह गया जिससे पुल से गुजर रहे वाहन सीधे महिसागर नदी में गिर गए। हादसे में अब तक 9 लोगों की मौत की पुष्टि हुई है जबकि 6 अन्य घायल हुए हैं। इस हादसे ने सरकार द्वारा करवाए गए...

नेशनल डेस्क। गुजरात के वडोदरा जिले के पाडरा इलाके में आज सुबह एक पुराना पुल भरभरा कर ढह गया जिससे पुल से गुजर रहे वाहन सीधे महिसागर नदी में गिर गए। हादसे में अब तक 9 लोगों की मौत की पुष्टि हुई है जबकि 6 अन्य घायल हुए हैं। इस हादसे ने सरकार द्वारा करवाए गए कार्यों पर भी सवाल उठा दिए क्योंकि कुछ ही महीनों पहले इसकी मुरम्मत की गई थी। हालांकि यह कोई पहला पुल हादसा नहीं है जिसने कई परिवार उजाड़ दिए। इससे पहले 2022 में भी एक ऐसा पुल हादसा हुआ था जिसने कई जिंदगियां खत्म कर दी थीं।

आजादी से पहले अंग्रेजों ने बनाया था

दरअसल गुजरात के मोरबी में मच्छु नदी पर बना एक 142 साल पुराना ऐतिहासिक केबल पुल 30 अक्टूबर 2022 को भीषण हादसे का शिकार हो गया था। बता दें कि जब यह पुल टूटा था तो इस हादसे में 141 लोगों की जान चली गई थी। आजादी से पहले अंग्रेजों द्वारा यह पुल बनवाया गया था और इसे अपनी बेजोड़ इंजीनियरिंग और ब्रिटेन से मंगाए गए खास सामान के लिए जाना जाता था। यह भी पता चला है कि यह पुल पिछले कुछ समय से बंद था। यह केवल एक पुल ही नहीं बल्कि भारत की आजादी की लड़ाई का गवाह और गुजरात के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक था जिसने एक गौरवशाली इतिहास देखा लेकिन अब इसका नाम एक दर्दनाक त्रासदी से जुड़ गया है। 

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अंग्रेजों के जमाने का नायाब इंजीनियरिंग नमूना

यह केबल पुल का इतिहास काफी पुराना है। इसे आजादी से पहले अंग्रेजों ने बनवाया था और इसका निर्माण साल 1880 में करीब 3.5 लाख रुपये की लागत से पूरा हुआ था। 20 फरवरी 1879 को मुंबई के तत्कालीन गवर्नर रिचर्ड टेम्पल ने इसका उद्घाटन किया था। इसकी खासियत यह थी कि इसके निर्माण के लिए सारा सामान ब्रिटेन से ही मंगवाया गया था और उस समय की सबसे बेहतरीन इंजीनियरिंग का प्रयोग किया गया था। यह पुल न केवल भारत की आजादी की लड़ाई का गवाह बना बल्कि इसने भारत के उज्जवल भविष्य को भी देखा। अपनी बेहतरीन इंजीनियरिंग, कला और ऐतिहासिक महत्व के कारण इसे गुजरात के प्रमुख टूरिस्ट प्लेस में शुमार किया जाता था। मच्छु नदी पर बना यह ब्रिज मोरबी के लोगों के लिए एक प्रमुख टूरिस्ट स्पॉट था जो दरबार गढ़ पैलेस और लखधीरजी इंजीनियरिंग कॉलेज को जोड़ता था।

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हादसे के 5 दिन पहले ही खुला था पुल, मरम्मत पर लगे थे 2 करोड़ रुपये

यह दुखद है कि यह 1.25 मीटर चौड़ा और 765 फीट लंबा सस्पेंशन ब्रिज पिछले काफी समय से यानी छह महीने से जनता के लिए बंद कर दिया गया था। इसकी मरम्मत का काम हाल ही में पूरा हुआ था जिस पर करीब दो करोड़ रुपये की लागत आई थी। मरम्मत के बाद इसे दीपावली के अगले दिन यानी 25 अक्तूबर 2022 को ही जनता के लिए दोबारा खोला गया था लेकिन दुर्भाग्यवश खुलने के महज पांच दिन के भीतर ही इतना बड़ा हादसा हो गया।

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भारी बोझ बना काल, क्षमता से कई गुना ज़्यादा थी भीड़

प्रत्यक्षदर्शियों और शुरुआती जानकारी के मुताबिक इस पुल की क्षमता करीब 100 लोगों की ही थी लेकिन चूंकि आज रविवार और छुट्टी वाला दिन था ऐसे में लोगों की भारी भीड़ पुल पर मौजूद थी। कुछ प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया है कि घटना के वक्त पुल पर करीब 400 से 500 लोग थे। क्षमता से कई गुना ज़्यादा लोगों के बोझ को पुल सह नहीं पाया और भरभराकर टूट गया। कुछ प्रत्यक्षदर्शियों ने दिल दहला देने वाले बयान दिए कि जब पुल टूटा तो उन्होंने महिलाओं और बच्चों को इसकी केबल से लटकते भी देखा। मोरबी पर बने इस अंग्रेजों के जमाने के ब्रिज के रखरखाव की जिम्मेदारी वर्तमान में ओधवजी पटेल के स्वामित्व वाले ओरेवा ग्रुप के पास है। इस ग्रुप ने मार्च 2022 से मार्च 2037 यानी 15 साल के लिए मोरबी नगर पालिका के साथ एक समझौता किया है। इस समझौते के आधार पर ही इस पुल के रखरखाव, सफाई, सुरक्षा और टोल वसूलने जैसी सारी जिम्मेदारी ओरेवा ग्रुप के पास थी। पुल पर जाने के लिए 15 रुपये का शुल्क लिया जाता था।

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